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मन की बात कार्यक्रम: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोले- लोकल खिलौनों के लिए वोकल होने की जरूरत
By Deshwani | Publish Date: 30/8/2020 1:23:58 PM
मन की बात कार्यक्रम: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोले- लोकल खिलौनों के लिए वोकल होने की जरूरत

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज मन की बात कार्यक्रम में कोरोना काल के बीच लोगों की अनुशासनता से लेकर सादगी से मनाए गए त्योहारों और पर्वों की सराहना की।  पीएम ने लोगों से लोकल खिलौने खरीदने पर और कंपनियों से लोकल खिलौने बनाने पर ध्यान देने को कहा। उन्‍होंने लोकल खिलौनों के लिए 'वोकल' होने की अपील की। साथ ही प्रधानमंत्री ने देसी ऐप्‍स के बारे में बताते हुए देशवासियों से अपील कि लोग आगे आएं, कुछ इनोवेट करें, कुछ इम्‍प्‍लीमेंट करें। आपके प्रयास, आज के छोटे-छोटे स्‍टार्ट-अप्‍स, कल बड़ी-बड़ी कंपनियों में बदलेंगे और दुनिया में भारत की पहचान बनेंगे।
 
मोदी ने कहा कि भारत में भी वीडियो गेम बनने चाहिए और यह भारत के ही होने चाहिए। यानि कि वीडियो गेम में भारत से संबंधित होने चाहिए। पीएम  ने कहा कि कोरोना काल में हमारे चिंतन का एक विषय और था-खिलौने और विशेषकर भारतीय खिलौने। हमने इस बात पर मंथन किया कि भारत के बच्चों को नए-नए Toys कैसे मिलें, भारत, Toy Production का बहुत बड़ा hub कैसे बने। वैसे मैं 'मन की बात' सुन रहे बच्चों के माता-पिता से क्षमा मांगता हूं क्योंकि हो सकता है, उन्हें, अब, ये 'मन की बात' सुनने के बाद खिलौनों की नई-नई demand सुनने का शायद एक नया काम सामने आ जाएगा।
 
वहीं मन की बात की शुरुरआत में पीएम मोदी ने भारतीय त्योहारों और पर्वों का जिक्र किया। पीएम मोदी ने कहा  पर्व और पर्यावरण का आपस में गहरा नाता है। कोरोना के इस संकट में लोगों में त्योहारों और पर्वों को लेकर उमंग तो है, उत्साह भी है, लेकिन, हम सबको मन को छू जाए, वैसा अनुशासन भी है। बहुत एक रूप में देखा जाए तो नागरिकों में दायित्व का एहसास भी है। लोग अपना ध्यान रखते हुए, दूसरों का ध्यान रखते हुए, अपने रोजमर्रा के काम भी कर रहे हैं।" उन्‍होंने कहा कि 'गणेशोत्सव भी कहीं ऑनलाइन मनाया जा रहा है, तो, ज्यादातर जगहों पर इस बार इकोफ्रेंडली गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की गई है।
 
बिहार के पश्चिमी चंपारण में सदियों से थारु आदिवासी समाज के लोग 60 घंटे के lockdown या उनके ही शब्दों में कहें तो '60 घंटे के बरना' का पालन करते हैं। बरना की शुरुआत में भव्य तरीके से हमारे आदिवासी भाई-बहन पूजा-पाठ करते हैं और उसकी समाप्ति पर आदिवासी परम्परा के गीत, संगीत, नृत्य जमकर के उसके कार्यक्रम भी होते हैं। इन दिनों ओणम का पर्व भी धूम-धाम से मनाया जा रहा है। ये पर्व चिंगम महीने में आता है।
 
इस दौरान लोग कुछ नया खरीदते हैं, अपने घरों को सजाते हैं, पूक्क्लम बनाते हैं, ओनम-सादिया का आनंद लेते हैं, तरह-तरह के खेल और प्रतियोगिताएं भी होती हैं। किसानों की शक्ति से ही तो हमारा जीवन हमारा समाज चलता है। हमारे पर्व किसानों के परिश्रम से ही रंग-बिरंगे बनते हैं। "अन्नानां पतये नमः, क्षेत्राणाम पतये नमः। अर्थात, अन्नदाता को नमन है, किसान को नमन है।"
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