प्रधानमंत्री मोदी कल वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए कोसी रेल महासेतु का करेंगे उद्घाटन, 22 किमी में सिमट जाएगी 298 किमी की दूरी
नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार ने अपनी झोली खोल दी है। बिहार की दशा-दिशा बदलने के लिए प्रधानमंत्री मोदी लगातार कई परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कल यानि 18 सितंबर को भारतीय रेल की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में शामिल कोसी नदी पर बने दो किमी. लंबी रेल महासेतु का उद्घाटन करेंगे।
प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से जारी एक बयान में कहा गया कि वीडियो कॉन्फ्रेंस से होने वाले कोसी रेल महासेतु का उद्घाटन बिहार के इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण होगा क्योंकि यह इस क्षेत्र को पूर्वोत्तर भारत के राज्यों से जोड़ेगा। यह मौका बिहार के लिए एक ऐतिहासिक क्षण के जैसा होगा। पीएमओ के मुताबिक ‘कोसी रेल महासेतु का उद्घाटन क्षेत्र के लोगों के 86 साल के इंतजार को खत्म करेगा। महासेतु के साथ मिथिला और कोसी के बीच सीधा रिश्ता बन जाएगा।
बता दें कि पुल नहीं रहने से पहले कोसी से मिथिला जाने के लिए करीब 300 किमी की दूरी ट्रेन से तय करनी पड़ती थी। कोसी महासेतु और बलुआहा पुल बनने के बाद सड़क मार्ग से कोसी और मिथिला का मिलन हो गया। अभी निर्मली से सरायगढ़ तक का सफर दरभंगा-समस्तीपुर-खगड़िया-मानसी-सहरसा होते हुए 298 किलोमीटर का है। पुल के निर्माण से 298 किमी की दूरी मात्र 22 किमी में सिमट जायेगी।
इसके अलावा पीएम नरेंद्र मोदी 12 रेल परियोजनाओं का उद्घाटन भी करेंगे। जिसमें किउल नदी पर एक रेल सेतु, दो नई रेल लाइन, पांच विद्युतीकरण से संबंधित योजना, एक इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव शेड के अलावा बाढ़ और बख्तियारपुर में तीसरी लाइन की परियोजना भी शामिल है। सालों से लोग रेल महासेतु की मांग कर रहे थे। इससे हजारों लोगों को फायदा मिलेगा। इन योजनाओं के अलावा भी पीएम मोदी बिहार को कई सौगात देने जा रहे हैं।
बता दें कि 1.9 किमी लंबे महासेतु का शिलान्यास 2003 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। उस समय इस पुल की लागत 323.41 करोड़ थी। समय बढ़ने के साथ ही पुल की लागत बढ़कर 516.02 करोड़ रुपए हो गई।
गुजरे दिनों को देखें तो भीषण बाढ़ में पुल ध्वस्त हो गया था। इसके बाद कोसी और मिथिला में दूरी बढ़ गई थी। साल 1887 में बंगाल नॉर्थ वेस्ट रेलवे ने निर्मली और सरायगढ़ के बीच मीटरगेज रेललाइन का निर्माण किया था। उस वक्त कोसी नदी का बहाव इन दोनों स्टेशन के बीच नहीं था। कोसी की एक सहायक नदी तिलयुगा बहती थी। तिलयुगा नदी पर ही ढाई सौ फीट लंबा पुल बनाया गया था। साल 1934 में कोसी इलाके में आई भीषण बाढ़ के दौरान पुल पूरी तरह ध्वस्त हो गया। वहीं, कोसी नदी निर्मली और सरायगढ़ के बीच बहने लगी थी।
पीएमओ ने बताया कि इस सेतु की लम्बाई 1.9 किलोमीटर है और इसके निर्माण पर 516 करोड़ रुपये की लागत आई है। बयान में कहा गया, ‘भारत-नेपाल सीमा के निकट स्थित सेतु का रणनीतिक महत्व है। इसका निर्माण कार्य कोरोना संक्रमण काल के दौरान पूरा हुआ है और इसमें प्रवासी मजदूरों ने भी अपना योगदान दिया है।