बृजनन्दन
गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की पराजय ने और भारतीय जनता पार्टी की जीत देश की समस्त राजनीतिक पार्टियों को सोचने के लिए विवश कर दिया है। विकास का कोई विकल्प नहीं हो सकता। उसके आगे जातिवाद क्षेत्रवाद सारे फैक्टर आउट हो चुके हैं। वास्तव में भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात का जो विकास किया है उसी की बदौलत नरेंद्र मोदी आज प्रधानमंत्री हैं। इस चुनाव में कांग्रेस ने उसे झुठलाने का प्रयास किया। जनता ने भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत देकर नरेन्द्र मोदी को और मजबूती देने का काम किया है। गुजरात विधानसभा चुनाव पर देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की निगाहें थी। हिमाचल विधान सभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस सरकार को गिराकर अपनी सरकार बनाई, लेकिन इसकी चर्चा चैनलों पर नहीं थी। क्योंकि गुजरात चुनाव से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा जुड़ी थी। इसीलिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी अपना पूरा जोर गुजरात विधानसभा चुनाव पर लगाया था। कांग्रेस ने पटेलों, दलितों और अल्पसंख्यकों को पूरी तरह से भाजपा के खिलाफ भड़काने का काम किया। यही नहीं नरेंद्र मोदी की प्रखर हिंदुत्व की छवि की काट के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने हिन्दू जनमानस को भ्रमित करने के लिए कई ओछे तरीके का इस्तेमाल किया। अपने को जनेऊधारी पंडित कहलाने के लिए 26 मंदिरों में मत्था टेके। समर्थकों ने इसका पूरा प्रचार भी किया। राहुल ने मंदिरों की खूब परिक्रमा की। जनता राहुल के बहकावे में नहीं आई। असली नकली में फर्क करना जनता बखूबी जानती है क्योंकि कस्तूरी को अपनी उपस्थिति प्रमाणित करने की जरूरत नहीं होती है। गुजरात की जनता गोधरा कांड को भूल नहीं सकती। राहुल गांधी अभी तक अपने को सेकुलर कहलाना और मुस्लिमों के बीच टोपी लगाना और मजार जाना पसंद करते थे।
यह बात अलग है कि कोई भी पार्टी हर समय नहीं जीतती लेकिन राहुल गांधी के खाते में लगातार हार ही लिखी जा रही है। राहुल गांधी की ताजपोशी हुई। कांग्रेस गुजरात विधानसभा चुनाव हार गई और हिमाचल प्रदेश में भी अपनी सरकार से हाथ धोना पड़ा। यह राहुल गांधी के लिए बहुत बड़ा सबक है।
फिर भी राहुल गांधी को हताश और निराश होने की जरुरत नहीं है। सत्ता समीकरण और सामंजस्य बैठाने की राजनीति छोड़ कर सड़क, संघर्ष और संस्कार की राजनीति शुरू करें। क्योंकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का ताजा उदाहरण सामने कांग्रेस ने सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा रिजल्ट सबके सामने है। कांग्रेस गर्त में चली गई। इसलिए राहुल को अपने कांग्रेस के पूर्व नेताओं से सबक लेते हुए जमीनी लड़ाई शुरू करें। जनता के बीच के कार्यकर्ताओं को महत्व दें। चापलूसों से दूर रहते हुए कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ता तैयार करें। दुर्लभ कुछ भी नहीं है भारत की जनता बड़ी उदार है। बड़ी जल्दी खुश होती है और पल भर में नाराज भी होती है। 1975 में आपातकाल इंदिरा जी ने लगाया जनता विरोध में खड़ी हो गई, बाद के चुनाव में कांग्रेस की पुनः वापसी हो गई।
राहुल की असफलता का सबसे बड़ा कारण यह है कि वह जनता से अपने को जोड़ नहीं पाते। वह भारत की रीति-नीति, संस्कृति और परम्पराओं से परिचित नहीं हैं। कांग्रेस में कार्यकर्ता कम और नेता ज्यादा हो गए हैं। अधिकांश नेता क्षेत्र के बजाय, दरबारी करना ज्यादा पसंद करते हैं। आने वाले समय में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनाव में जीत के लिए कार्यकर्ताओं का उत्साह बनाए रखना राहुल गांधी के लिए बड़ी चुनौती है। अब वे अध्यक्ष होने के नाते अपनी ज़िम्मेदारी से भाग नहीं सकते। यश अपयश उनके ही माथे आने वाला है। गुजरात व हिमाचल की पराजय ने गांधी को विपक्ष के नेता बनने लायक नहीं छोड़ा है। प्रांतों के छत्रप राहुल गांधी को अपना नेता मानने को तैयार नहीं हैं। इसलिए 2019 कांग्रेस के लिए कठिन परीक्षा की घड़ी है। दोनों राज्यों में बीजेपी की जीत के बाद मोदी ने कहा सुशासन और विकास की जीत हुई है।
अमित शाह ने कहा वंशवाद, जातिवाद और तुष्टिकरण पर विकास की जीत है। अब 2019 में राहुल गांधी की राह आसान नहीं है। लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस को दम दिखाना होगा। राहुल के सामने कर्नाटक को बचाने की चुनौती है। अगर होने वाले राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन नहीं किया तो कांग्रेस के सहयोगी दल राहुल को अपना नेता मानने से इन्कार कर देंगें। इसलिए राहुल को कांग्रेस कार्यकर्ताओं की हौसला आफजाई करनी होगी और उनमें संघर्ष का जज्बा पैदा करना होगा।
अब जनता कांग्रेस की तोड़ने वाली चुनावी रणनीति को भी जान चुकी है। कांग्रेस हर चुनाव में हार्दिक पटेल और कन्हैया कुमार जैसे छुटभैये नेताओं को खड़ा कर भारतीय जनमानस की जनभावनाओं को भड़काने का काम रही है। इससे राहुल को बचना होगा। क्योंकि झूठ फरेब की राजनीति अब चलने वाली नहीं है। स्वस्थ और मूल्य आधारित राजनीति की ओर देश बढ़ रहा है। कांग्रेस को संस्कृति, संस्कार और समर्पण आधारित राजनीति की ओर बढ़ना होगा। कांग्रेस के कैडर बेस आधारित कार्यकर्ताओं और नेताओं को आगे कर जनता के बीच जाना होगा। कांग्रेस भी बहुत सारे लोकप्रिय नेता हैं, जरूरत है राहुल को उन्हें पहचानने और अवसर देने की।
देश परिवर्तन की ओर अग्रसर हो चुका है। जनता को अब मुद्दों के आधार पर भटकाया नहीं जा सकता है। इसीलिए भाजपा अब संवेदनशील मुद्दों पर बात न कर काम करने पर विश्वास कर रही है। कांग्रेस ने गुजरात में जनता को जातियों में बांटने का काम किया। कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ हार्दिक,जिग्नेश और अल्पेश को आगे किया, लेकिन फिर भी चित्त हो गयी। कांग्रेस अब महज पांच राज्यों में बची है जबकि 14 राज्यों में भाजपा और पांच राज्यों में भाजपा के सहयोगी दलों की सरकारें हैं। कुल मिलाकर 19 राज्यों में भाजपा सत्ता में है। भाजपा की स्थिति और मजबूत होने जा रही है। कर्नाटक कांग्रेस के पाले से जाने वाला है। राजस्थान भाजपा के लिए थोड़ी मुश्किल है लेकिन लोगों का कहना है कि जब मोदी गुजरात में 22 साल की सत्ता विरोधी लहर को रोक सकते हैं तो दस साल की सत्ता विरोधी लहर को जरूर रोकने में सक्षम होंगे। हालांकि कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखने वाली भाजपा के लिए थोड़ा चिंता की बात है कि कांग्रेस ने गुजरात में बढ़त बना ली। 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 180 में से 115 सीटें मिली थी। इस बार भाजपा 99 पर सिमट गयी। कांग्रेस 61 सीटों से बढ़कर 80 पर पहुंच गयी। गुजरात और हिमाचल में भाजपा की जीत ने यह साबित कर दिया है कि देश में अभी भी मोदी का जादू चल रहा है। इससे पहले यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा को मोदी के नाम पर जीत मिली। वहीं यूपी नगर निगम में भी भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया। कांग्रेस और भाजपा के सोच में फर्क है। भाजपा नेतृत्व देश की नब्ज को समझने वाला है तो कांग्रेस नेतृत्व भारतीय संस्कृति व परम्पराओं से अपरिचित है। कांग्रेस को चुनावी जंग में सफल होने के लिए भारत की आन-मान-शान तथा गौरवशाली अतीत की समझ रखते हुये सबक लेने की जरुरत है।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से जुड़े हैं।)