स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने सैनिक भाइयों एवं बहनों की किया संबोधित
दिल्ली। मेरे प्यारे सैनिक भाइयों एवं बहनों, राष्ट्र आज मध्य रात्रि से स्वतंत्रता के एक महत्वपूर्ण पड़ाव, यानि इसके 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। इस अवसर पर देश में चहुंओर उत्सव का वातावरण है। हिमालय की ऊंची चोटियों से लेकर महासागर की गहराइयों तक एवं थार के मरुस्थल से लेकर पूर्वोत्तर के दुरूह जंगलों तक राष्ट्र की रक्षा में तल्लीन थलसेना, नौसेना, वायुसेना एवं तटरक्षक बल के बहादुर सैनिकों एवं सैन्य अधिकारियों को मैं इस ऐतिहासिक क्षण में कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से हार्दिक बधाई देता हूं।
हमारी सेना के सूबेदार नीरज चोपड़ा ने टोक्यो ओलंपिक में ट्रैक एवं फील्ड इवेंट की भाला फेंक प्रतियोगिता में देश के लिए सर्वप्रथम स्वर्ण पदक अर्जित कर इस वर्ष के स्वतंत्रता दिवस को और भी आनंददायी बना दिया है। सूबेदार नीरज के साथ–साथ अन्य ओलंपिक पदक विजेता भारतीय खिलाड़ी कल लाल किले पर स्वतंत्रता दिवस समारोह में विशेष रूप से आमंत्रित किए गए हैं। इसके लिए मैं माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का आभार प्रकट करता हूँ।
मैं इस पावन घड़ी में देश के उन वीर पूर्व सैनिकों को भी स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं देता हूं जो राष्ट्र की रक्षा में सदैव तत्पर रहे। और... हमारे वीर सैनिकों के परिजनों को कौन भूल सकता है जिन्होंने अपने सबसे प्रिय युवाओं को राष्ट्र की सेवा में समर्पित किया है।
यह वर्ष इसलिए भी कुछ खास है क्योंकि पचास वर्ष पूर्व 1971 में आपने अपनी वीरता के झंडे गाड़े थे। इस उपलब्धि को भी राष्ट्र आज गर्व से याद करता है।
आज का यह अवसर वीरगति प्राप्त उन सूरमाओं को भी स्मरण करने का है जिन्होंने राष्ट्र की सेवा में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है। मैं उनके परिवारजनों को आश्वासन देता हूं कि हम सब भारतवासी न केवल आपके साथ हैं बल्कि कृतज्ञ राष्ट्र उन्हें सदा याद करता रहेगा। सरकार ने इस वर्ष जनवरी में वीरगति प्राप्त सैनिकों को सदा के लिए अमर करने के लिए गैलंट्री अवार्ड पोर्टल शुरू किया। अनुरोध है कि आप भी इससे जुड़कर माँ भारती के उन महान वीर सपूतों को श्रद्धांजलि अर्पित करें।
प्यारे सैनिकों, भारतवर्ष की सभ्यता प्राचीन काल से ही शांतिप्रिय रही है परंतु शक्ति के बिना शांति संभव भी नहीं है। हमारे यहाँ कहा भी जाता है:
अहिंसा परमोधर्मः धर्महिंसा तथैव च
यदि अहिंसा हमारा परम धर्म है तो राष्ट्र धर्म की रक्षा भी उतना ही प्रासंगिक! अतः देश की रक्षा में हम सदैव कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहेंगे, भले ही उसके लिए कोई भी मूल्य चुकाना पड़े!
अत: देश में शांति और समृद्धि बने रहने के लिए आवश्यक है कि आप जल, थल, नभ चाहे जहाँ भी हों, राष्ट्र की रक्षा में सदैव सचेत और सजग रहें। कृतज्ञ राष्ट्र परिवार एवं परिजनों से दूर देश की सेवा में तत्पर आपके इन महान कर्तव्यों की सदैव प्रशंसा करता है।