ब्रेकिंग न्यूज़
मोतिहारी के केसरिया से दो गिरफ्तार, लोकलमेड कट्टा व कारतूस जब्तभारतीय तट रक्षक जहाज समुद्र पहरेदार ब्रुनेई के मुआरा बंदरगाह पर पहुंचामोतिहारी निवासी तीन लाख के इनामी राहुल को दिल्ली स्पेशल ब्रांच की पुलिस ने मुठभेड़ करके दबोचापूर्व केन्द्रीय कृषि कल्याणमंत्री राधामोहन सिंह का बीजेपी से पूर्वी चम्पारण से टिकट कंफर्मपूर्व केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री सांसद राधामोहन सिंह विभिन्न योजनाओं का उद्घाटन व शिलान्यास करेंगेभारत की राष्ट्रपति, मॉरीशस में; राष्ट्रपति रूपुन और प्रधानमंत्री जुगनाथ से मुलाकात कीकोयला सेक्टर में 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 9 गीगावॉट से अधिक तक बढ़ाने का लक्ष्य तय कियाझारखंड को आज तीसरी वंदे भारत ट्रेन की मिली सौगात
राष्ट्रीय
तीन तलाक की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केन्द्र सरकार को नोटिस
By Deshwani | Publish Date: 13/9/2019 2:50:26 PM
तीन तलाक की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केन्द्र सरकार को नोटिस

नई दिल्ली। तीन तलाक को अपराध करार देने वाले कानून के खिलाफ मुस्लिम एडवोकेट एसोसिएशन ऑफ तमिलनाडु की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी किया। दरअसल जमीयत उलेमा हिंद समेत 3 याचिकाकर्ता इस मसले को लेकर पहले ही सुप्रीम कोर्ट का रुख कर चुके हैं। कोर्ट अब इस नई अर्जी पर बाकी अर्जियों के साथ सुनवाई करेगा।
 
पिछले 23 अगस्त को ट्रिपल तलाक की संवैधानिक वैधता को चुनौती देनेवाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस दिया था। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने कहा था कि जिस प्रथा को सुप्रीम कोर्ट रद्द घोषित कर चुका है, उसके लिए सजा का प्रावधान क्यों किया गया है। उन्होंने कहा था कि तीन साल की सजा वाला सख्त कानून परिवार के हित में नहीं है।
 
जमीयत उलमा-ए-हिंद की याचिका में ट्रिपल तलाक के कानून पर रोक लगाने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि ट्रिपल तलाक को रोकने वाला हालिया कानून संविधान की मूलभावना के अनुरूप नहीं है। वकील एजाज मकबूल के जरिये दायर याचिका में इस कानून को रोक लगाने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि इस कानून को लागू करने के लिए ऐसी कोई परिस्थिति नहीं थी, क्योंकि ऐसे तलाक को सुप्रीम कोर्ट पहले ही असंवैधानिक घोषित कर चुका है।
 
याचिका में कहा गया है कि कानून बनाते समय विचाराधीन कैदियों ही स्थिति पर आंखें मूंद लिया गया है। याचिका में कहा गया है कि इस्लामिक कानून के मुताबिक शादी एक दीवानी कांट्रैक्ट है और तलाक के जरिये उस कांट्रैक्ट को खत्म किया जाता है। इसलिए दीवानी गलतियों के लिए फौजदारी उत्तरदायित्व तय करना मुस्लिम पुरुषों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। 
image
COPYRIGHT @ 2016 DESHWANI. ALL RIGHT RESERVED.DESIGN & DEVELOPED BY: 4C PLUS