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राम जन्‍मभूमि विवाद से जुड़े इस अहम मामले में आज सुप्रीम कोर्ट सुना सकता है फैसला
By Deshwani | Publish Date: 27/9/2018 11:17:33 AM
राम जन्‍मभूमि विवाद से जुड़े इस अहम मामले में आज सुप्रीम कोर्ट सुना सकता है फैसला

नई दिल्‍ली। अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में 1994 के इस्माइल फारुकी के फैसले में पुनर्विचार के लिए मामले को संविधान पीठ भेजने की मांग वाली मुस्लिम पक्षों की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को फैसला सुनाएगा। मुख्‍य न्‍यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ गुरुवार को दोपहर दो बजे इस पर अपना अहम फैसला सुनाएगी।
 
दरअसल, मुस्लिम पक्षों ने नमाज के लिए मस्जिद को इस्लाम का जरूरी हिस्सा न बताने वाले इस्माइल फारुकी के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की है। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिमों पक्ष के वकील राजीव धवन द्वारा हिन्दू तालिबानी शब्द का प्रयोग करने पर अधिवक्‍ताओं द्वारा आपत्ति जताते हुए कहा था कि कोर्ट ऐसे शब्दों के इस्तेमाल पर रोक लगाए। वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा था कि वे अपनी बात पर क़ायम हैं। धवन ने फिर कहा था कि जिन्होंने 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद ढहाई थी वे हिन्दू तालिबानी थे, जैसे बमियान में मुस्लिम तालिबान ने बुद्ध की मूर्ति गिराई थी।
 
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने राजीव धवन की भाषा पर ऐतराज़ जताते हुए कहा था कि ये भाषा ग़लत है और वकील कोर्ट की गरिमा और भाषा का ध्यान रखें। जिसपर राजीव धवन ने कहा था कि वे चीफ जस्टिस से सहमत नहीं है और उन्हें असहमत होने का अधिकार है, वे अपनी बात पर क़ायम है। कोर्ट में मौजूद वकीलों ने धवन के हिन्दू तालिबान कहने का विरोध किया था।
 
अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट फिलहाल विचार कर रहा है कि नमाज के लिए मस्जिद को इस्लाम का जरूरी हिस्सा न बताने वाले इस्माइल फारुकी के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है या नहीं। इससे पहले मुस्लिम पक्षकारों ने फैसले में दी गई व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए मामले को पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजे जाने की मांग की थी। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 1994 में अयोध्या में भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाले डॉक्‍टर एम। इस्माइल फारुकी के मामले में 3-2 के बहुमत से दी गई व्यवस्था में कहा था कि नमाज के लिए मस्जिद इस्लाम धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है। मुसलमान कहीं भी नमाज अदा कर सकते हैं। यहां तक कि खुले में भी नमाज अदा की जा सकती है। ये बात फैसले के पैराग्राफ 82 में कही गई है। मुस्लिम पक्षकार एम। सिद्दीकी के वकील राजीव धवन ने गत 5 दिसंबर को इस फैसले पर सवाल उठाते मामला पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ को भेजे जाने की मांग की है। 
 
राम मंदिर के लिए होने वाले आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था। इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दीवानी मुकदमा भी चला। टाइटल विवाद से संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या टाइटल विवाद में फैसला दिया था। फैसले में कहा गया था कि विवादित लैंड को 3 बराबर हिस्सों में बांटा जाए। जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे रामलला विराजमान को दिया जाए। सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए, जबकि बाकी का एक तिहाई जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए। इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट केसामने आया। अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान और हिंदू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। वहीं, दूसरी तरफ सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल कर दी। इसके बाद इस मामले में कई और पक्षकारों ने याचिकाएं लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले की सुनवाई करने की बात कही थी। सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट में इसके बाद से यह मामला पेंडिंग है।
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