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मंदिर निर्माण के लिए इन्होंने दिया सराहनीय योगदान, कोई खुलकर आया सामने तो कोई नेपथ्य में रहकर
By Deshwani | Publish Date: 9/11/2019 3:18:54 PM
मंदिर निर्माण के लिए इन्होंने दिया सराहनीय योगदान, कोई खुलकर आया सामने तो कोई नेपथ्य में रहकर

लखनऊ। विवादित ढांचे पर कुदाल चलाने वाले पहले कारसेवकों को तब शायद इसका अहसास भी नहीं रहा होगा कि एक दिन सुप्रीम कोर्ट उनके सपनों को साकार कर देगा। लेकिन आज वह दिन उनके लिए ऐतिहासिक साबित हो गया, जब सुप्रीम कोर्ट ने भी मान लिया कि विवादित ढांचे पर ही राम मंदिर बनेगा। 

 
तारीख थी 6 दिसम्बर, 1992, अयोध्या में विवादित ढांचा कुछ ही घंटों में ढहाकर वहां एक नया, अस्थायी मंदिर बना दिया गया। भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद-शिवसेना नेताओं और हजारों ‘आक्रोशित’ कारसेवकों पर मुकदमे दर्ज हुए और ‘जीत का सेहरा’ भी उन्हीं के सिर बंधा। कांग्रेस न सिर्फ 1996 का चुनाव हारी बल्कि कई सालों के लिए सत्ता से बाहर हो गयी। यूपी में तो उसका ऐसा सफाया हुआ कि आज तक नहीं उठ पायी और अभी तक यहां अपना पैर जमाने के लिए संघर्ष कर रही है। आइए जानते हैं, उनको जो इसमें महत्वपूर्ण रहे। इन सब घटनाक्रम में इन लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
 
प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1985 में बाबरी मस्जिद परिसर का ताला खोलने के आदेश दिए। उस समय राजीव गांधी शाहबानो केस में मुस्लिम कंजर्वेटिव लीडरों का पक्ष लेने का आरोप झेल रहे थे। माना जाता है कि ‘पॉलिटिकल बैलेंस’ बनाने के लिए उन्होंने हिंदुओं को ‘साधने’ का फैसला किया।  राजीव गांधी ने विवादित परिसर का ताला खुलवा दिया। इससे पहले साल में सिर्फ एक बार अंदर जाकर पूजा की इजाज़त थी।  राजीव गांधी के इस फैसले के बाद हिन्दुओं को पूजा-पाठ करने में काफी सहुलियत हो गयी।
 
विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के तत्कालीन अध्यक्ष (अब स्वर्गीय) अशोक सिंघल मंदिर मुद्दे पर लड़ाई के मुख्य कर्ताधर्ता थे। सीबीआई चार्जशीट के मुताबिक 20 नवम्बर, 1992 को वे शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे से मिले और उन्हें कारसेवा में हिस्सा लेने का न्योता दिया। बाल ठाकरे ने चार दिसम्बर, 1992 को शिवसैनिकों को अयोध्या जाने का आदेश दिया। अशोक सिंघल ने ये भी कहा था कि 6 दिसम्बर की कारसेवा में  मुगल कमांडर मीर बाकी का शिलालेख हटा दिया जाएगा। दूसरे दिन पांच दिसम्बर को अशोक सिंघल ने कहा था, “मंदिर निर्माण की सभी बाधाएं दूर कर दी जाएंगी। कारसेवा भजन कीर्तन के लिए नहीं है बल्कि मंदिर का निर्माण कार्य शुरू करने के लिए है।’’ अशोक सिंघल 2011 तक वीएचपी अध्यक्ष बने रहे, फिर स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दे दिया।  उम्र के आखिरी पड़ाव तक वे सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहे।  लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी में भगवान राम की आत्मा प्रवेश कर गई है। 17 नवम्बर, 2015 को अशोक सिंघल का निधन हो गया। मोदी ने श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें ‘इंस्टीट्यूशन’ कहा और उनके निधन को ‘निजी नुकसान’ बताया।
 
राममंदिर विवाद में सबसे बड़ा चेहरा लाल कृष्ण आडवाणी हैं। भाजपा की राजनीति को ‘ऐतिहासिक माइलेज’ राम मंदिर आंदोलन से ही मिला। 1990 में उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन को आगे बढ़ाया। इसकी पृष्ठभूमि तैयार की थी गोविंदाचार्य ने। गोविंदाचार्य ने देश के चारों कोनों से चार दिग्गजों को रथयात्रा निकालने की रणनीति बनाई थी लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने खुद कश्मीर से रथयात्रा लेकर निकलने से इनकार कर दिया था। इसके बाद स्वयं ही आडवाणी दक्षिण से रथयात्रा लेकर निकले। उन्होंने दक्षिण से अयोध्या तक 10 हजार किलोमीटर लंबी रथयात्रा शुरू की थी।  आडवाणी का रथ जिन शहरों से गुजरा, उनमें से कई जगहों पर सांप्रदायिक हिंसा हुई और कई लोग मारे गए। रथ बिहार (तत्कालीन संयुक्त बिहार) पहुंचने पर लालू यादव सरकार ने आडवाणी को रांची में गिरफ्तार करवा लिया।  इसके बावजूद बड़ी संख्या में कारसेवक और संघ परिवार के लोग अयोध्या पहुंचकर विवादित ढांचे को गिराने की कोशिश की।  पैरामिलिट्री फोर्स के जवानों ने उन्हें रोकने की कोशिश की। दोनों पक्षों में संघर्ष हुआ और कई कारसेवक मारे गए।
 
वीएचपी ने एक अक्टूबर 1984 में अपनी एक ‘दबंग’ शाखा बनाई, जिसे ‘बजरंग दल’ नाम दिया गया। संघ प्रचारक और दो साल पहले हिंदू जागरण मंच बनाने वाले तेजतर्रार 30 वर्षीय युवक विनय कटियार इसके पहले अध्यक्ष बनाये गये।  बजरंग दल ने जन्मभूमि आंदोलन को उग्र बनाया। विवादित ढांचा गिराने से एक दिन पहले पांच दिसम्बर को अयोध्या में विनय कटियार के घर पर एक बैठक हुई, जिसमें आडवाणी के अलावा शिव सेना नेता पवन पांडे भी मौजूद थे। चार्जशीट के मुताबिक कटियार ने 6 दिसम्बर को अपने भाषण में कहा था, “हमारे बजरंगियों का उत्साह समुद्री तूफान से भी आगे बढ़ चुका है, जो एक नहीं तमाम बाबरी मस्जिदों को ध्वस्त कर देगा।” विवादित ढांचे के ढहाए जाने के बाद कटियार का राजनीतिक कद तेजी से बढ़ा। वह भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव भी बनाए गए।
 
मुरली मनोहर जोशी ने भी राम मंदिर आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। छह दिसम्बर को जोशी भी मौका-ए-वारदात पर मौजूद थे। चार्जशीट के मुताबिक मस्जिद का गुंबद गिरने पर उमा भारती लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी से गले मिल रही थीं। मुरली मनोहर जोशी समेत कई भाजपा नेताओं पर आरोप लगा कि 28 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट से प्रतीकात्मक कारसेवा का फैसला हो जाने के बाद भी इन लोगों ने पूरे प्रदेश में सांप्रदायिकता से ओत-प्रोत भाषण दिए, जिनसे सांप्रदायिक जहर फैला।
 
विवादित ढांचा गिराए जाने के वक्त कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।  उन पर आरोप है कि उग्र कारसेवकों को उनकी पुलिस और प्रशासन ने जानबूझकर नहीं रोका। कल्याण सिंह उन 13 लोगों में हैं, जिन पर मूल चार्जशीट में विवादित ढांचा गिराने की ‘साजिश’ में शामिल होने का आरोप लगा। इसके मुताबिक 1991 में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद कल्याण सिंह ने मुरली मनोहर जोशी और दूसरे नेताओं के साथ अयोध्या जाकर शपथ ली थी कि विवादित जगह पर ही मंदिर बनेगा। अक्टूबर, 1991 में उनकी सरकार ने बाबरी मस्जिद कॉम्प्लेक्स के पास 2.77 एकड़ जमीन का अधिग्रहण टूरिज्म प्रमोशन के नाम पर किया। जुलाई 1992 में संघ परिवार ने प्रस्तावित राम मंदिर का शिलान्यास किया और बाबरी मस्जिद के इर्द-गिर्द खुदाई करके वहां सीमेंट-कंक्रीट की 10 फुट मोटी परत भर दी गई। कल्याण सिंह सरकार ने इसे भजन करने का स्थान बताया और वीएचपी ने इसे राम मंदिर की बुनियाद घोषित कर दिया।
 
हाशिम अंसारी बाबरी मस्जिद विवाद के मुद्दई थे, लेकिन 2014 में उन्होंने यह कहते हुए मुकदमे से हटने का फैसला किया कि वह रामलला को आजाद देखना चाहते हैं।  हाशिम ने अयोध्या मसले पर 60 साल से ज्यादा वक्त तक बाबरी मस्जिद के लिए संविधान और कानून के दायरे में अदालती लड़ाई लड़ी, लेकिन 2014 में मुकदमे से खुद को अलग करते हुए उन्होंने कहा, ‘चाहे हिंदू नेता हों या मुस्लिम, सब अपनी अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने में लगे हैं और मैं कचहरी के चक्कर लगा रहा हूं।’ हाशिम अंसारी का भी करीब दो साल पहले निधन हो चुका है।
 
जब अयोध्या में विवादास्पद ढांचा गिराया गया तब पीवी नरसिंह राव देश के प्रधानमंत्री थे। विवादित ढांचा गिराने में उनकी भूमिका सवालों के घेरे में रही। इस कारण कांग्रेस ने न सिर्फ उनसे किनारा कर लिया बल्कि घटना का पूरा ठीकरा भी उन्हीं के सिर फोड़ने की कोशिश की। कुलदीप नैयर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, ‘‘मेरी जानकारी है कि नरसिंह राव की बाबरी मस्जिद ढहाए जाने में भूमिका थी। जब कारसेवक मस्जिद ढहा रहे थे, तब वे पूजा में बैठे हुए थे। वे वहां से तभी उठे जब मस्जिद का आख़िरी पत्थर हटा दिया गया।’’
 
 
घटना के बाद कैबिनेट के सदस्य अर्जुन सिंह ने फोन पर बात करने की कोशिश की लेकिन उनसे कहा गया कि प्रधानमंत्री किसी से बात करने के लिए उपलब्ध नहीं हैं। अर्जुन सिंह ने पूछा, ‘‘वे कब से फ़ोन नहीं ले रहे? वे दिल्ली में हैं भी या नहीं?” जवाब आया, “वे दिल्ली में हैं, लेकिन उन्होंने अपने आपको एक कमरे में बंद कर रखा है. और हमें निर्देश हैं कि उन्हें किसी भी हाल में डिस्टर्ब न किया जाए।’’
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