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नीतीश-पीएम मोदी से मुकाबले के लिए तेजस्वी-राहुल ने बनाया फॉर्मूला
By Deshwani | Publish Date: 19/9/2018 10:21:44 AM
नीतीश-पीएम मोदी से मुकाबले के लिए तेजस्वी-राहुल ने बनाया फॉर्मूला

नई दिल्ली। 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में अब एक साल से भी कम का समय बचा है। सत्ताधारी बीजेपी जहां 2014 के लोकसभा चुनाव से भी ज्यादा बड़ी जीत दर्ज करने के दावे कर रही है, वहीं मुख्य विपक्षी कांग्रेस छोटी-छोटी पार्टियों को एकजुट करके मोर्चेबंदी की कोशिश में जुटी है। इस बार के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को घेरने के लिए राज्यों में अलग-अलग तरीके की रणनीति बनाई जा रही है। इसी कड़ी में बिहार में एक नए किस्म का राजनीतिक प्रयोग देखने को मिल रहा है। यहां मुख्य मुकाबला एनडीए बनाम महागठबंधन के बीच होने वाला है। एनडीए की अगुवाई जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार करेंगे वहीं महागठबंधन की कमान आरजेडी के तेजस्वी यादव के हाथों में है। 2019 के रण में दो-दो हाथ करने के लिए दोनों की खेमा अपने-अपने हिसाब से जातीय समीकरण बिठाने में जुटी है।
 
कांग्रेस ने मदन मोहन झा को अपना प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है। इस नियुक्ति के बड़े राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। माना जा रहा है कि बिहार की जातीय समीकरण आधारित राजनीति में बड़ा बदलाव होने जा रहा है। इसकी शुरुआत महागठबंधन ने कर दी है। CM नीतीश+PM मोदी जैसे दो बड़े राजनेता की अगुवाई वाले एनडीए का चुनौती देने के लिए राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की जोड़ी ने मिलकर 'माय बीबी' (MY BB) फॉर्मूला तैयार किया है। यहां M का मतलब मुसलमान, Y यादव, B से भूमिहार और B से ब्राह्मण शामिल है।
 
बिहार की राजनीति में 1990 के दशक में बड़ा बदलाव देखने को मिला। यहां लालू प्रसाद यादव का युग शुरू होने के साथ ही मंडल बनाम कमंडल की राजनीति शुरू हुई थी। फॉरवर्ड बनाम बैकवर्ड की राजनीति के बीच लालू ने मुस्लिम+यादव का कॉबिनेशन तैयार किया था जो उनके जीत की गारंटी बन गया था। साल 2000 के दशक में नीतीश कुमार के हाथों में सत्ता आने के बाद से लालू का यह फॉर्मूला जीत की गारंटी नहीं रह गया। पिछले तीन चुनावों के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया कि अगर लालू का खेमा 5-6 फीसदी वोटों का जुगाड़ कर ले तो वह फिर से सत्ता हासिल कर सकती है।
 
इसी बात को समझते हुए आरजेडी की कमान संभालने के बाद से तेजस्वी यादव इसी 5-6 फीसदी नए वोटरों की जुगाड़ में जुटे हैं। पहले उन्होंने जीतन राम मांझी के बहाने राज्य के अनुसूचित जाति वोटरों से नजदीकी बढ़ाने की कोशिश की है। इसके अलावा अब कांग्रेस के साथ मिलकर फॉरवर्ड वोटरों को एनडीए खेमे से खींचने की जुगत में जुट गए हैं। राजनीति की इस रणनीतिक लड़ाई में तेजस्वी यादव कांग्रेस के सहारे दावं चल रहे हैं। 
 
कांग्रेस अपने ऊपर से अल्पसंख्यकों की पार्टी की धारणा को बदलने की कोशिश में जुटी है। गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने राहुल गांधी को जनेऊधारी बताया था। अब राहुल जब मानसरोवर यात्रा करके लौटे हैं तो कांग्रेस की ओर से बयान आया है कि कांग्रेस के डीएनए में ब्राह्मण है। इन दोनों बयानों से स्पष्ट है कि कांग्रेस फिर से अपने पुराने वोटबैंक ब्राह्मणों को अपने साथ लाने की कोशिश में है। कांग्रेस की इसी रणनीति का लाभ आरजेडी बिहार में लेने की कोशिश में है।
 
इसी साल जून में विपक्षी पार्टियों की डिनर पार्टी से पहले तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की 40 मिनट तक अलग से मुलाकात हुई थी। माना जाता है कि इस मुलाकात में 'माय बीबी' फॉर्मूला तय हुआ था। इस मुलाकात के कुछ दिन बाद ही बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रभारी अध्यक्ष रहे कौकब कादरी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि आरजेडी सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ रही है। वहीं कांग्रेस अपने एजेंडे केा लेकर आगे बढ़ेगी। इसका साफ मतलब है कि महागठबंधन को आरजेडी के नाम पर जहां मुस्लिम+यादव के वोट मिलेंगे, वहीं कांग्रेस कोशिश में है कि वह कुछ ब्राह्मणों और भूमिहारों को वोट हासिल कर ले। इन सारे वोटों के एक साथ आने पर महागठबंधन को बड़ा फायदा हो सकता है।
 
बिहार में मुस्लिम+यादव (MY) को मिलाकर करीब 28-30 फीसदी वोट हैं। पिछले पांच-छह चुनावों पर नजर डालें तो इसमें से ज्यादातर वोट हमेशा से लालू यादव की पार्टी को ही मिलते रहे हैं। वहीं राज्य में करीब 20 फीसदी आबादी फॉरवर्ड जातियों की है, जिसमें ब्राह्मण और भूमिहार (BB) को मिलाकर यह आकंड़ा करीब 10-11 फीसदी है। ब्राह्मण जहां 6-7 फीसदी हैं तो भूमिहार करीब 4 प्रतिशत हैं। अगर कांग्रेस ब्राह्मण और भूमिहार (BB) के इन 10 फीसदी वोटों में से 3 फीसदी भी महागठबंधन के प्रत्याशी को दिलाने में सफल रहती है तो यह बड़ा राजनीतिक उलटफेर हो सकता है।
 
बिहार के ब्राह्मणों और भूमिहारों को अपने साथ लाने के लिए कांग्रेस ने इस समाज से आने वाले नेताओं को मौके दिए हैं। महादलित समाज से आने वाले अशोक चौधीर के प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद कांग्रेस ने ब्राह्मण मदन मोहन झा को यह जिम्मेदारी सौंपी है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि मोदी कैबिनेट में किसी भी 'झा' या मिथलांचल इलाके के नेता को जगह नहीं मिली है, जबकि ये शुरू से ही बीजेपी को सपोर्ट करते आए हैं। इसके अलावा कांग्रेस ने प्रेमचंद्र मिश्रा को एमएलसी बनाया है। राज्यसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने अखिलेश सिंह को टिकट दिया है। अखिलेश सिंह भूमिहार जाति से आते हैं। यूपीए वन में केंद्र में मंत्री भी रह चुके हैं। वे अरवल के रहने वाले हैं। इसके अलावा आरजेडी ने ब्राह्मण समाज से आने वाले मनोज झा को राज्यसभा भेजा है।
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