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अयोध्या विवाद: SC ने मामला मध्यस्थ के पास भेजने पर फैसला सुरक्षित रखा, पैनल के लिए मांगे नाम
By Deshwani | Publish Date: 6/3/2019 1:34:44 PM
अयोध्या विवाद: SC ने मामला मध्यस्थ के पास भेजने पर फैसला सुरक्षित रखा, पैनल के लिए मांगे नाम

नई दिल्ली। अयोध्या मामले में मध्यस्थता के मामले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष की ओर से मध्यस्थता का विरोध किया गया। हिंदू पक्ष की ओर से कहा गया कि हिंदू इस मामले को भावनात्मक और धार्मिक आधार पर देखते हैं। जबकि मुस्लिम पक्ष ने मध्यस्थता का समर्थन किया।

 
हिंदू पक्ष के वकील ने बाबर द्वारा मंदिर को गिराने का जिक्र किया। इस पर जस्टिस एसए बोब्डे ने कहा कि इतिहास हमने भी पढ़ा है। इतिहास पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है। हम जो भी कर सकते हैं वो वर्तमान के बारे में कर सकते हैं। हिंदू पक्ष में केवल निर्मोही अखाड़े ने मध्यस्थता का समर्थन किया।
 
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सुझाव दिया कि मध्यस्थता की कार्यवाही की मीडिया रिपोर्टिंग नहीं की जाए। तब मुस्लिम पक्ष की ओर से वकील राजीव धवन ने कहा कि अगर मध्यस्थता की मीडिया रिपोर्टिंग की जाए तो उस पर अवमानना का मामला चलाया जाए। 
 
पिछले 26 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने 8 सुनवाई 8 हफ़्ते के लिए टाल दी थी। कोर्ट ने सभी पक्षों को दस्तावेजों का अनुवाद देखने के लिए 6 हफ्ते का वक्त दिया था। 
 
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री की रिपोर्ट में बताया गया था कि अभी भी कोर्ट के ऑफिसियल ट्रांसलेटर द्वारा हजारों पेज का अनुवाद किया जाना बाकी है। इस पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने सभी पक्षकारों से पूछा था कि क्या वो उत्तरप्रदेश सरकार और दूसरे पक्षकारों की ओर से जमा कराई गई ट्रांसलेटेड कॉपी को स्वीकारने के लिए तैयार है?
 
चीफ जस्टिस ने कहा था कि जब सब पक्षकार दस्तावेजों के सही अनुवाद को लेकर निश्चिंत हो जाएंगे, तब हम सुनवाई शुरू कर सकते हैं। एक बार जब हम अयोध्या मामले की सुनवाई शुरू कर देंगे, हम नहीं चाहते कि बाद में कोई भी पक्षकार अनुवाद में खामी का हवाला देकर सुनवाई टालने की मांग करे। 
 
मुस्लिम पक्ष की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा था कि हम उत्तरप्रदेश सरकार की ओर से दी गई ट्रांसलेटेड कॉपी का क्रास चेक करना चाहते हैं। रामलला की ओर से वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा था कि इसके लिए अवसर पहले ही दिया गया था उस समय कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई गई थी। अब उसकी समय सीमा खत्म हो चुकी है। तब चीफ जस्टिस ने कहा था कि यही तो हम कहना चाह रहे हैं। अगर पक्षकार सहमत हैं तो हम आगे की सुनवाई शुरू कर सकते हैं। चीफ जस्टिस ने मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश वकील राजीव धवन से पूछा था कि दस्तावेजों के अनुवाद को परखने में कितना वक्त लेंगे। तब राजीव धवन ने कहा कि 8 से 12 हफ्ते का वक्त लगेगा।
 
सुनवाई के दौरान जस्टिस बोब्डे ने मध्यस्थ बनने का ऑफर दिया था। उन्होंने कहा कि ये कोई निजी संपत्ति को लेकर विवाद नहीं है, मामला पूजा-अर्चना के अधिकार से जुड़ा है। अगर समझौते के जरिए 1 फीसदी भी इस मामले के सुलझने का चांस हो, तो इसकी कोशिश होनी चाहिए। 
 
इस संविधान बेंच में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एस ए बोब्डे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।
 
अयोध्या मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर अविवादित जमीन से यथास्थिति का आदेश वापस लेने की मांग की है। केंद्र सरकार ने 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था और सिर्फ 0.313 एकड़ जमीन पर विवाद है। बाकी जमीन को रिलीज करने के लिए याचिका दायर की गई है।
 
इस्माइल फारुकी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा है कि जो जमीन बचेगी उसे उसके सही मालिक को वापस करने के लिए केंद्र सरकार बाध्य है। इसमें 40 एकड़ जमीन राम जन्मभूमि न्यास की है। हम चाहते हैं कि इसे उन्हें वापस कर दी जाए साथ ही वापस करते समय यह देखा जा सकता है कि विवादित भूमि तक पहुंच का रास्ता बना रहे। उसके अलावा जमीन वापस कर दी जाए। केंद्र सरकार ने कहा है कि जमीन वापस करते समय यह देखा जा सकता है कि विवादित भूमि तक पहुंच का रास्ता बना रहे। उसके अलावा जमीन वापस कर दी जाए ।
 
केंद्र सरकार ने याचिका में कहा है कि 2003 में जब सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर में शिलापूजन की अनुमति नहीं दी थी तो विवादित भूमि और अधिगृहित की गई 67 एकड़ की जमीन पर यथास्थिति बहाल रखने का आदेश दिया था।
 
केंद्र सरकार ने 1993 में इस जमीन का अधिग्रहण किया था। इस्माइल फारुकी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा है कि जो जमीन बचेगी उसे उसके सही मालिक को वापस करने के लिए केंद्र सरकार बाध्य है। इसमें 40 एकड़ जमीन राम जन्मभूमि न्यास की है।
 
27 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के फैसले से अयोध्या मसले पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि इस्माइल फारुकी का मस्जिद संबंधी जजमेंट अधिग्रहण से जुड़ा हुआ था। इसलिए इस मसले को बड़ी बेंच को नहीं भेजा जाएगा। जस्टिस अशोक भूषण ने फैसला सुनाया था जो उनके और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा का फैसला था। जस्टिस एस अब्दुल नजीर ने अपने फैसले में कहा कि इस्माईल फारुकी के फैसले पर पुनर्विचार के लिए बड़ी बेंच को भेजा जाए।
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