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जम्मू-कश्मीर प्रशासन अनुच्छेद 35ए पर सुनवाई टालने की मांग को लेकर पहुंचा सुप्रीम कोर्ट
By Deshwani | Publish Date: 3/8/2018 6:17:15 PM
जम्मू-कश्मीर प्रशासन अनुच्छेद 35ए पर सुनवाई टालने की मांग को लेकर पहुंचा सुप्रीम कोर्ट

 नई दिल्ली। जम्मू कश्मीर के नागरिकों को विशेष दर्जा देने वाले और राज्य के स्थाई निवासी की परिभाषा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 35ए मामले में 6 अगस्त होने वाली सुनवाई टालने की मांग को लेकर राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को अर्जी दायर की। जम्मू-कश्मीर सरकार ने सुनवाई टालने के पीछे राज्य में पंचायत और स्थानीय चुनाव का हवाला  दिया है। दरअसल, इस अनुच्छेद को भेदभाव और समानता के अधिकार का हनन करने के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी है।

 
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अनुच्छेद 35ए को चुनौती देते हुए कहा गया है कि ये राज्य और राज्य के बाहर के निवासियों मे भेदभाव करता है। जम्मू कश्मीर की लड़कियों और लड़कों में भी भेद-भाव करता है। जम्मू कश्मीर की लड़की अगर दूसरे राज्य के पुरुष से शादी करती है तो उसके बच्चों का पैतृक संपत्ति मे हक नहीं रहता जबकि राज्य के लड़के अगर बाहर की लड़की से शादी करते हैं तो उनके बच्चों का हक ख़त्म नहीं होता। 
 
अनुच्‍छेद 35ए की संवैधानिक वैधता को याचिकाओं के जरिए चुनौती दी गई है.एनजीओ 'वी द सिटीजन' ने मुख्‍य याचिका 2014 में दायर की थी। इस याचिका में कहा गया है कि इस अनुच्छेद के चलते जम्मू कश्मीर के बाहर के भारतीय नागरिकों को राज्य में संपत्ति खरीदने का अधिकार नहीं है। वहीं कोर्ट में दायर याचिका पर अलगाववादी नेताओं ने एक सूर में कहा था कि अगर कोर्ट राज्य के लोगों के हितों के खिलाफ कोई फैसला देता है, तो जनता आंदोलन के लिए तैयार हो जाए।
 
यह कानून 14 मई 1954 को राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की ओर से लागू किया गया था। आर्टिकल 35ए जम्मू और कश्मीर के संविधान में शामिल है, जिसके मुताबिक राज्य में रहने वाले नागरिकों को कई विशेषाधिकार दिए गए हैं। साथ ही राज्य सरकार के पास भी यह अधिकार है कि आजादी के वक्त किसी शर्णार्थी को वह राज्य में सहूलियतें दे या नहीं। आर्टिकल के अनुसार, राज्य से बाहर रहने वाले लोग वहां जमीन नहीं खरीद सकते, न ही हमेशा के लिए बस सकते हैं। इतना ही नहीं बाहर के लोग राज्य सरकार की स्कीमों का लाभ नहीं उठा सकते और ना ही सरकार के लिए नौकरी कर सकते हैं। कश्मीर में रहने वाली लड़की अगर किसी बाहर के शख्स से शादी कर लेती है तो उससे राज्य की ओर से मिले अधिकार छीन लिए जाते हैं। इतना ही नहीं उसके बच्चे भी हक की लड़ाई नहीं लड़ सकते।
 
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