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संतों की प्रज्वलित शिक्षा ज्योति से चित्रकुट में फ़ैल रहा ज्ञान का प्रकाश
By Deshwani | Publish Date: 27/1/2018 2:55:36 PM
संतों की प्रज्वलित शिक्षा ज्योति से चित्रकुट में फ़ैल रहा ज्ञान का प्रकाश

चित्रकूट (हि.स.)। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच बँटी धर्म और आस्था की नगरी चित्रकूट भले ही आज विकास की बांट जोह रहीं हो,लेकिन धर्म नगरी में संतों द्वारा प्रज्ज्वलित की गई शिक्षा की अलख ज्योति आज हजारों युवाओं के अंदर व्याप्त अज्ञानता रूपी अंधकार को मिटाकर ज्ञान के प्रकाश को फैलाने का काम कर रही है।
जनहित में संतो द्वारा की गई इस पहल से समाज और परिवार से उपेक्षित और बोझ समझे जाने वाले दिव्यांग भी शिक्षित और आत्मनिर्भर बनकर परिवार का सहारा बनने के साथ-साथ राष्ट्र के निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं।
आजादी के सात दशकों के बाद भी चित्रकुट जहां रोजगार,स्वास्थ्य,सड़क,पानी, बिजली आदि तमाम बुनियादी समस्याओं से जूझ रहा है।वहीं धर्म नगरी चित्रकूट को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त संतों द्वारा शिक्षा की प्रज्जवलित की गई शिक्षा की ज्योति के कारण चित्रकूट आज दोनों प्रदेशों के हजारों युवाओं के जीवन में व्याप्त अंधकार रूपी अज्ञानता को दूर कर ज्ञान के प्रकाश को फैलाने का काम कर रहा है।
चित्रकूट में सर्वप्रथम राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख ने अनुसुईया आश्रम के महंत स्वामी भगवानानंदजी महाराज के आग्रह पर वर्ष 1991 में देश के पहले ग्रामीण विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। नानाजी ने इसका लक्ष्य धर्मनगरी में शिक्षा, स्वास्थ्य,स्वावलंबन एवं सदाचार के लिए काम करना निर्धारित किया था। उन्होंने धर्मनगरी में दीनदयाल शोध संस्थान के माध्यम से उद्यमिता विद्यापीठ, कृषि विज्ञान केन्द्र,सुरेन्द्रपाल ग्रामोदय विद्यालय,गुरुकुल संकुल, शैक्षणिक अनुसंधान केन्द्र, दिशादर्शन केन्द्र, जन शिक्षण संस्थान,आजीवन स्वास्थ्य संवर्धन महाविद्यालय,गौविकास एवं अनुसंधान केन्द्र,रामनाथ आश्रमशाला, कृष्णादेवी वनवासी बालिका आवासीय विद्यालय, परमानंद आश्रम पद्धति विद्यालय जैसे कई संस्थान खड़े किए। जो आज भी निरंतर प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करते नजर आ रहे है।
इसी प्रकार धर्म नगरी चित्रकूट को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले श्री तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य महराज ने भी 1996 को दृष्टिहीन विद्यार्थियों के लिए तुलसी प्रज्ञाचक्षु विद्यालय की स्थापना की। विकलांगों की उच्च शिक्षा के लिए 2001 में जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य महाराज ने दुनिया के पहले विकलांग विश्र्वविद्यालय ‘जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्व विद्यालय चित्रकूट की स्थापना की। इस विश्वविद्यालय में दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए अधिकांश सुविधाएं निःशुल्क या फिर नाममात्र के शुल्क पर उपलब्ध हैं। इस विश्विद्यालय में मौजूदा समय उत्तर प्रदेश,बिहार,मध्य प्रदेश,असम, महाराष्ट्र,छत्तीसगढ़,उत्तराखंड समेत कई प्रांतो के सैकडों छात्र -छात्राएं शिक्षा हासिल कर रहे है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जगद्गुरु द्वारा यह कार्य बिना किसी सरकारी सहायता के किया जाता है। देश-विदेश में आयोजित होने वाली रामकथाओं के माध्यम से मिलने वाले धन को दिव्यांग छात्रों के शैक्षिक उत्थान में खर्च किया जाता है।जगदगुरू विकलांगों में ही अपना भगवान देखते है।
इसी प्रकार संत श्री रविशंकर जी महाराज ’रावतपुरा सरकार’ ने चित्रकूट में श्री रावतपुरा सरकार संस्कृत उ0मा0 विद्यालय की स्थापना की। 2008 में श्री रावतपुरा सरकार कॉलेज ऑफ एजुकेशन के अंतर्गत बीएड एवं डीपीएड और 2009 में एमएड का पाठ्यक्रम शुरू हुआ। सत्र 2012-13 में श्री रावतपुरा सरकार प्राइवेट इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट का भी शुभारंभ किया गया। इसके अलावा धर्मनगरी में शिक्षा के क्षेत्र में संत श्रीरणछोर दास जी महराज द्वारा स्थापित श्री सदगुरु सेवा संघ ट्रस्ट के जरिये 1980 में विद्याधाम की स्थापना की गई।जिसका नाम बाद में सद्गुरु शिक्षा समिति रखा गया। इसके तहत श्रीराम संस्कृत महाविद्यालय, संगीत विद्यालय विद्याधाम उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,सद्गुरु पब्लिक स्कूल,कंप्यूटर शिक्षा,सद्गुरु नर्सिग विद्यालय,सद्गुरु नेत्र सहायक प्रशिक्षण केंद्र व सहकारी महिला समिति केंद्र चल रहे हैं।धर्म नगरी चित्रकूट में संतों द्वारा जलाई गई शिक्षा की ज्योति आज देश भर के हजारों युवाओं के जीवन में उजाला लाने का काम कर रहीं है।
जगदगुरू रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय चित्रकूट के कुलपति प्रो.योगेश चंद्र दुबे का कहना है कि जगदगुरू ने शिक्षा के माध्यम से दिव्यांगों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने का जो संकल्प लिया था वह आज पूरा होते नजर आ रहा है।विकलांग विश्वविद्यालय के शिक्षा हासिल करने वाला कोई भी छात्र आज बेरोजगार नहीं है। इसी से जगदगुरू के संकल्पों की पूर्ति होती नजर आ रहीं है।
वहीं चित्रकूट के समाजसेवी केशव शिवहरे और पंकज अग्रवाल का कहना है कि चित्रकूट आदिकाल से ही ऋषियों-मुनियों के शिक्षा के मंदिर गुरूकुल के रूप में स्थापित रहे है।धर्म नगरी को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले राष्ट्र ​ऋषि नानाजी देशमुख, संत रणछोड़ दास,जगदगुरू रामभद्राचार्य महाराज और संत श्री रविशंकर जी महाराज’रावतपुरा सरकार’ द्वारा धर्म नगरी में स्थापित की गई शिक्षा की ज्योति आज लोगों के जीवन का अंधेरा दूर करने का काम कर रहीं है।



 

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