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मखाना उत्पादन तकनीकी को ले शॉट कोर्स जून-जुलाई में : डॉ राजेश कुमार
By Deshwani | Publish Date: 19/5/2017 3:13:17 PM
मखाना उत्पादन तकनीकी को ले शॉट कोर्स जून-जुलाई में : डॉ राजेश कुमार

कटिहार। बिहार में कटिहार सहित पूर्णिया प्रमण्डल व बिहार के कई प्रखण्डों में बेकार पड़े जलजमाव वाले क्षेत्रों की समग्र उचित विकास एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिए देश के विभिन्न राज्यों के कृषि वैज्ञानिक मखाना उत्पादन तकनीक ज्ञान प्राप्त करने के लिए भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय पूर्णिया आएंगे। 

पूर्णिया कृषि महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. राजेश कुमार ने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के द्वारा किसानों को अधिक से अधिक आमदनी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मखाना उत्पादन तकनीकी आधारित विषय पर शॉट कोर्स का आयोजन जून-जुलाई में किया जाएगा । डॉ. राजेश ने बताया कि देश भर में देखा जाए तो जलजमाव वाले क्षेत्र लगभग 15.26 मिलियन हेक्टेयर है। यह भारत के भूगौलिक क्षेत्रफल का 4.63 प्रतिशत है। इन बेकार पड़े जलजमाव वाले क्षेत्रों की समग्र उचित विकास एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिए मखाना उत्पादन तकनीकी एक बेहतर विकल्प है । मखाना सह मत्स्यपालन तकनीकी द्वारा कम लागत में प्रति हेक्टेयर लाखों रुपये को ध्यान में रखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद. नई दिल्ली ने जून-जुलाई में दस दिवसीय शॉट कोर्स का आयोजन करने का प्रस्ताव अनुमोदित किया है। 
उन्होंने बताया कि भारतीय अनुसंधान परिषद नई दिल्ली ने देश के अन्य संबंधित संस्थानों को इस दिशा में आगे बढ़कर बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर (भागलपुर) के साथ मिलकर कार्य करने की आवश्यकता पर जोड़ दिया है। मखाना की खेती एक वृहद परियोजना बनकर भविष्य में जलवायु परिवर्तन के परिपेक्ष में लघु एवं सीमांत किसानों के लिए बेहतर विकल्प सिद्ध होगा। मखाना की मुख्य फसल मार्च महीने में लगाया जाता है, जिसके लिए पौधशाला दिसम्बर महीने में तैयार किया जाता है, लेकिन विगत चार वर्षों से मखाना की अगेती फसल हेतु उन्नतशील मखाना जर्मप्लाज्म के चयन के अनुसंधान के फलस्वरुप जीनोटाइप-25 का चयन किया गया है, जिसकी पौधशाला अक्टूबर महीने में लगाया जाता है और दिसम्बर महीने में मखाना का पौधा रोपनी के लिए तैयार हो जाता है। इस तरह मखाने की अगेती फसल से किसानों को अधिक आमदनी होगी। क्योंकि मखाना लावा बनाने के शुरुआती दिनों में मखाना बीज (गुड़ी) की दर आठ हजार रुपये से ग्यारह हजार रुपये प्रति क्विंटल रहती है जो क्रमशः धीरे-धीरे घटते हुए चार हजार रुपये से पाँच हजार प्रति क्विंटल हो जाती है।
 
 
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