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बिहार
किडनी, टी बी, अस्थमा, दमा, बात रोग, शुगर जैसी गंभीर बीमारियों को जन्म देती है एल्युमिनियम
By Deshwani | Publish Date: 14/12/2023 10:16:31 PM
किडनी, टी बी, अस्थमा, दमा, बात रोग, शुगर जैसी गंभीर बीमारियों को जन्म देती है एल्युमिनियम

पटना जितेन्द्र कुमार सिन्हा। एल्युमिनियम बोक्साईट का बना होता है और इस वर्तन में बने खाना खाने से, शरीर को सिर्फ नुक्सान ही पहुँचता है। यह वर्तन आयरन और कैल्शियम को सोखता है, जिसके कारण इस वर्तन में खाना पकाने से और पके हुए खाना खाने से शरीर की हड्डियाँ हड्डियां कमजोर होती है, मानसिक बीमारियाँ होती है, लीवर और नर्वस सिस्टम को क्षति पहुंचती है। इतना ही नहीं, किडनी फेल होना, टी बी, अस्थमा, दमा, बात रोग, शुगर जैसी भी  गंभीर बीमारियाँ होती है। इसलिए एल्युमिनियम से बने पात्र का उपयोग नहीं करना चाहिए। एल्युमिनियम के प्रेशर कूकर से खाना बनाने से भी 87 प्रतिशत पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं।

 
 
 
 
 
जबकि सोना से बने पात्र में भोजन बनाने और करने से शरीर के आन्तरिक और बाहरी दोनों हिस्से कठोर, बलवान, ताकतवर और मजबूत बनते है और साथ साथ सोना आँखों की रौशनी बढ़ता है। क्योंकि सोना एक गर्म धातु है। उसी प्रकार चाँदी एक ठंडी धातु है, जो शरीर को आंतरिक ठंडक पहुंचाती है। शरीर को शांत रखती है। चाँदी के पात्र में भोजन बनाने और करने से दिमाग तेज होता है, आँख  स्वस्थ रहती है, आँखों की रौशनी बढती है और इसके अलावा पित्तदोष, कफ और वायुदोष को नियंत्रित रहता है। वहीं काँसा के बर्तन में खाना खाने से बुद्धि तेज होती है, रक्त में शुद्धता आती है, रक्तपित शांत रहता है और भूख बढ़ाती है। लेकिन काँसा के बर्तन में खट्टी चीजे नहीं परोसनी चाहिए क्योंकि  खट्टी चीजे इस धातु से क्रिया करके विषैली हो जाती है जो नुकसान करती है। जबकि कांसा के बर्तन में खाना बनाने से केवल 3 प्रतिशत पोषक तत्व नष्ट होते हैं।
 
 
 
 
 
अब देखा जाय, तांबा के बर्तन में रखा पानी पीने से व्यक्ति रोग मुक्त बनता है, रक्त शुद्ध होता है, स्मरण- शक्ति अच्छी होती है, लीवर संबंधी समस्या दूर होती है, तांबा का पानी शरीर के विषैले तत्वों को खत्म कर देता है इसलिए इस पात्र में रखा पानी स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है। लेकिन तांबा के बर्तन में दूध नहीं पीना चाहिए इससे शरीर को नुकसान पहुँचता है। वही, पीतल के बर्तन में भोजन पकाने और करने से कृमि रोग, कफ और वायुदोष की बीमारी नहीं होता है। क्योंकि पीतल के बर्तन में खाना बनाने से केवल 7 प्रतिशत पोषक तत्व नष्ट होते हैं। जबकि लोहे के बर्तन में बने भोजन खाने से शरीर की शक्ति बढती है, लौहतत्व शरीर में जरूरी पोषक तत्वों को बढ़ाता है। ऐसे भी देखा गया है कि लोहा शरीर से कई रोग को खत्म करता है, जैसे पांडू रोग को मिटाता है, शरीर में सूजन और  पीलापन नहीं आने देता है, कामला रोग को खत्म करता है, और पीलिया रोग नहीं होने देता है। इसलिए लोहे के पात्र में दूध पीना अच्छा होता है।
 
 
 
 
 
वर्तमान समय में स्टील के बर्तन की चलन बहुत है। जबकि स्टील के वर्तन नुक्सान दायक नहीं होते है। क्योंकि यह वर्तन ना ही गर्म से क्रिया करते है और ना ही अम्ल से। इसलिए स्टील के वर्तन से  नुक्सान नहीं होता है। इस वर्तन में खाना बनाने और खाने से शरीर को कोई फायदा नहीं होता है तो कोई नुक्सान भी नहीं होता है। वही मिट्टी के बर्तन में खाना पकाने से ऐसे पोषक तत्व मिलते हैं, जो हर बीमारी को शरीर से दूर रखता है।वर्तमान समय में इस बात को अब आधुनिक विज्ञान भी साबित कर चुका है कि मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने से और खाने से शरीर के कई तरह के रोग ठीक होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, अगर भोजन को पौष्टिक और स्वादिष्ट बनाना है तो उसे धीरे-धीरे ही पकना चाहिए। भले ही मिट्टी के बर्तनों में खाना बनने में वक़्त थोड़ा ज्यादा लगता है, लेकिन इससे सेहत को पूरा लाभ मिलता है। दूध और दूध से बने उत्पादों के लिए सबसे उपयुक्त है मिट्टी के बर्तन। मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने से पूरे शतप्रतिशत पोषक तत्व शरीर को मिलता हैं। और मिट्टी के बर्तन में खाना खाने का अलग स्वाद भी मिलता है।
 
 
 
 
 
'भाव प्रकाश ग्रंथ' में पानी पीने के पात्र के संबंध में बताया गया है कि पानी पीने के लिए ताँबा, स्फटिक अथवा काँच-पात्र का उपयोग करना चाहिए। सम्भव हो तो वैङूर्यरत्नजड़ित पात्र का उपयोग करें। इनके अभाव में मिट्टी के जलपात्र पवित्र व शीतल होते हैं। टूटे-फूटे बर्तन से अथवा अंजुली  से पानी कभी नहीं पीना चाहिए।
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