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अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में टंगी जिन्ना की तस्वीर पर मचा बवाल
By Deshwani | Publish Date: 5/5/2018 12:13:04 PM
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में टंगी जिन्ना की तस्वीर पर मचा बवाल

 लखनऊ। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में जिन्ना की एक तस्वीर पर बवाल मचा है।  मोहम्मद अली जिन्ना पर राज्य सरकार के एक मंत्री ने टिप्पणी कर विवाद खड़ा कर दिया है। वहीं दूसरी ओर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में जिन्ना को लेकर हिन्दू युवा वाहिनी और एएमयू छात्र संघ आमने-सामने आ गए। छात्रसंघ हॉल में टंगी वो तस्वीर क्या हिंदुस्तान की आहत भावनाओं को मुंह चिढ़ा रही है या फिर ये बता रही है कि भारत उस इतिहास को भी जी रहा है, जिसमें जिन्ना ने भी आजादी की लड़ाई में योगदान दिया था। यह इतिहास की वो भुलभुलैया है जिसमें हिंदू और मुसलमान एकजुट होकर हिंदुस्तानी बनकर अंग्रेजों से लड़ते-लडते आपस में लड़ बैठे।

1930 के दशक का आगाज होते होते आजादी की लड़ाई अपने चरम पर पहुंच गई। हिंदुस्तान गांधी में अपनी आशा की आखिरी किरण देख रहा था। देश एकजुट होकर अंग्रेजों का मुकाबला कर रहा था। इससे अंग्रेजों में खलबली मची तो उसने फूट डालो और शासन करो की नीति की तहत मुस्लिम भावनाओं को भड़काना शुरू किया। उस वक्त तक जिन्ना हिंदुस्तान छोड़कर लंदन में रहने लगे थे।

इसी दौरान मुस्लिम लीग के बड़े नेताओं चौधरी रहमत अली, अल्लामा इकबाल और आगा खान ने जिन्ना से बार बार गुहार लगाई कि वो भारत लौटें और मुस्लिम लीग को लामबंद करके इसकी बागडोर संभाले. 1934 में जिन्ना भारत लौटे। उन्होंने मुस्लिम लीग को उन्माद की सान पर चढ़ाना शुरू किया।

1937 में हुए सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली के चुनाव में मुस्लिम लीग ने कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी और मुस्लिम क्षेत्रों की ज्यादातर सीटों पर कब्जा कर लिया। हालांकि इस चुनाव में मुस्लिम बहुल पंजाब, सिन्ध और पश्चिमोत्तर सीमान्त प्रान्त में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रसंघ भवन में लगी जिन्ना की तस्वीर पर लोगों के जज्बात के साथ राजनीति का घात-प्रतिघात भी शुरू हो गया है। एएमयू से निकलकर छात्रों के विरोध का एक खेमा जेएनयू और जामिया मिलिया इस्लामिया से होते हुए दिल्ली के सड़कों पर अपना असर दिखाने लगा। दूसरी तरफ वैसे लोग भी हैं जो तत्काल जिन्ना की तस्वीर को जमीन पर पड़ा हुआ देखना चाहते हैं।

भारत-पाकिस्तान की सीमा और नियंत्रण रेखा का तनाव भी मानो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ भवन में टंगी इस तस्वीर पर उभर आई है। हिंदुस्तान में शिक्षा का एक अहम गढ़ एएमयू आजकल इस नफरत की आंच पर उबल रहा है कि जिन्ना की तस्वीर यहां रहनी चाहिए या नहीं, जिसकी शुरुआत स्थानीय भाजपा सांसद की मांग से हुई कि हिंदुस्तान में जिन्ना की तस्वीर का क्या काम?

विवाद की शुरुआत बीजेपी सांसद सतीश गौतम की ओर से कुलपति को लिखे खत से हुई कि जिसने भारत का विभाजन करवाया, उस जिन्ना की तस्वीर यूनिवर्सिटी में क्यों लगी रहे। इस पर हिंदुत्व की दुहाई देने वाले संगठनों ने विरोध प्रदर्शन करना शुरू किया। छात्र संघ और हिंदू संगठनों के बीच हिंसक झड़प हुईं. और फिर देखते देखते अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छावनी में बदल गया।

2 मई को एएमयू के कैंपस में हिंदू संगठनों का प्रदर्शन हुआ। जिन्ना का पुतला भी फूंका गया। पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी का कार्यक्रम था, जो रद्द करना पड़ा। इन सबके बीच विरोध में जब छात्र धरने पर बैठे तो आरोप लगा कि उन्होंने एक पत्रकार की पिटाई कर दी. एएमयू का बवाल अलीगढ़ से निकलकर लखनऊ और दिल्ली तक राजनीति के पीछे भागने लगा।

जिन्ना 1947 के हिंदुस्तान का अपराधी है, जिसने नई नई आजादी पाने वाले एक देश को खूनी बंटवारे का शिकार बना दिया। लेकिन जैसे हर अपराधी का एक अच्छा अतीत हो सकता है, वैसा ही एक अतीत जिन्ना का भी रहा है। अतीत के उन पन्नों में कहीं जिन्ना हिंदू मुसलमान एकता के पैरोकार दिखते हैं तो कहीं लोकमान्य तिलक को राजद्रोह से बचाने वाले बैरिस्टर के रूप में।

1947 में हिंदुस्तान के खूनी बंटवारे से तीन दशक पहले के मुहम्मद अली जिन्ना कुछ और थे। उस जिन्ना में देश के लिए लड़ने और अंग्रेजों को भारत से हटाने का जज्बा था. इसमें कांग्रेस के जिस नेता से जिन्ना सबसे ज्यादा प्रभावित थे, वो थे लोकमान्य बालगंगाधर तिलक। जब क्रांतिकारी खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी की फांसी की सजा हुई तो तिलक ने अपने अखबार केसरी में तुरंत स्वराज की मांग उठाई। इस पर अंग्रेजों ने तिलक पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया, जिसमें उनकी तरफ से जिन्ना ही वकालत कर रहे थे। लेकिन जिन्ना तिलक को बचा नहीं पाए और वो राजद्रोह के मामले में म्यांमार के मांडले जेल में 1908 से 1914 तक छह साल तक कैद रहे।

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