ब्रेकिंग न्यूज़
मोतिहारी के केसरिया से दो गिरफ्तार, लोकलमेड कट्टा व कारतूस जब्तभारतीय तट रक्षक जहाज समुद्र पहरेदार ब्रुनेई के मुआरा बंदरगाह पर पहुंचामोतिहारी निवासी तीन लाख के इनामी राहुल को दिल्ली स्पेशल ब्रांच की पुलिस ने मुठभेड़ करके दबोचापूर्व केन्द्रीय कृषि कल्याणमंत्री राधामोहन सिंह का बीजेपी से पूर्वी चम्पारण से टिकट कंफर्मपूर्व केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री सांसद राधामोहन सिंह विभिन्न योजनाओं का उद्घाटन व शिलान्यास करेंगेभारत की राष्ट्रपति, मॉरीशस में; राष्ट्रपति रूपुन और प्रधानमंत्री जुगनाथ से मुलाकात कीकोयला सेक्टर में 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 9 गीगावॉट से अधिक तक बढ़ाने का लक्ष्य तय कियाझारखंड को आज तीसरी वंदे भारत ट्रेन की मिली सौगात
राष्ट्रीय
यूपी सरकार ने शीर्ष अदालत में मुस्लिम संगठनों के अनुरोध का विरोध किया
By Deshwani | Publish Date: 6/7/2018 7:54:29 PM
यूपी सरकार ने शीर्ष अदालत में मुस्लिम संगठनों के अनुरोध का विरोध किया

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश सरकार ने आज उच्चतम न्यायालय को बताया कि कुछ मुस्लिम संगठन वर्ष 1994 के एक फैसले की इस टिप्पणी पर पुर्निवचार की मांग करके ‘‘लंबे वक्त से विचाराधीन’’अयोध्या मंदिर-मस्जिद भूमि विवाद मामले की सुनवाई में देरी का प्रयास कर रहे हैं कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न भाग नहीं है।  

 
अयोध्या मामले के मूल याचिकाकर्ताओं में से एक एम सिद्दीक ने 1994 के एम इस्माइल फारूकी मामले के इन निष्कर्षों पर आपत्ति जताई थी कि मस्जिद इस्लाम के अनुयायियों द्वारा अदा की जाने वाली नमाज का अभिन्न भाग नहीं है। सिद्दीक का निधन हो चुका है और उनके कानूनी उत्तराधिकारी द्वारा उनका प्रतिनिधित्व किया जा रहा है।      
 
मुस्लिम संगठनों ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूॢत अशोक भूषण और न्यायमूॢत एस ए नजीर की विशेष पीठ के सामने दलील दी कि फैसले में शीर्ष अदालत की ‘व्यापक’ टिप्पणी पर पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा पुर्निवचार करने की जरूरत है क्योंकि इसका बाबरी मस्जिद-राम मंदिर भूमि विवाद मामले पर ‘प्रभाव पड़ा है और आगे भी पड़ेगा।’     
 
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस विवाद को ‘‘ करीब एक सदी से ’’ अंतिम निर्णय का इंतजार है। उन्होंने कहा कि इस टिप्पणी का मुद्दा 1994 से न तो किसी याचिकाकर्ता ने उठाया और ना ही इसे उच्च न्यायालय द्वारा 2010 में फैसला सुनाये जाने के बाद दायर वर्तमान अपीलों में उठाया गया। मेहता ने कहा कि इस मुद्दे को उठाने में असामान्य देरी का कारण कार्यवाही में देरी की मंशा है।     
 
राज्य सरकार ने कहा कि इस्माइल फारूकी मामले में इस अदालत द्वारा तय किया गया कानून ‘सही कानून है जिसे न तो ऊपरी अदालत के पास भेजकर और ना ही किसी अन्य तरह’ से छेड़ा जाना चाहिए। इससे पहले सिद्दीक के कानूनी वारिस की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि 1994 में शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर कोई ‘जांच’ किये बिना या हदीस पर विचार किये बिना कहा था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न भाग नहीं है। उन्होंने कहा, ‘इस्लाम कहता है कि मस्जिदें धार्मिक विश्वास का अभिन्न भाग हैं। हदीस यह कहता है लेकिन उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यह इस्लाम का अभिन्न भाग नहीं है।’ 
image
COPYRIGHT @ 2016 DESHWANI. ALL RIGHT RESERVED.DESIGN & DEVELOPED BY: 4C PLUS