नई दिल्ली।दिल्ली में लगातार चल रही अधिकार की लड़ाई का लग सकती है विराम। क्योंकि कभी दिल्ली में मोहल्ला क्लीनिक और राशन डिलीवरी स्कीम का विवाद। जब से अरविंद केजरीवाल दिल्ली की सत्ता में आए हैं, ये आरोप सुनने को मिलता रहता है कि उपराज्यपाल उन्हें काम करने नहीं दे रहे हैं। आज केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से हमेशा-हमेशा के लिए ये जवाब मिलने वाला है कि दिल्ली का असली बॉस कौन है? जनता से चुनी गई सरकार या फिर उपराज्यपाल?
दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने उपराज्यपाल को दिल्ली का प्रशासनिक मुखिया घोषित करने के हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इस याचिका में दिल्ली की चुनी हुई सरकार और उपराज्यपाल के अधिकार स्पष्ट करने का आग्रह किया गया था।
दरअसल दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने आदेश में एलजी को ऐडमिनिस्ट्रेटिव हेड बताया है। दिल्ली सरकार ने कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। दिल्ली सरकार की याचिकाओं पर सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने पिछले साल 2 नवंबर से सुनवाई शुरू की थी। महज 15 सुनवाई में पूरे मामले को सुनने के बाद 6 दिसंबर, 2017 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। पीठ ने कहा था कि मामला महत्वपूर्ण संवैधानिक व कानूनी पहलू से जुड़ा हुआ है, जिसे संवैधानिक बेंच एग्जामिन करेगी।
इससे पहले यह मामला दिल्ली हाई कोर्ट में था, जहां से आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल को झटका लगा था। दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल के बीच अधिकारों की लड़ाई पर फैसला सुनाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने 4 अगस्त, 2016 को कहा था कि उपराज्यपाल ही दिल्ली के प्रशासनिक प्रमुख हैं और दिल्ली सरकार एलजी की मर्जी के बिना कानून नहीं बना सकती।
आप सरकार की ओर से पी चिदंबरम, गोपाल सुब्रह्मण्यम, राजीव धवन और इंदिरा जयसिंह जैसे नामी वकीलों ने दलीलें रखीं। एक सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि चुनी हुई सरकार के पास कुछ शक्तियां होनी चाहिए नहीं तो वह काम नहीं कर पाएगी। वहीं, केंद्र और उपराज्यपाल की ओर से दलील दी गई थी कि दिल्ली एक राज्य नहीं है, इसलिए उपराज्यपाल को यहां विशेष अधिकार मिले हैं। दिल्ली सरकार का आरोप था कि उपराज्यपाल चुनी हुई सरकार को कोई काम नहीं करने देते और हर एक फाइल व सरकार के प्रत्येक निर्णय को रोक लेते हैं।