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बिहार
10 प्रतिशत का आरक्षण बरकरार रखने को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सीएम नीतीश ने किया स्वागत
By Deshwani | Publish Date: 9/11/2022 2:57:11 PM
10 प्रतिशत का आरक्षण बरकरार रखने को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सीएम नीतीश ने किया स्वागत

पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों यानी गरीब सवर्णों को आरक्षण (EWS Reservation) के लिए दस प्रतिशत आरक्षण को बरकरार रखने के उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने वर्गों के आरक्षण का दायरा पचास प्रतिशत से अधिक करने की मांग की है। मुख्यमंत्री ने कहा कि आबादी के हिसाब से आरक्षण देने की जरूरत है। साथ ही उन्होंने एक बार फिर देश स्तर पर जातिय जनगणना (Caste Census) की मांग दोहराई है।


बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग के लिए सरकारी शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण के मुद्दे पर बड़ा बयान दिया है। नीतीश कुमार ने गरीब सवर्णों को आरक्षण  को सही ठहराया है। इतना ही नहीं नीतीश कुमार ने आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत तक बढ़ाने की वकालत की है। इसके साथ ही नीतीश कुमार ने जाति आधारित जनगणना  की मांग भी दोहराई है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गरीब सवर्णों को आरक्षण के फैसले को बरकरार रखा।


 केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को दिए गए आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण को वैध बताते हुए, इससे संविधान के उल्‍लंघन के सवाल को नकार दिया। हालांकि, चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच संदस्यीय बेंच ने 3-2 से ये फैसला सुनाया है। इससे यह साफ हो गया कि केंद्र सरकार ने 2019 में 103वें संविधान संशोधन विधेयक के जरिए जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को शिक्षा और नौकरी में 10 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था की थी, संविधान का उल्‍लंघन नहीं है।


सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 50 प्रतिशत कोटा को किसी भी रूप में बाधित नहीं करता है। कोर्ट ने कहा कि गरीब सवर्णों को समाज में बराबरी तक लाने के लिए सकारात्मक कार्रवाई के रूप में संशोधन की आवश्यकता थी।

मोदी सरकार ने साल 2019 में 103वें संविधान संशोधन विधेयक के जरिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को शिक्षा और नौकरी में 10 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था की थी, जिसका कई लोगों ने विरोध किया था।

 
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