राष्ट्रीय
धारा 377 पर बहस हुई पूरी, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
By Deshwani | Publish Date: 17/7/2018 4:23:13 PM नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने धारा 377 पर अपने फैसले को सुरक्षित रख लिया है। पिछली सुनवाई में शीर्ष कोर्ट ने कहा था कि सहमति से समलैंगिक यौन संबंधों के अपराध के दायरे से बाहर होते ही एलजीबीटीक्यू समुदाय के प्रति इसे लेकर सामाजिक कलंक और भेदभाव भी खत्म हो जाएगा। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह भारतीय दंड संहिता की धारा 377 की कानूनी वैधता की इसके सभी पहलुओं से जांच करेगी।
चीफ दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 158 साल पुराने दंड प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए धारा 377 को बनाए रखने की मांग करने वाले वकीलों के इस प्रस्ताव को खारिज किया कि इस मामले पर सार्वजनिक राय ली जानी चाहिेए। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह जनमत संग्रह नहीं चाहती बल्कि संवैधानिक नैतिकता से चलना चाहती है। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा शामिल हैं।
बता दें कि समलैंगिकताऎ को अपराध के दायरे से बाहर किया जाए या नहीं, केंद्र सरकार ने यह फैसला पूरी तरह से सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ दिया था। गत बुधवार को मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र ने धारा 377 पर कोई स्टैंड नहीं लिया था और कहा था कि कोर्ट ही तय करे कि 377 के तहत सहमति से बालिगों का समलैंगिक संबंध बनाना अपराध है या नहीं। अडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार की ओर से कहा था कि हम 377 के वैधता के मामले को सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ते हैं, लेकिन अगर सुनवाई का दायरा बढ़ता है, तो सरकार हलफनामा देगी।