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“मोक्ष” मांग रही मोक्षदायिनी मां गंगा
By Deshwani | Publish Date: 20/8/2019 3:00:45 PM
“मोक्ष” मांग रही मोक्षदायिनी मां गंगा

नई दिल्ली। संगीता कुमारी। युग-युगांतर से देव-दानव-मानव सभी को मातृत्व भाव से वात्सल्य लुटाने वाली मां गंगा आज अपनी ही संतति से त्रस्त हैं। समस्त प्राणियों के पापों का नाश कर उन्हें पुण्यदान करने वाली भागीरथी आज मुक्ति मांग रही हैं। आत्मा-परमात्मा का मिलन कराकर लोक-परलोक संवारने वाली मोक्षदायिनी आज खुद के लिए “मोक्ष” मांग रहीं हैं। 

 

 
देवों के देव महादेव की शिखा से निकलती गंगा जब मानव के लिये में धरती पर उतरती है तब स्वच्छ निर्मल होती है। मगर उसकी पवित्रता को पूजते-पूजते मनुष्य उसे कब अपवित्र कर देता है मनुष्य को अहसास भी नहीं होता है। लौकिक जीवन में किये गये अपने पापों को अनेक समस्याओं का नाम देकर लोग गंगा स्नान करके अकसर उसे दूर करने का प्रयास करते हैं।
 
माना कि हमारे देश की मुख्य पहचान हमारे देश की अनेक समस्याएं बन गयी हैं। जिनमें से सबसे मुख्य समस्या हमारी जीवनदायनी मां गंगा नदी को स्वच्छ करने की भी है। वर्षों से गंगा सफाई के नाम पर लाखों करोड़ रुपये कागजों में बह गये फिर भी दूषित होती गंगा अपना मैला आंचल लिये जन सेवा के लिये बहती रहती है। गंगा के आंसू मनुष्य को दिखते नहीं क्योंकि वह अपना दर्द अपने ही दामन में छिपा बहती रहती है। समुद्र से मिलने के लिये बेबस रहती है। बहना चलना उसका काम है। मनुष्यों द्वारा पूजा जाना और उसमें सारी गंदगी बहा देना मनुष्य का काम है। गंगा अपना दर्द किसी से कहती नहीं क्योंकि वह मां है। मां के जैसी सिर्फ देती रहती है। 
 
 
हम मनुष्यों ने विकास के नाम पर उसमें भर भरकर गंदगी डाला है। आजतक डालते आ रहे हैं। मानो हमने मां गंगा को पूज्यनीय का दर्जा देकर अपना फर्ज पूरा कर लिया है। हर महीने कई दिनों गंगा स्नान दान के नाम करोड़ो लोगों द्वारा गंगा के दर्शन होते हैं; सिर्फ अपने लाभ के लिये! काश कि हर महीने इन करोड़ों लोगों द्द्वारा गंगा सफाई करने हेतु गंगा दर्शन के लिये जाया जाता तो अब तक गंगा साफ हो चुकी होती। मगर हम तो अपने पाप धोने जायेंगे क्योंकि गंगा मां को पाप हरने वाली दैवी मां का दर्जा जो दे रखा है। इतना बड़ा दर्जा देना ही हमारी महानता है। हमारी सोच में ही बचपन से यह विकसित कर दिया जाता है कि गंगा मां के जल में स्नान करने से सारे पाप धुल जाया करते हैं। हमें बचपन से यह क्यों नहीं सिखाया जाता कि गंगा को साफ रखने से हमारे पाप धुल जायेंगे। 
 
 
शिवालय की पवित्र हिमालय भूमि को छोड़कर गंगा हम मनुष्यों को शुद्ध जल देने हेतु अपनी यात्रा प्रारम्भ करती है और हम उसे केवल अपनी आर्थिक उन्नत्ति की गंदगी देकर दूषित कर देते हैं। कहीं कहीं तो गंगा इतनी मैली है कि व्यक्ति स्नान करना तो दूर वहां खड़ा होकर सांस भी नहीं ले सकता। तरक्की की फैक्ट्रियां शहरी को बढ़ाती हुई अपने पीछे बड़े बड़े नालों से गंगा में हर दिन हजारों टन किलों कचरा भरती रहती है। आखिर कुछ पाने के लिये कुछ खोना भी पड़ता है! मगर हमें सोचना होगा कि हम कितना पा रहे हैं और उसके बदले में कितना अधिक खो रहे हैं। 
 
पिछले कुछ वर्षों में गंगा सफाई अभियान बहुत जोर शोर से चला। सफाई हुई व सफाई बनी रहे उसके लिये जगह जगह सड़क की खुदाई करके भीतर बड़े बड़े पईप लाईनें भी बिछाई गयीं। करोड़ों रुपये केंद्र सरकार द्वारा गंगा सफाई हेतु दिया गया। अनेक नई एनजीओ गंगा सफाई हेतु जगह जगह गठित भी हो गयीं। 
 
 
गंगा अपने आपको खुशनसीब समझने लगी कि चलो अब तो मैं स्वच्छ हो ही जाऊँगी। भीष्म पुत्र पाकर मां गंगा अपने आपको धन्य समझने लगी। हमारे देश में यही सबसे बड़ी समस्या है कि समस्या बनी रहती है। समस्या को पूर्णत: समाप्त करके हमारे देश के पक्ष विपक्ष नेता खुद को बेरोजगार करना नहीं चाहते!  आखिर विरोधियों के लिये भी तो कोई काम छोड़ना जरूरी है ताकि वो विरोध करते रहें और देश में लोक का तंत्र है सबको दिखता रहे। दिखावा भी जरूरी है क्योंकि नेताओं को लगता है कि दिखावा नहीं होगा तो जनता उनको पूछेगी नहीं। वर्षों से नेताओं ने जनता को दिखावा दिखा दिखाकर आदत जो खराब कर दी है। जनता भी नेताओं के दिखावे से खुश हो जाती है। जनता को लगता है कि गंगा सफाई की पूरी जिम्मेदारी नेताओं की है और नेताओं का कहना है कि जनता को भी अपना कुछ फर्ज गंगा सफाई में निभाना चाहिये। 
 
हमारे देश की जनता माँ गंगा के लिये फर्ज निभाना नहीं जानती है। वह तो केवल गंगा मां के चरणों में जाकर डुबकी लगाकर अपने पाप धोना जानती हैं क्योंकि हमारे देश की समस्याएँ रास्ता तलाशना जानती हैं समाधान नहीं!...   
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