कुशीनगर। भानु तिवारी।
कुशीनगर। जिले में नकदी फसल के रूप में गन्ने के बाद केले की खेती बड़े पैमाने पर हो रही है। यहां से लखनऊ, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और नेपाल में केले की आपूर्ति होती है। पर, केला मंडी न होने से यहां के किसानों को वाजिब दाम नहीं मिल पाता है। बिचौलिए और बाहरी खरीदार इसका लाभ उठाते हैं। चुनाव की बयार चली तो फिर केला मंडी की मांग उठने लगी।
जिले में करीब 3500 हेक्टेयर क्षेत्रफल में केले की खेती होती है। वहीं उत्पादन 36.5 लाख क्विंटल पैदावार होती है।
जनपद क्षेत्र के किसानों ने एक दशक पहले नकदी फसल के रूप में केले की खेती शुरू की। पहले कुछ किसान केले की खेती शुरू किए बाद में केले की खेती से होने वाले फायदे को देख कर काफी संख्या में लोगों ने इसकी ओर कदम बढ़ाया। धीरे-धीरे केले की खेती काफी लोकप्रिय होती गई। पौध तैयार करने से लेकर खेती की नई विधि ,सब स्थानीय स्तर पर जागरूक किसानों ने शुरू कर दी। इसे गन्ने के विकल्प के तौर पर देखा जाने लगा, लेकिन फसल बेचने के लिए आस-पास कोई मंडी नहीं होने से वाजिब मूल्य किसानों को नहीं मिलता। फायदा किसानों की बजाए बाहरी व्यापारी व बिचौलियों ने उठाना शुरू कर दिया। किसान राधेश्याम यादव, श्रीकृष्ण यादव, सुदामा, नरेंद्र गुप्ता, दयानंद, रामचंद्र गुप्ता बताते है कि मंडी नहीं होने से सही दाम नहीं मिल पाता है।
यह फसल ऐसा है कि तैयार होने के बाद रखी नहीं जा सकता। इसी वजह से बाहरी व्यापारी व उनके एजेंट मनमाने दाम पर उधार केला ले लेते हैं। महीनों रकम नहीं देते है। कभी कभी तो पूरा धन डूब जाता है। इसके अलावा मौसम की मार से भी कई बार फसल बर्बाद हो जाती है। सरकार की तरफ से कोई सहायता नहीं मिलती है। हर चुनाव में केला मंडी व फसल सुरक्षित रखने का स्टोर बनाने व फसल बर्बाद होने पर भरपाई का वादा नेता करते हैं, लेकिन पूरा नहीं हो पाता है। परेशानी के चलते अब केला की फसल व नेताओं के वादे से मन उचटने लगा है। वैसे फिर चुनाव का वक्त आया तो यह मुद्दा उछलने लगा है।