नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिक वैधता पर विचार करने का निर्णय लिया है। हालांकि न्यायालय ने इसके क्रियान्वयन पर रोक लगाने से मना कर दिया। याचिकाकर्ताओं के लिए कुछ वकीलों ने इस कानून के अमल पर रोक लगाने का अनुरोध किया था। केन्द्र सरकार की ओर से महाधिवक्ता के.के. वेणुगोपाल ने याचिकाकर्ताओं की दलील का विरोध किया। उन्होंने कहा कि ऐसे चार निर्णय हुए हैं, जिनके अनुसार अधिसूचित किए जाने के बाद किसी भी कानून पर स्थगन आदेश नहीं लिया जा सकता।
नागरिकता संशोधन कानून को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं की सुनवाई करते हुए शीर्ष न्यायालय ने कल केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया और अगले वर्ष जनवरी के दूसरे सप्ताह तक उत्तर मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबड़े, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की एक पीठ ने 59 याचिकाओं पर यह आदेश दिया, जिसमें इंडियन मुस्लिम लीग और कांग्रेस नेता जयराम रमेश की याचिकाएं भी शामिल हैं। इन याचिकाओं पर सुनवाई अगले वर्ष 22 जनवरी को होगी।
पीठ इस दलील पर भी सहमत थी कि लोगों को नागरिकता संशोधन कानून के उद्देश्य, लक्ष्य और इसकी विषयवस्तु की भी जानकारी दी जानी चाहिए। पीठ ने महाधिवक्ता से कहा कि इस कानून के बारे में आम लोगों को जागरूक बनाने के लिए श्रव्य-दृश्य माध्यमों का प्रयोग करने पर विचार करें।
महाधिवक्ता ने इस सुझाव पर सहमति व्यक्त की और कहा कि सरकार इस बारे में जरूरी कार्रवाई करेगी। संसद ने हाल ही में नागरिकता संशोधन कानून पारित किया है, जिसके तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश से भारत आए प्रताड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों जैसे हिन्दू, इसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध समुदाय के लोगों को नागरिकता मिल सकती है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस महीने की 12 तारीख को नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 को मंजूरी दी थी, जिसके बाद अब यह कानून बन गया है।