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मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं : अटल बिहारी वाजपेयी
By Deshwani | Publish Date: 17/8/2018 11:38:56 AM
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं : अटल बिहारी वाजपेयी

नई दिल्ली। भारत रत्न और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अब हमारे बीच नहीं हैं। जब भी देश के इतिहास में सबके प्रिय नेता की बात चलेगी तो पहला नाम अटल जी का आयेगा, क्या विपक्ष, क्या समर्थक, क्या दुश्मन देश पाकिस्तान के राजनेता और क्या कश्मीर के जेहादी। अटल जी जब भी कुछ कहते थे दुनिया उन्हें सुनती थी।

अगर वो राजनेता न होते तो देश के बेहतरीन कवि होते। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जिंदगी की आखिरी सांसे ले रहे हैं। वह एक राजनेता के तौर पर जितने सराहे गए हैं, उतना ही प्यार उनकी कविताओं को भी मिला है। बुधवार से लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखे गए अटल बिहारी वाजपेयी जब भी खुश या निराश होते उनका कवि हृदय दिल मचल जाता और पत्रकार से राजनेता बना इंसान अपनी दिल के हालत को कलम से कागज पर उकेर दिया करते थे।  

उनकी कई ऐसी कविताएं हैं जो उनके व्यक्तित्व की परिचायक बनीं तो कइयों ने जीवन को देखने का उनका नजरिया दुनिया के सामने रख दिया। लंबे वक्त से बीमार चल रहे अटल को बुधवार को लाइफ सपॉर्ट पर रखा गया तो देश-दुनिया में उन्हें मानने वाले लोगों के मन में अपने चहेते राजनेता की चिंता घर कर गई लेकिन आज बोल पाने में असमर्थ अटल अगर अभिव्यक्त कर पाते तो शायद एक कविता के माध्यम से खुद ही सबको ढांढस बंधाते और फिर कहते हार नहीं मानूंगा रार नहीं ठानूंगा।  


साल 1988 में जब वाजपेयी किडनी का इलाज कराने अमेरिका गए थे तब धर्मवीर भारती को लिखे एक खत में उन्होंने मौत की आंखों में देखकर उसे हराने के जज्बे को कविता के रूप में सजाया था। आज एक बार फिर याद आ रही यह कविता थी- 'मौत से ठन गई'... 


जूझने का मेरा इरादा न था, 

मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था, 

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, 

यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई। 

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, 

जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं। 

जम्मू कश्मीर विवाद पर बातचीत करनी हो या पाकिस्तान से दोस्ती का हाथ बढ़ाना और फिर दुश्मनी का भी करारा कारगिल युद्ध जैसा जबाव देने की बात या फिर अपनी प्रतिद्वंद्वी नेता इंदिरा गांधी की प्रशंसा में दुर्गा कहना वह हर परीक्षा में खरे उतरते रहे। शायद यही वजह है कि वह सबके प्रिय नेता बने लेकिन वह अपनी जिंदगी में बहुत अकेले थे।


कई कविताओं में उनके अकेलेपन का दर्द झलकता भी रहा है लेकिन उन कविताओं में भी जिंदगी के जंग की कहानी भी होती थी।  एक इंटरव्यू में उन्होंने इस बात को कबूल भी किया था कि हां, मैं अकेला हूं और अकेला महसूस भी करता हूं, अकेले में तो हर कोई अकेला होता है लेकिन मैं भीड़ में अकेला महसूस करता हूं। खुद के अकेले होने की बात बिरले ही कबूल करते हैं। महान कवि और राजनेता रहे अटल जी  अविवाहित हैं यह हर कोई जानता है लेकिन एक इंटरव्यू में उन्होंने यह भी बेबाकी से कबूला था कि अविवाहित हूं लेकिन कुंवारा नहीं हूं।


कवि हृदय, सहृदयी अटल जी जितना बेबाक लिखते थे उतनी ही बेबाकी से अपनी जिंदगी से जुड़ी बातें भी कबूल लिया करते थे। अब वह कभी नहीं बोलेंगे लेकिन उनके बोल और जिंदगी के कुछ किस्से वह खुद भी चाव से सुनाया करते थे। जब भी उनसे शादी का जिक्र किया जाता था तो वह हमेशा कहते थे कि व्यस्तता के चलते उन्हें कभी शादी करने का अवसर ही नहीं मिला।


उनके करीबी लोगों का मानना है कि राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की सेवा के लिए उन्होंने अविवाहित रहने का फैसला किया था। पूर्व पत्रकार राजीव शुक्ला को दिए एक इंटरव्यू में जब उनसे उनकी शादी को लेकर सवाल पूछा, तो उन्होंने इसके जवाब में कहा था, विवाह का मुहूर्त नहीं निकल पाया।'

अटल बिहारी वाजपेयी के इस बयान का मर्म चाहे जो भी निकाला जाए, लेकिन इस कुंवारे राजनेता की जिदगी का एक हिस्सा ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से भी जुड़ा है। अटल बिहारी वाजपेयी का ये वो अतीत है जिसका जिक्र दबे जुबान से यदा-कदा होता रहता है जिसे उन्होंने कबूला भी था। 

दक्षिण भारत के पत्रकार ने एक इंटरव्यू में अटल और राजकुमारी कौल की प्रेम कहानी को लेकर दिलचस्प किस्से शेयर किए। एक अन्य इंटरव्यू में कुलदीप नैयर के अनुसार, श्रीमती कौल और अटल बिहारी वाजपेयी की मुलाकात ग्वालियर के एक कॉलेज में हुई थी।

अटल जी उस कॉलेज में पढ़ा करते थे। वो ऐसे दिन थे जब लड़के और लड़कियों की दोस्ती को अच्छा नहीं माना जाता था। इसलिए आमतौर पर प्यार होने पर भी लोग भावनाओं का इजहार नहीं कर पाते थे। अटल बिहारी वाजपेयी और श्रीमती कौल के रिश्तों को लेकर पत्रकार गिरीश निकम ने अपने अनुभव में बताया कि, उन दोनों के बीच एक खूबसूरत रिश्ता था। तब भी वह अटल जी को फोन करते थे तो फोन श्रीमती कौल उठाती थी।

बातें तो शिखर पुरुषों के बारे में होती ही रहती है लेकिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा में पले-बढ़े अटल जी राजनीति में उदारवाद और समता एवं समानता के समर्थक थे उन्होंने विचारधारा की कीलों से कभी अपने को नहीं बांधा लेकिन उनके करीबियों का कहना है कि राजनीतिक सेवा का व्रत लेने के कारण वे आजीवन कुंवारे रहे। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लिया था।

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