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राज्य सरकार तय करेंगी दिवाली पर पटाखे जलाने का समय: सुप्रीम कोर्ट
By Deshwani | Publish Date: 30/10/2018 2:28:49 PM
राज्य सरकार तय करेंगी दिवाली पर पटाखे जलाने का समय: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने दिवाली पर पटाखे फोड़ने के लिए रात आठ बजे से 10 बजे तक का समय तय करने संबंधी अपने आदेश में बदलाव किया है। आज सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारें अपने हिसाब से पटाखे फोड़ने के लिए दो घंटे का समय तय कर सकती है। पिछली सुनवाई में देश की सबसे बड़ी अदालत ने शाम आठ से रात 10 बजे तक पटाखे फोड़ने का समय निर्धारित किया था, लेकिन अब राज्य सरकारें अपने हिसाब से तय करेगी कि वह कौन से दो घंटे निर्धारित करना चाहती है। कोर्ट ने कहा कि अगर सुबह-शाम दोनों समय पटाखे की परंपरा है, तो दोनों वक्त 1-1 घंटा दिया जा सकता है। ग्रीन पटाखे जलाने की शर्त केवल दिल्ली-NCR में लागू होंगे। देश के बाकी हिस्सों में सामान्य पटाखे फोड़े जा सकेंगे।

 
इससे पहले 23 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिवाली और दूसरे त्योहारों के अवसर पर पटाखे फोड़ने के लिये रात आठ बजे से दस बजे की समय सीमा निर्धारित करते हुये देशभर में कम प्रदूषण उत्पन्न करने वाले हरित पटाखे बनाने की अनुमति दे दी थी।
 
न्यायमूर्ति ए के सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने फ्लिपकार्ट और एमेजन जैसी ई-व्यापारिक वेबसाइटों को उन पटाखों की बिक्री करने से रोक दिया है जो निर्धारित सीमा से अधिक शोर करते हैं। शीर्ष अदालत ने वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के उद्देश्य से, देश में पटाखों के निर्माण और उनकी बिक्री पर प्रतिबंध के लिये दायर याचिका पर यह आदेश दिया। पीठ ने कहा कि यदि ये वेबसाइटें न्यायालय के निर्देशों का पालन नहीं करेंगी तो उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही की जायेगी।
 
साथ ही पीठ ने कहा, ‘निर्धारित सीमा के भीतर ही शोर करने वाले पटाखों की बाजार में बिक्री की अनुमति होगी।’ न्यायालय ने केन्द्र से कहा कि वह दिवाली और दूसरे त्यौहारों के अवसर पर दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सामुदायिक तरीके से पटाखे फोड़ने को प्रोत्साहन दे। कड़ा रूख जाहिर करते हुए न्यायालय ने कहा कि प्रतिबंधित पटाखे फोड़े जाने की स्थिति में संबंधित इलाके के थाना प्रभारी जिम्मेदार होंगे।
 
शीर्ष अदालत ने इससे पहले कहा था कि पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध के मामले में इनके निर्माताओं की आजीविका के मौलिक अधिकारों और देश की सवा सौ करोड़ से अधिक आबादी के स्वास्थ्य के अधिकारों सहित विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखना होगा।
 
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