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‘डिजिटल इंडिया’ को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों के लिए किफायती शुल्‍क ढांचा
By Deshwani | Publish Date: 7/11/2017 8:09:47 PM
‘डिजिटल इंडिया’ को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों के लिए किफायती शुल्‍क ढांचा

 नई दिल्ली, (हि.स.)। ग्रामीण एवं दूरदराज के क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड सेवाएं मुहैया कराने के लिए भारत सरकार की ‘भारतनेट’ परियोजना अब सेवा प्रदान करने के चरण में है। ‘डिजिटल इंडिया’ को बढ़ावा देने के लिए इन क्षेत्रों के लिए सरकार किफायती शुल्क ढांचा लेकर आई है। 

संचार मंत्रालय की ओर से जारी विज्ञप्ति के अनुसार प्रखंड (ब्‍लॉक) और ग्राम पंचायतों के बीच असमान बैंडविथ के लिए वार्षिक शुल्‍क दरें 10 एमबीपी तक के लिए 700 रुपये प्रति एमबीपीएस और 1 जीबीपीएस के लिए 200 रुपये प्रति एमबीपीएस तय की गई हैं। हालांकि, प्रखंड और ग्राम पंचायत के बीच समान बैंडविथ के लिए वार्षिक शुल्‍क दरें 10 एमबीपीएस तक के लिए 1000 रुपये प्रति एमबीपीएस और 100 एमबीपीएस के लिए 500 रुपये प्रति एमबीपीएस तय की गई हैं। किसी भी मध्‍यवर्ती बैंडविथ के लिए शुल्‍क दरों की गणना समानुपातिक आधार पर की जाएगी।
 
मंत्रालय का कहना है कि यह शुल्‍क (टैरिफ) संरचना के आम उपभोक्‍ताओं से लिए जाने वाली शुल्क में भी स्पष्ट नजर आयेगी। सरकार की इस पहल से दूरसंचार सेवा प्रदाता भारतनेट कनेक्टिविटी का उपयोग करने के लिए आगे आए हैं। एयरटेल ने पट्टे (लीज) पर 1 जीबीपीएस कनेक्टिविटी लेने के लिए 10,000 जीबीपीएस में रुचि दिखाई है। दूसरी ओर रिलायंस जियो, वोडाफोन और आइडिया क्रमश: लगभग 30000, 2000 एवं 1000 ग्राम पंचायतों में पट्टे पर 100 एमबीपीएस कनेक्टिविटी लेने की इच्‍छुक हैं। इन ग्राम पंचायतों में दूरसंचार सेवा प्रदाताओं (टीएसपी) द्वारा अपनी सेवाएं शुरू करने से ग्राम स्‍तर पर पारिस्थितिकी तंत्र को नई गति मिलने की आशा है जिससे निकट भविष्‍य में अधिक से अधिक ग्राम पंचायतों को कवर करना संभव हो पाएगा। इससे ग्रामीण भारत में ब्रॉडबैंड सुविधाओं को नई गति मिलेगी।
 
5 नवम्‍बर, 2017 तक 1,03,275 ग्राम पंचायतों में ऑप्टिकल फाइबर केबल (ओएफसी) कनेक्टिविटी सुनिश्चित कर ली गई है। यह 2,38,677 किलोमीटर क्षेत्र में फाइबर बिछाने से संभव हो पाया है। सम्‍पूर्ण कनेक्टिविटी में तेजी लाने के लिए शुरू किए गए अनेक प्रयासों की बदौलत 85,506 ग्राम पंचायतों में जीपीओएन उपकरण लगाया गया है। दूसरी ओर 75,082 ग्राम पंचायतें सेवाएं प्रदान करने के लिए तैयार हैं।
 
इसके अलावा, एकल आवेदन के तहत ही 1000 ग्राम पंचायतों (जीपी) से ज्‍यादा और 25,000 जीपी तक बैंडविथ को ले जाने के लिए 5 से लेकर 25 फीसदी तक की छूट (डिस्‍काउंट) की पेशकश की गई है। इसके अतिरिक्‍त, प्रवेश संबंधी बाधाएं कम करने के लिए प्रखंड एवं ग्राम पंचायत के स्‍तर पर पोर्ट शुल्‍क माफ कर दिया गया है। सेवा प्रदाताओं और सरकारी एजेंसियों हेतु गहरे रंग के फाइबर के लिए वार्षिक शुल्‍क दर 2250 रुपये प्रति फाइबर प्रति किलोमीटर तय की गई है।
 
 
 
सुनवाई के दूसरे दिन आज भी दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने बहस की शुरुआत करते हुए आरोप लगाया कि उप-राज्यपाल रोजाना के काम में हस्तक्षेप करते हैं और शासन को करीब-करीब पंगु बना चुके हैं। वे चाहते हैं कि हर फाइल पर अपनी राय दें। वे समझते हैं कि सरकार के फैसलों को बिना राष्ट्रपति को रेफर किए ही बदल दें। चीफ जस्टिस ने पूछा कि आपके कहने का मतलब है कि सरकार कोई फैसला लेती है और उप-राज्यपाल को स्वीकृति के लिए कहती है और वो इस पर राजी हो जाएं तो अच्छा और अगर वो राजी नहीं हुए तो वो राष्ट्रपति के पास जाना चाहिए।
 
गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि धारा 239एए की उपधारा 4 के मुताबिक अगर उप-राज्यपाल और मंत्रिसमूह के बीच कोई मतभेद होता है तो उप-राज्यपाल उसे राष्ट्रपति को भेजेगा। राष्ट्रपति का निर्णय सबको मान्य होगा। उन्होंने कहा कि हमारे संवैधानिक लोकतंत्र में एक राज्य का राज्यपाल मंत्रियों की सलाह पर ही काम करता है। इसका सीधा मतलब है कि मंत्रिसमूह का निर्णय की अंतिम निर्णय है। यही बात उपधारा 4 के लिए लागू होती है। दिल्ली के मामले में पुलिस, कानून-व्यवस्था और भूमि को छोड़कर सभी चीजों पर मंत्रिसमूह ही फैसला करेगा। 
 
2 नवंबर को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उप-राज्यपाल किसी फाइल को दबाकर नहीं बैठ सकते हैं। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि उप-राज्यपाल को अपने अधिकारों का उपयोग तय समय सीमा में करना होगा। उन्हें अपने फैसलों को कारण सहित बताना चाहिए। कोर्ट ने दिल्ली सरकार को भी अपनी सीमा में रहने को कहा।
 
गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा था कि दिल्ली हाईकोर्ट ने धारा 239एए की गलत व्याख्या की। हाईकोर्ट ने कानून के पीछे के मूल्यों को नहीं समझा। अगर आप एक विधानसभा गठित कर रहे हैं तो उसे कानून बनाने की शक्तियां भी देनी चाहिए। तब जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि दिल्ली के मामले में संसद को राज्य और समवर्ती सूची दोनों को लेकर काफी शक्तियां हैं। तब सुब्रमण्यम ने कहा कि हम कार्यपालिका की शक्तियों की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि हम विधायी शक्तियों की बात कर रहे हैं। हम संसदीय सर्वोच्चता पर सवाल नहीं उठा रहे हैं। लेकिन एक चुनी हुई सरकार बिना शक्तियों के कैसे हो सकती है।
 
दिल्ली सरकार ने कहा था कि अधिकारी मंत्रियों की विभाग के मुखिया के रुप में बात नहीं मानते हैं तो वे फैसलों को लागू कैसे करेंगे। गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा था कि मैं ये दावा नहीं कर रहा हूं कि हम एक राज्य हैं , लेकिन एक राज्य होने के करीब हैं। धारा 239एए का मतलब टकरावों को रोकना है। अगर हम अर्थ विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में देखें तो दिल्ली में हमारे लिए कैबिनेट किसलिए है। धारा 239एए दिल्ली को एक विशेष संवैधानिक दर्जा देता है। यह कानून एक लोकतांत्रिक प्रयोग है। ये इस कानून की व्याख्या पर निर्भर करेगा कि वह प्रयोग सफल हुआ कि नहीं।
 
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