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रांची
(जयप्रकाश नारायण की जयंति 11 अक्टूबर पर विशेष)सम्पूर्ण क्रांति के जनक जय प्रकाश नारायण
By Deshwani | Publish Date: 10/10/2017 3:05:58 PM
(जयप्रकाश नारायण की जयंति 11 अक्टूबर पर विशेष)सम्पूर्ण क्रांति के जनक जय प्रकाश नारायण

रांची, (हि.स.)। लोकनायक जय प्रकाश नारायण को उनके जन्म दिवस 11 अक्टूबर को स्मरण मात्र से शीश स्वतः नत हो जाना उनके व्यक्त्तिव और मार्ग दर्शन को प्रतिम्बित करता है। उन्हें हम ’’सम्पूर्ण क्रांति के जनक’’ मानते है और लोकनायक भी कहते हैं। वह क्रांति के पुजारी थे तो दया के प्ररेक अर्थात भू-दान के समर्थक भी। इस बहुयामी प्रतिभा का जन्म हरसूदयाल और फूल रानी देवी के घर 11 अक्टूबर को बिहार के सारण जिले के सिताब दियारा ग्राम के सन् 1902 में हुआ था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा सिताब दियारा में और माध्यमिक शिक्षा पटना कॉलेजिएट स्कूल में ली। सन् 1921 में गांधी जी के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के कारण पढ़ाई तो उस समय छोड़ दी लेकिन बाद में डॉ0 राजेन्द्र बाबू द्वारा चल रहे बिहार विद्यापीठ से इंटरमीडिएट परीक्षा पास कर ली। उच्च शिक्षा के लिए वे बनारस आए परन्तु उसी समय अमेरिका के ओहयो विश्वविद्यालय से प्रदत्त छात्रवृति पर स्नातक और फिर स्नातकोत्तर किया। उनका एक शोध पत्र ’सोसल वेरिएशन’ प्रशंसनीय है।
उनकी समाजवादी चेतना ने उन्हें कांग्रेस छोड़ने को विवश कर दिया और उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस समाजवादी दल की स्थापना की। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान गिरफ्तार कर उन्हें हजारीबाग जेल में रखा गया, जहां से वे फरार हो गए। पुनः गिरफ्तार होने पर 1946 में उन्हें कारागार से मुक्त कर दिया गया। 1954 तक समाजवादी विचारधारा से जुड़े रहे और 1957 में सर्वोदय आन्दोलन से जुड़ गए जहाँ उन्होने ’भूदान’ ’सम्पति दान’ ’ग्राम दान’ एवं ’जीवनदान’ के लिए सक्रिय कार्य किया। 1974 में बिहार और गुजरात के छात्र आन्दोलन का नेतृत्व करते हुए 1975 में आपातकाल लागू होने का पूरजोर विरोध करते हुए जेल गए। उनके मार्गदर्शन में 1977 में जनता पार्टी बनी और सम्पूर्ण देश में विजय श्री प्राप्त की। 08 अक्टूबर 1979 को सुबह 06 बजे जयप्रकाश नारायण जी का निधन हुआ। 
वह राजनीतिज्ञ ही नहीं अपितु एक लेखक और पथ प्रदर्शक भी थे। उनकी कुछ प्रमुख रचनाओं का संग्रह ’ए रीवोल्यूशनरी क्वेस्ट’ है। जय प्रकाश जी ने लोकतंत्र की संसदीय व्यवस्था को उत्तम नही माना क्योंकि संसदीय लोकतंत्र में अत्यधिक केन्द्रीयकरण की प्रवृत्ति, राजनीतिक दलों का वर्चस्व, खर्चीली तथा दूषित चुनाव प्रणाली फलने-फुलने लगती है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि जनता पर आज भी उसी तरह शासन किया जाता है जैसे ब्रिटिश शासन काल में होता था। सत्ता और पद के लिए प्रपंच और अधिनस्थ का दमन आज भी होता है। जनता आज भी असहाय है तो प्रजातंत्र कैसा? इसी विवशता ने उन्हें ’’सम्पूर्ण क्रांति’’ का नायक बना दिया और उसे बाद में उन्होंने ’’समग्र क्रांति’’ का रूप दिया। लोकनायक ने कहा कि सम्पूर्ण क्रांति में सात क्रांतियां शामिल है - राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक और आध्यात्मिक क्रांति। इन सातों क्रांतियों को मिलाकर सम्पूर्ण क्रान्ति होती है। समग्र क्रांति में सन्निहित सामाजिक क्रांति-समाज में समानता बन्धुत्व की स्थापना, आर्थिक क्रांति में आर्थिक विकेन्द्रीकरण, राजनीतिक क्रांति में राजनीतिक भ्रष्टाचार की समाप्ति, राजनीतिक विकेन्द्रीकरण, अर्थात जनता को अधिकार सौपना और सहभागी बनाना, सांस्कृतिक क्रांति में उनके मूल्यों की रक्षा और उनका जनजीवन में विकास करना, शैक्षणिक क्रांति में- शिक्षा को रोजगारोन्मुख बनाना अर्थात रोजगार की डिग्री से नही बल्कि योग्यता का आधार बनाना, आध्यात्मिक क्रांति में नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की ओर भौतिकवाद को लाना एवं वैचारिक क्रांति में मानवीय विचारों की जागृति उत्पन्न करना मूल उद्देश्य था। उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य था, अपनी मातृभूमि की सेवा करना। वह अपने लक्ष्य से कभी भी विमुख नहीं हुए। देश के लिए उनके द्वारा किये गये महान कार्यों के लिए उन्हें 1999 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर ’भारत रत्न’ से सम्मानित करने की घोषण की गई।
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