डॉ लोहिया, भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव के दर्शन : मानव मात्र को हर प्रकार के दुखों एवं दासता से मुक्त कराना
कुशीनगर। भानू प्रताप तिवारी।
भारतीय समाजवादी दर्शन के प्रणेताओं में एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ राम मनोहर लोहिया का आज जन्मदिन है। जबकि शोषण, अन्याय, विषमता एवं गुलामी को जड़-मूल से उखाड़ फेंकने का संकल्प रखने वाले आजादी के महान योद्धाओं भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव का आज शहादत दिवस है। संयोगवश चारों महानुभावों का उद्देश्य मानव मात्र को हर प्रकार के दासता एवं दुखों से मुक्त कराना था।
उक्त विचार युवा समाज सेवी व जिलाध्यक्ष राजू सिंह पटेल के हैं। उनका कहना है कि प्रारंभ में डॉक्टर लोहिया का भी भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु की तरह मात्र लक्ष्य (साध्य )की पवित्रता में ही विश्वास था। लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सभी रास्तों विकल्पों को अपनाने के पक्षधर थे। लेकिन बाद में गांधी के प्रभाव में डॉक्टर लोहिया ने साध्य एवं साधन की पवित्रता में आस्था दिखाई। खूनी क्रांति की जगह कानून (संसद) की क्रांति क्षमता में भरोसा पैदा किया।
यूरोपीयन दर्शन के विपरीत डॉ लोहिया ने संसद को केवल चुनाव का मात्र माध्यम नहीं माना बल्कि संसद को गतिशील एवं सरकारों को संवेदनशील एवं जवाबदेह बनाए रखने के लिए संसद के बाहर सड़क की महत्ता को भी प्रतिपादित किया। फलस्वरुप आजादी बाद भी स्वदेशी सरकारों के खिलाफ लगातार जन आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाने की धारा विकसित की। जिसके लिए देश एवं दुनिया के सामने " जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं करती " जैसे सिद्धांत प्रतिपादित कर संसद एवं सरकारों की निरंकुशता पर अंकुश लगाए रखने का अधिकार आमजन के हाथ में उपलब्ध कराया।
अन्याय का लगातार प्रतिकार एवं सरकार के अधिनायकी प्रवृति के खिलाफ अनवरत संघर्ष की जिजीविषा भारतीय समाजवादियों की विशिष्टता रही है।
दुनिया के किसी देश में एक राजनीतिक दल का अल्प अवधि में लगातार टूटना तथा प्रत्येक टूटे हुए हिस्से की ना खत्म होने वाली चमक बरकरार रहना शोध का विषय बनना चाहिए था ? अहिंसक तरीके से अन्याय, अत्याचार एवं व्यवस्था के अहंकार के खिलाफ भारत के समाजवादी नेताओं का अदम्य संघर्ष दुनिया के अन्य साम्यवादी एवं समाजवादी संगठनों से अलग दिखता है।