नई दिल्ली। मुसलमानों में त्वरित तीन बार दोहराकर तलाक देने की प्रथा तलाक-ए-बिद्दत पर अंकुश लगाने के लिए लाया गया विधेयक लोकसभा में चर्चा के लिए पेश किया गया। यह विधेयक इस संबंध में लाए गए अध्यादेश का स्थान लेगा। चर्चा की शुरुआत करते हुए केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि यह नारी न्याय, नारी गरिमा और नारी सम्मान का विषय है जिस पर संसद के सभी सदस्यों को एकजुट होना चाहिए और विधेयक को पारित कराना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट तलाक-ए-बिद्दत की प्रथा को समाप्त कर चुका है, लेकिन फिर भी मुस्लिम महिला इसका शिकार हो रही हैं। उन्होंने कुछ उदाहरण देते हुए कहा कि किस तरह मुस्लिम महिलाओं को छोटी-छोटी बात पर तलाक दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अबतक मीडिया के माध्यम से त्वरित तीन तलाक देने के 574 मामले सामने आ चुके हैं।
प्रसाद ने कहा कि सांसद धर्मिकता से ऊपर उठकर इंसानियत के नजरिए से विधेयक को देखें। उनकी सरकार ने विपक्ष की मांग पर कौन मामला दर्ज कर सकता है, उसे तय कर दिया है। इसके अलावा कोर्ट को महिला पक्ष सुनकर पति को जमानत देने का अधिकार दिया गया है। आपसी बातचीत से मामला सुलझता है तो उसका भी प्रावधान विधेयक में किया गया है।
विधेयक का विरोध करते हुए आरएसपी नेता एनके प्रेमचन्द्रन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-ए-बिद्दत को समाप्त कर दिया है। ऐसे में इस तरह से दिए गए तलाक की कोई वैधता नहीं रह जाती। फिर भी यदि पति जबरदस्ती महिला को इस आधार पर घर से बाहर करता है या खर्चा देने से मना करता है तो दहेज कानूनों के तहत उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है। दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ में से केवल दो ने ही इस संबंध में कानून लाने की बात कही थी। उन्होंने कहा कि पर्नसनल लॉ को सरकार क्रिमिलन लॉ बनाने जा रही है। इसके अलावा विधेयक में पहले प्रावधान दिया गया है कि तीन तलाक देने वाले पति को तीन साल की जेल की सजा होगी और दूसरी तरफ कहा गया है कि पति पत्नी को गुजाराभत्ता देगा। यह दोनों बातें एकसाथ संभव नहीं है।
चर्चा के दौरान सांसद मीनाक्षी लेखी ने कहा कि जवाहर लाल नेहरू के समय में हिन्दुओं के लिए इसी तरह का विधेयक लाया गया था जिसका हिन्दू महासभा ने विरोध किया था, लेकिन कानून बना और उसके चलते महिलाओं को समान अधिकार मिला। उन्होंने कहा कि दलितों को छोड़कर हिन्दुओं के अन्य समुदाय में तलाक की व्यवस्था नहीं थी, वह कानून के माध्यम से दी गई। कुछ ऐसा ही आज दोबारा घटित हो रहा है।
तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) और निकाह हलाला संबंधी मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2019 लोकसभा में बहुमत होने के चलते पिछले साल पारित हो गया था, लेकिन राज्यसभा में बहुमत न होने के चलते अटक गया था। विधेयक के प्रावधानों के अनुसार तीन तलाक मामले में दर्ज प्राथमिकी तभी संज्ञेय होगी जब उसे पत्नी या उसका कोई रिश्तेदार दर्ज करायेगा। पति-पत्नी से बातचीत कर मजिस्ट्रेट मामले में समझौता करा सकता है।