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बिहार
पितृपक्ष में गया में संक्षिप्त श्राद्ध- एक दिन, तीन दिन,पांच दिन और एक सप्ताह की अवधि का भी होता है
By Deshwani | Publish Date: 9/10/2023 11:04:28 PM
पितृपक्ष में गया में संक्षिप्त श्राद्ध- एक दिन, तीन दिन,पांच दिन और एक सप्ताह की अवधि का भी होता है

पटना जितेन्द्र कुमार सिन्हा। वायु पुराण में मुक्ति के चार साधन बताया गया है। वह है ब्रह्मज्ञान, गया श्राद्ध, गौगृह में मरण और कुरु क्षेत्र का वास। इस चारों में गया श्राद्ध को सबसे सरल उपाय माना गया है। गया श्राद्ध करने से इक्कीस गोत्रों की सात पीढ़ियों के पितरों के मोक्छ की प्राप्ति होती है। बिहार के गया श्राद्ध को संक्षिप्त रूप से एक दिन, तीन दिन, पांच दिन और एक सप्ताह की अवधि में

भी कराने का प्रावधान है।
 
 
 
 
 
गया श्राद्ध कराने वाले पुरोहित का माने तो एक दिवसीय पिण्डदान में मात्र फल्गु तीर्थ, विष्णुपद तीर्थ, एवं आक्छ्य वट तीर्थ में सम्पन्न कराया जाता है। कहा गया है कि फल्गु तीर्थ के रूप में मातृ-पितृ भक्त प्रातः काल फल्गु नदी में स्नान कर तर्पण करें और पितरों के लिए पिण्डदान करें। विष्णुपद तीर्थ के रूप में परिसर में 16 वेदी तीर्थ पर पिण्डदान करें और इसे करने के बाद आक्छ्य वट तीर्थ के रूप में पुरोहित गयावाल पंडा से सुफल लें। इस प्रकार एक दिन का गया श्राद्ध से निवृत हुआ जाता है।
 
 
 
 
 
 
तीन दिवसीय पिण्डदान में पहले दिन फल्गु नदी में स्नान तर्पण करने के बाद वही फल्गु नदी के तट पर पार्वण श्राद्ध और फिर गदाधर भगवान को चरणामृत स्नान कराने का विधान है। दूसरे दिन ब्रह्मकुण्ड में तर्पण-श्राद्ध, फिर प्रेतशिला, रामशिला, रामकुण्ड, काकबलि एवं स्वानबलि पिण्डवेदी पर पिण्डदान करने का विधान है। तीसरे और अंतिम दिन फल्गु नदी में स्नान तर्पण, फिर विष्णुवेदी, रुद्रपदवेदी एवं ब्रह्मपदवेदी पर श्राद्ध किया जाता है। इसके बाद आक्छ्य वट वेदी पर श्राद्ध, शय्यादान एवं पंडा के आशीर्वाद स्वरूप सुफल प्राप्त करने का विधान है। इस प्रकार तीन दिन का गया श्राद्ध से निवृत हुआ जाता है।
 
 
 
 
 
 
पांच दिवसीय गया श्राद्ध में पहले दिन फल्गु नदी में स्नान, तर्पण, प्रेतशिला, रामशिला और काकबलि वेदी पर पिण्डदान किया जाता है, दूसरे दिन उत्तर मानस, दक्षिण मांस (सूर्य कुण्ड), मातंगवापी एवं धर्मारण्य वेदी पर पिण्डदान किया जाता है। तीसरे दिन ब्रह्मसरोवर, गोप्रचार वेदी, आम्रसिंचन, काकबलि एवं तारक वेदी पर पिण्डदान किया जाता है। चौथे दिन गयासिर वेदी, विष्णुपद वेदी, नरसिंह वामन दर्शन वेदी पर पिण्डदान किया जाता है और पांचवा एवं अंतिम दिन गदालोल, आक्छ्य वट, बटेश्वर दर्शन एवं वृद्ध प्रपितामह वेदी पर पिण्डदान करने का विधान है। इस प्रकार पांच दिन का गया श्राद्ध से निवृत हुआ जाता है।
 
 
 
 
 
 
सात दिन का गया श्राद्ध में पहले दिन फल्गुतीर्थ, प्रेतशिला एवं रामशिला पर पिण्डदान, दूसरे दिन उत्तर मानस, उदीचि, कनखल, जिह्वालोल पर पिण्डदान, तीसरे दिन मातंगवापी, धर्मारण्य एवं बोध गया तीर्थ पर पिण्डदान, चौथे दिन ब्रह्मसरोवर, तारकब्रह्म, आम्रसिंचन, काकबलि पर पिण्डदान, पांचवें दिन विष्णुपद सोलहवेदी, गयासिरवेदी,एवं सीताकुण्ड पर पिण्डदान, छठे दिन मुंडपृष्ठा, भीमगया, गोप्रचार वेदी, मंगलागौरी में पिण्डदान एवं मार्कण्डेय भगवान का दर्शन और सातवें अंतिम दिन वैतरणी तीर्थ, गदालोल, आक्छ्य वट पर पिण्डदानऔर यहीं से पण्डा से सुफल लेने का विधान है। इस प्रकार सात दिन का गया श्राद्ध से निवृत हुआ जाता है।
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