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यज्ञानुष्ठान से प्रयाग कुम्भ की महत्ता सर्वाधिक: प्रो. पाण्डेय
By Deshwani | Publish Date: 12/1/2018 6:34:38 PM
यज्ञानुष्ठान से प्रयाग कुम्भ की महत्ता सर्वाधिक: प्रो. पाण्डेय

इलाहाबाद, (हि.स.)। पृथ्वी पर कल्याण की स्थिति ग्रहों के अनुग्रह से बनती है। यज्ञानुष्ठान से पृथ्वी का पोषण करने वाला कुम्भ ही है। प्रयाग में सबसे ज्यादा यज्ञानुष्ठान के प्रमाण मिलते हैं, इसलिए प्रयाग के महाकुम्भ की महत्ता अधिक है। कुम्भ घट का और जीवन का प्रतीक है।

उक्त विचार राष्ट्रधर्म के सम्पादक एवं लखनऊ विश्वविद्यालय के अवकाश प्राप्त प्रो. ओ.पी पाण्डेय ने उ.प्र राजर्षि टण्डन मुक्त विवि के तत्वावधान में आयोजित पं.दीनदयाल उपाध्याय स्मृति व्याख्यानमाला के द्वितीय पुष्प ‘‘महाकुम्भ: एक सांस्कृतिक प्रसंग’’ विषय पर व्याख्यान देते हुए व्यक्त किया। 

उन्होंने आगे कहा कि कुम्भ की एक पौराणिक पृष्ठभूमि रही है, कुम्भ जीवन में सबसे ज्यादा जाना पहचाना प्रतीक है। कहा कि चारों कुम्भ चार वेदों, चार वर्णों, चार युगों के द्योतक हैं। कुम्भ के मुख पर विष्णु का निवास है। किसी भी प्रतिष्ठ धार्मिक कार्य का प्रारम्भ कलश स्थापना पूजा से ही होता है। कण्ठ में भगवान शिव का निवास है। सृष्टिकर्ता बह्मा का निवास मूल भाग में है। कहा कि प्रयाग का कुम्भ क्षेत्र व्याकरण भाषा की प्रयोगशाला रहा है। महर्षि पाणिनी ने भाषा की प्रयोगशाला के रूप में प्रयाग को चुना। यहीं उन्होंने 14 साल तपस्या की। अक्षयवट की छाया में उन्हें तत्वज्ञान प्राप्त हुआ ओर अष्टाध्यायी यहीं पुष्पित पल्लवित हुई। 

प्रो.पाण्डेय ने कहा कि पं.दीनदयाल उपाध्याय का दृष्टिकोण एकात्म मानववाद के रूप में विश्व में प्रसिद्ध है। यह एकात्मवाद कुम्भ से मिलता है। पं. दीनदयाल का मानना था कि समाज की आर्थिक एवं सामाजिक संरचना के लिए एक-एक व्यक्ति का विचार करना होगा। व्यक्ति के विराट रूप दर्शन का आयोजन ही महाकुम्भ है।

सारस्वत अतिथि सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं उ.प्र राजर्षि टण्डन मुक्त विवि के पं.अटल बिहारी बाजपेयी पीठ के प्रो. राजेन्द्र मिश्र अभिराज ने कहा कि प्रयाग के कुंभ में गंगा एवं यमुना तो प्रत्यक्ष दिखायी देती है और सरस्वती अंतः सलिला है। धार्मिक प्रसंग का ज्ञान केवल शब्द प्रमाण से मिलता है। गंगा कोई सामान्य नदी नहीं है इसलिए ऋषि मुनियों द्वारा कहा गया कि गंगा के दर्शन से ही मुक्ति हो जाती है। त्रिवेणी के नाम से प्रसिद्धि हो गयी है गंगा, यमुना और अंतः सलिला सरस्वती की। उन्होंने कहा कि यह परिकल्पित होते हुए भी यथार्थ से अभिप्रेरित है।

कुलपति प्रो. एम.पी दुबे ने कहा कि भारत में कुम्भ मेला धार्मिक महत्व आध्यात्मिक उत्साह और सामूहिक अपील में श्रेष्ठ हैं। कुम्भ मेला विविधता में एकता का प्रतीक है। उन्होंने विश्वविद्यालय द्वारा विविध क्षेत्रों में किये गये विकास कार्यो की रूपरेखा प्रस्तुत की। 

अध्यक्षता करते हुए न्यायमूर्ति सुधीर नारायण ने कहा कि प्रयाग वह स्थान है जहां न्याय, धर्म और विद्या तीनों है। इसलिए यह तीर्थराज कहलाता है। प्रयागराज की महिमा अपरम्पार है। महाकुम्भ अत्यन्त फलदायी है। कार्यक्रम का संचालन डा.रामजी मिश्र एवं धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव प्रो. (डा) जी.एस शुक्ल ने किया।

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