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SC का बड़ा फैसला, व्‍यभिचार अब अपराध नहीं, धारा 497 खारिज, CJI बोले- पत्‍नी का मालिक नहीं है पति
By Deshwani | Publish Date: 27/9/2018 11:38:44 AM
SC का बड़ा फैसला, व्‍यभिचार अब अपराध नहीं, धारा 497 खारिज, CJI बोले- पत्‍नी का मालिक नहीं है पति

नई दिल्‍ली। व्यभिचार यानि अडल्टरी (धारा 497) पर दंडात्मक कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया। पत्नी अगर पति की बजाय किसी दूसरे पुरुष से अवैध संबंध बनाए तो उस पर भी पुरूष की तरह IPC की धारा 497 के तहत आपराधिक मुकदमा दर्ज होगा या नहीं, इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए इस धारा को मनमाना और असंवैधानिक बताते हुए इसे गलत ठहराते हुए खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि चीन, जापान और ब्राजील में व्‍यभिचार अपराध नहीं है।
 
पांच जजों की संवैधानिक बेंच में सबसे पहले चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा व जस्टिस खानविलकर ने अपना संयुक्त फैसला सुनाते हुए आईपीसी की धारा 497 के उस प्रावधान को रद्द कर दिया, जिसके तहत व्यभिचार में केवल पुरुष को सजा दिए जाने का प्रावधान है। चीफ जस्टिस और जस्टिस खानविलकर ने कहा कि व्यभिचार अपराध नहीं हो सकता। दोनों न्‍यायाधीशों ने कहा, 497 IPC कानून मनमाना है, सही नहीं है।
 
चीफ जस्टिस ने फैसले में कहा कि पति पत्नी का मालिक नहीं है। महिला की गरिमा सबसे ऊपर है। महिला के सम्‍मान के खिलाफ आचरण गलत है। महिला और पुरुषों के अधिकार समान है। वहीं, तीसरे जज जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने भी इस कानून को ग़लत बताया, लिहाजा बहुमत से में ये कानून खारिज करने का फैसला सुनाया गया।
 
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा था कि अडल्टरी अपराध है और इससे परिवार और विवाह तबाह होता है। सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र से जानना चाहा था कि व्याभिचार संबंधी कानून से जनता की क्या भलाई है, क्योंकि इसमें प्रावधान है कि यदि स्त्री के विवाहेत्तर संबंधों को उसके पति की सहमति हो तो यह अपराध नहीं होगा।
 
केन्द्र ने संविधान पीठ से कहा था कि व्यभिचार अपराध है, क्योंकि इससे विवाह और परिवार बर्बाद होते हैं। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति आरएफ नरिमन, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा शामिल हैं। व्यभिचार यानी जारता (विवाहित महिला के पर पुरुष से संबंध) को लेकर भारतीय दंड संहिता यानी IPC की धारा 497 को चुनौती देने वाली याचिका पर संविधान पीठ ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस धारा के तहत अगर किसी विवाहित महिला का पर पुरुष से संबंध हो और अपराध सिद्ध हो तो सिर्फ पुरुष को सजा मिलती है। याचिका में कहा गया है कि महिला को क्यों छूट मिली हुई है? 
 
आईपीसी की धारा-497 (अडल्टरी) के प्रावधान के तहत पुरुषों को अपराधी माना जाता है, जबकि महिला विक्टिम मानी गई है। याचिका में कहा गया है कि आईपीसी की धारा-497 के तहत जो कानूनी प्रावधान है वह पुरुषों के साथ भेदभाव वाला है। याचिका में कहा गया है कि अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी और शादीशुदा महिला के साथ उसकी सहमति से संबंधित बनाता है तो ऐसे संबंध बनाने वाले पुरुष के खिलाफ उक्त महिला का पति अडल्टरी का केस दर्ज करा सकता है, लेकिन संबंध बनाने वाली महिला के खिलाफ और मामला दर्ज करने का प्रावधान नहीं है जो भेदभाव वाला है और इस प्रावधान को गैर-संवैधानिक घोषित किया जाए।
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