बिहार
ऑफिसर नहीं, विद्वान बन भारतीय संस्कृति को सींचने व संजोने का पुनित कार्य करना चाहते हैं वेद विद्यालय के बटुक
By Deshwani | Publish Date: 6/5/2018 6:40:06 PM
मोतिहारी/ सुधांशु कुमार मनीष
संस्कृत साहित्य व संस्कार की भाषा है। सद्भाव व सुज्ञान की भाषा है। जैसा कि हम जानते है कि भारतीय संस्कृति का मेरुदंड संस्कृत भाषा एवं साहित्य है। जिसमें वैदिक ऋषियों की वाणी वैदिक मंत्रों एवं ब्राह्मण साहित्य के रूप में निबद्ध है। पूर्वी चंपारण के मोतिहारी में स्थापित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान वेद विद्यालय के परिवेश को देखकर द्वितीय काशी नजर आने लगता है। यहां के बच्चे भारतीय परिधान धोती, कुर्ता मोटे मोटे शिखाओं से युक्त ललाट पर भस्म का लेपन कर जब वेद पाठ करते है तो मानो स्वर्ग की अनुभूति होने लगती है। मन प्रफुलित हो जाता है।
वर्ष 2002 में स्थापित वेद विद्यालय को 5 में मिली मान्यता-
आज इस वेद विद्यालय में लगभग सभी वेदों का मौलिक अध्ययन बटुकों को कराया जा रहा है। इसमें बिहार प्रदेश के अलावे उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश व पड़ोसी देश नेपाल के छात्र अध्ययन कर रहे है।
विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पांडेय ने बताया कि वर्ष 2002 में वसंतपंचमी के दिन इस संस्थान की स्थापना अध्यक्ष पं. योगेंद्र पांडेय के द्वारा की गई। उसके बाद अक्टूबर 2005 में महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान उज्जैन से मान्यता मिली।
6 दर्जन से अधिक बच्चे वेद का अध्ययन कर रहे-
स्थापना के बाद यह संस्थान निरंतर आगे बढ़ता गया। यहाँ लगभग छह दर्जन से अधिक बच्चे वेदाध्ययन कर रहे हैं।
प्राचार्य श्री पांडेय ने बताया कि इस संस्थान में पांचवी उत्तीर्ण छात्रों का नामांकन होता है। सातवे वर्ष में संस्थान द्वारा वेद विभूषण की डिग्री दी जाती है। यह डिग्री इंटरमीडियट के समकक्ष है। यहां के बटुकों से पूछने पर बताया कि वे सब ऑफिसर नहीं, विद्वान बनकर भारतीय संस्कृति को सींचने व संजोने का पुनित कार्य करना चाहते हैं।