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सबरीमाला: SC ने ऐतिहासिक फैसले में कहा- 'पुरुषों से कम नहीं है महिलाएं'
By Deshwani | Publish Date: 28/9/2018 11:31:50 AM
सबरीमाला: SC ने ऐतिहासिक फैसले में कहा- 'पुरुषों से कम नहीं है महिलाएं'

नई दिल्ली। केरल के प्रख्यात सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश वर्जित मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (28 सितंबर) को ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि मंदिर में भगवान अय्यम की पूजा होती थी और वह हिंदू थे, इसलिए मंदिर में किसी भी महिला के प्रवेश पर रोक नहीं लगाया जा सकता है। देश के प्रमुख न्यायाधीश दीपक मिश्रा समेत 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने कहा, 'महिलाएं पुरुषों से किसी भी मामले में कम नहीं हैं, तो उनके मंदिर में प्रवेश पर रोक लगाना सही नहीं है।'
 
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रमुख बातें
एक तरफ हम औरतों की पूजा करते हैं, लेकिन दूसरी तरफ उन्हीं के मंदिर में प्रवेश पर रोक कैसे लगा सकते हैं। 
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश से रोकना असंवैधानिक है। 
पुरुष हो या फिर महिला किसी भी इंसान का भगवान से दैहिक नियमों के तहत रिश्ता तय नहीं किया जा सकता है, दैहिक नियमों के आधार पर महिलाओं को रोकना एक तरह से छुआ-छूत है।
सबरीमाला मंदिर में जिन भगवान अय्यम की पूजा होती है, वह हिंदू थे। ऐसे में उनके भक्तों का अलग धर्म ना बनाया जाए।
महिलाओं को मंदिर में पूजा करने से रोकना उनकी गरिमा का अपमान है, सबरीमाला के रिवाज हिंदू महिलाओं के हक के खिलाफ हैं। 
 
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। खासकर 15 साल से ऊपर की लड़कियां और महिलाएं इस मंदिर में नहीं जा सकतीं हैं। यहां सिर्फ छोटी बच्चियां और बूढ़ी महिलाएं ही प्रवेश कर सकती हैं। इसके पीछे मान्यता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे। सबरीमाला मंदिर में हर साल नवम्बर से जनवरी तक, श्रद्धालु अयप्पा भगवान के दर्शन के लिए जाते हैं, बाकि पूरे साल यह मंदिर आम भक्तों के लिए बंद रहता है। भगवान अयप्पा के भक्तों के लिए मकर संक्रांति का दिन बहुत खास होता है, इसीलिए उस दिन यहां सबसे ज़्यादा भक्त पहुंचते हैं।
 
इससे पहले नायर सर्विस सोसाइटी की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील के। पराशरण ने हिंदू धर्म की व्याख्या करते हुए कहा था कि ब्रह्मा विधायिका, विष्णु कार्यपालिका, शिव न्यायपालिका और अर्धनारीश्वर हैं, तभी उनका यह स्वरूप अनुच्छेद 14 जैसा है, यानी सबको बराबर का अधिकार। पाराशरण ने कहा था कि केरल में 90 फीसदी से ज्यादा आबादी शिक्षित है। महिलाएं भी पढ़ी-लिखी हैं और केरल का समाज मातृ प्रधान है। हिंदू धर्म को सबसे ज्यादा सहिष्णु बताते हुए उन्होंने कहा था कि हिंदू नियम, कायदे और परंपराएं भेदभाव नहीं करतीं। सती प्रथा का हिंदू धर्म और आस्था में कोई आधार नहीं रहा है।
 
परासरण ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि मेरे ऊपर दो दायित्व हैं। पहला कोर्ट में मौजूद मी लॉर्ड के आगे अपना पक्ष रखना और दूसरा उस लॉर्ड के आगे जो हम सब से ऊपर हैं। उन्होंने कहा था कि मेरा मानना है कि सबरीमाला मंदिर में 60 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को ही एंट्री मिले। भगवान अय्यपा स्वामी की मान्यता ब्रह्मचारी के रूप में है। परासरण ने यह भी कहा था कि अगर कोर्ट सामाजिक कार्यकर्ताओं की आवाज को सुन रहा है तो उनकी बात भी सुनना चाहिए जो परंपरा को जीवित रखने के लिए आवाज उठा रहे हैं। वरिष्ठ वकील के। परासरण ने कहा था कि सबरीमाला मंदिर में जो दर्शन के लिए आ रहे हैं, वे युवा महिलाओं के साथ न आएं। बुजुर्ग महिलाएं और बच्चे अपवाद हैं। इसका मतलब है कि आप केवल ब्रह्मचर्य का पालन ही न करें, बल्कि देखें भी। 12वीं सदी में बना यह मंदिर पथानामथिट्टा जिले में स्थित है और भगवान अयप्पा को समर्पित है।
 
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। खासकर 15 साल से ऊपर की लड़कियां और महिलाएं इस मंदिर में नहीं जा सकतीं हैं। यहां सिर्फ छोटी बच्चियां और बूढ़ी महिलाएं ही प्रवेश कर सकती हैं। इसके पीछे मान्यता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे। सबरीमाला मंदिर में हर साल नवम्बर से जनवरी तक, श्रद्धालु अयप्पा भगवान के दर्शन के लिए जाते हैं, बाकि पूरे साल यह मंदिर आम भक्तों के लिए बंद रहता है। भगवान अयप्पा के भक्तों के लिए मकर संक्रांति का दिन बहुत खास होता है, इसीलिए उस दिन यहां सबसे ज़्यादा भक्त पहुंचते हैं।
 
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