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आधार पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, आधार को संवैधानिक मान्‍यता दी गई
By Deshwani | Publish Date: 26/9/2018 11:15:58 AM
आधार पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, आधार को संवैधानिक मान्‍यता दी गई

नई दिल्‍ली। केंद्र के महत्वपूर्ण आधार कार्यक्रम और इससे जुड़े 2016 के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कुछ याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए आधार (AADHAAR) को संवैधानिक मान्‍यता दे दी। सुबह करीब 11 बजे जस्टिस एके सीकरी ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविलकर की तरफ से फैसला पढ़ना शुरू किया। जस्टिस सीकरी ने कहा कि 'आधार देश में आम आदमी की पहचान बन गया है'।
 
जस्टिस सीकरी ने कहा कि आधार कार्ड और पहचान के बीच एक मौलिक अंतर है। बायोमैट्रिक जानकारी संग्रहीत होने के बाद यह सिस्टम में बनी हुई है। आधार से गरीबों को ताकत और पहचान मिली। आधार आम आदमी की पहचान बन चुका है। आधार कार्ड का डुप्‍लीकेट बनवाने का विकल्‍प नहीं। आधार कार्ड बिल्‍कुल सुरक्षित है।
 
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार से समाज के एक वर्ग को ताकत मिली। आधार पर हमला संविधान के खिलाफ है। बेहतर होने से अच्‍छा कुछ अलग होना है, आधार अलग है। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, डाटा प्रोटेक्‍शन पर केंद्र कड़ा कानून बनाए। आधार में डाटा की सुरक्षा की र्प्‍याप्‍त व्‍यवस्‍था है। डाटा सुरक्षा के लिए UIDAI ने पुख्‍ता इंतजाम किए हैं।
 
SC ने अपने फैसले में कहा कि निजी कंपनियां आधार नहीं मांग सकतीं। न्‍यायालय ने यह भी कहा कि CBSE, NEET और UGC के लिए आधार जरूरी है, लेकिन स्‍कूलों में एडमिशन के लिए आधार जरूरी नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि आधार व्यापक पब्लिक इंटरस्ट को देखता है और समाज के हाशिये पर बैठे लोगों को इससे फायदा होगा। डेटा को 6 महीने से ज्यादा स्टोर नही करेंगे। 5 साल तक डेटा रखना बैड इन लॉ है।
 
सेवानिवृत जज पुत्तासामी समेत कई अन्य लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर आधार कानून की वैधानिकता को चुनौती दी थी। याचिकाओं में विशेषतौर पर आधार के लिए एकत्र किए जाने वाले बायोमेट्रिक डाटा से निजता के अधिकार का हनन होने की दलील दी गई थी। आधार की सुनवाई के दौरान ही कोर्ट मे निजता के अधिकार के मौलिक अधिकार होने का मुद्दा उठा था, जिसके बाद कोर्ट ने आधार की सुनवाई बीच में रोक कर निजता के मौलिक अधिकार पर संविधान पीठ ने सुनवाई की और निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया था। इसके बाद पांच न्यायाधीशों ने आधार की वैधानिकता पर सुनवाई शुरु की थी। कुल साढ़े चार महीने में 38 दिनों तक आधार पर सुनवाई हुई थी।
 
आधार की अनिवार्यता (Aadhaar verdict) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में (Supreme Court) अहम फैसला सुना दिया।  केंद्र के महत्वपूर्ण आधार कार्यक्रम और इससे जुड़े 2016 के कानून की संवैधानिक वैधता (Aadhaar constitutional validity) को चुनौती देने वाली कुछ याचिकाओं पर आज यानी बुधवार को सुप्रीम कोर्ट अपना महत्वपूर्ण फैसला सुनाने से पहले बहुमत का फैसला पढ़ते हुए यह माना कि आधार आम आदमी की पहचान है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार से पैन को जोड़ने का फैसला बरकरार रहेगा। साथ ही कोर्ट ने कहा कि बैंक खाते से आधार को जोड़ना अब जरूरी नहीं। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 38 दिनों तक चली लंबी सुनवाई के बाद 10 मई को मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। मामले में उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के एस पुत्तास्वामी की याचिका सहित कुल 31 याचिकाएं दायर की गयी थीं। दरअसल, केंद्र ने आधार योजना का बचाव किया था कि जिनके पास आधार नहीं है उन्हें किसी भी लाभ से बाहर नहीं रखा जाएगा। आधार सुरक्षा के उल्लंघन के आरोपों पर केंद्र ने कहा कि डेटा सुरक्षित है और इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता। केंद्र ने यह भी तर्क दिया कि आधार समाज के कमजोर और हाशिए वाले वर्गों के अधिकारों की रक्षा करता है और उन्हें बिचौलियों के बिना लाभ मिलते हैं और आधार ने सरकार के राजकोष में 55000 करोड़ रुपये बचाए हैं। 
 
आधार की वैधानिकता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील श्याम दीवान, अरविन्द दत्तार, गोपाल सुब्रमण्यम, पी। चिदंबरम, केवी विश्वनाथन, सहित आधा दर्जन से ज्यादा लोगों ने बहस की और आधार को निजता के अधिकार का हनन बताया था। याचिकाकर्ताओं का कहना थाकि एकत्र किये जा रहे डाटा की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। इसके अलावा बायोमेट्रिक पहचान एकत्र करके किसी भी व्यक्ति को वास्तविकता से 12 अंकों की संख्या में तब्दील किया जा रहा है। याचिकाकर्ताओं ने आधार कानून को मौलिक अधिकारों का हनन बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की है। ये भी आरोप लगाया था कि सरकार ने हर सुविधा और सर्विस से आधार को जोड़ दिया है जिसके कारण गरीब लोग आधार का डाटा मिलान न होने के कारण सुविधाओं का लाभ लेने से वंचित हो रहे हैं।
 
उन्होंने ये भी कहा था कि सरकार ने आधार बिल को मनी बिल के तौर पर पेश कर जल्दबाजी में पास करा लिया है। आधार को मनी बिल नहीं कहा जा सकता। अगर इस तरह किसी भी बिल को मनी बिल माना जाएगा तो फिर सरकार को जो भी बिल असुविधाजनक लगेगा उसे मनी बिल के रूप में पास करा लेगी। पी चिदंबरम ने कहा था कि मनी बिल के आड़ में इस कानून के पास होने में राज्यसभा के बिल में संशोधन के सुझाव के अधिकार और राष्ट्रपति के बिल विचार के लिए दोबारा वापस भेजे जाने का अधिकार नजरअंदाज हुआ है। उधर दूसरी ओर केन्द्र सरकार, यूएआईडी, गुजरात और महाराष्ट्र सरकार सहित कई संस्थाओं ने सुप्रीम कोर्ट में आधार कानून को सही ठहराते हुए याचिकाओं को खारिज करने की अपील की थी। सरकार की ओर से मुख्य बहस अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने की थी।
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