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''जलीय जीव ही शुद्ध कर सकते हैं नर्मदा''
By Deshwani | Publish Date: 17/1/2018 11:22:25 AM
''जलीय जीव ही शुद्ध कर सकते हैं नर्मदा''

जबलपुर, (हि.स.)। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के शोधार्थी अर्जुन शुक्ला एवं शिवानी पिछले तीन सालों से नर्मदा पर शोध कर रहे हैं। उनका दावा है कि नर्मदा में मौजूद जीव जन्तु ही नर्मदा का पानी शुद्ध कर सकते हैं। साथ ही जल की शुद्धता रेत पर भी निर्भर है। 
नर्मदा नदी में मीठे पानी में पाए जाने वाले मोलस्का समूह के सैकड़ों जीव जन्तु रहते हैं जिनके जीवित रहने के लिए रेत की महत्वपूर्ण भूमिका है। पानी की अशुद्धता बढ़ने पर इनकी संख्या कम हो जाती है। शोधार्थियों ने माना कि उन्होंने जिस जगह जीव-जन्तु की प्रचुर संख्या देखी, वहां के पानी का टेस्ट किया। यह पानी प्रदूषण से पूरी तरह मुक्त था, जबकि जहां इनकी मौजूदगी कम थी, वहीं प्रदूषण ज्यादा मिला। इससे जीव-जन्तु की मौजूदगी को प्रदूषण नियंत्रण का कारण माना गया। बीते तीन वर्षों में नर्मदा में किए गए अपने शोध में सामने आए इन तथ्यों के बाद वे इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि नर्मदा को प्रदूषण मुक्त करने में उनमें मौजूद जीव जन्तु, बैक्टीरिया एवं वनस्पतियां सक्षम हैं जिनको संरक्षण की जरूरत है। नर्मदा में ऑक्सीजन लेवल बना रहना जरूरी है जिससे नर्मदा में जीव जन्तु जीवित रहेंगे और वे ही नर्मदा को प्रदूषण मुक्त भी करते हैं। 
नर्मदा जल के सैम्पल को लैब में शुद्ध करने के बाद टेस्ट कर जल के शुद्धिकरण की झूठी रिपोर्ट पेश की जाती रही है। एक ही पानी की अलग-अलग दो रिपोर्ट पूर्व में सामने आ चुकी है। ये रिपोर्ट ही नर्मदा के किनारे फैक्टरी एवं उद्योग लगाने की अनुमति प्रदान करने का कारण बनती है, यदि नर्मदा में जीव-जन्तु की मौजूदगी से नर्मदा प्रदूषण का स्तर देखा जाए, तो लैब की धांधली सामने आ जाएगी। इसके लिए बाकायदा एक विधि अुर्जन शुक्ला ने इजाद कर ली है।
 
गंदे नाले को शुद्ध कर रहे हैं बैक्टीरिया और एल्गी
नर्मदा नदी में मिलने वाले खंदारी नाले का गंदा पानी शुद्ध होकर नदी में मिले इसके लिए खंदारी में प्रदूषण नियंत्रण मंडल के साथ मिलकर साइंस कॉलेज के माइक्रो बॉयोलाजी विभाग एवं रादुवि प्रशिक्षण संस्थान के माइक्रो बायलॉजी विभाग प्रोजेक्ट चला रहा है। पहले नाले में अशुद्धता करीब 60 प्रतिशत थी, जबकि अब टेस्ट करने पर यह 50 प्रतिशत तक पहुंच गया है। लैब में पानी शुद्ध करने के लिए हुए प्रयोग में अब 30 प्रतिशत अशुद्धि ही रह गई है। 
साइंस कॉलेज की माइक्रोबायोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ नीलमा रायपुरिया ने बताया कि कई बैक्टीरिया ऐसे हैं, जो जल को प्रदूषित करने वाले तथा जल जनित बीमारियां फैलाने वाले बैक्टीरिया को खाते हैं। साथ ही वे पानी की गंदगी को कम करते हैं। बैक्टीरिया पानी के शुद्धिकरण का काम किया जा रहा है। खंदारी नाले में ऐसे बैक्टीरियों को छोड़ा गया है। इसी प्रोजेक्ट मेें एल्गी के माध्यम से प्रदूषण कम करने का भी काम चल रहा है। एल्गी पानी में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ाती है। ये कार्य रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के माइक्रो बायोलॉजी विभाग की डॉ अर्चना शर्मा के मार्गदर्शन में चल रहा है जिसकी रिपोर्ट तैयार होने पर अन्य नालों में बैक्टीरिया एवं एल्गी के माध्यम से ही जल का शोधन किया जाएगा।
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