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राज्यपाल वोहरा के हाथ में चौथी बार घाटी की कमान
By Deshwani | Publish Date: 20/6/2018 4:08:25 PM
राज्यपाल वोहरा के हाथ में चौथी बार घाटी की कमान

नई दिल्ली। भाजपा का पीडीपी से समर्थन वापस लिए जाने के बाद जम्मू कश्मीर में आठवीं बार राज्यपाल शासन लगा दिया गया है। मौजूदा गवर्नर एनएन वोहरा के कार्यकाल में यह चौथी बार है जब राज्‍य में राज्‍यपाल शासन लगा है। फिलहाल यह एक रिकाॅर्ड है। एनएन वोहरा सेवानिवृत्त भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एवं जम्मू और कश्मीर राज्य के वर्तमान राज्यपाल हैं। आंकड़ों के लिहाज से देखा जाए तो पिछले दस साल में जम्मू-कश्मीर का शासन चौथी बार राज्यपाल एनएन वोहरा के हाथ में आ गया है। 


राज्यपाल वोहरा ने अपना काम शुरू कर दिया है। उन्होंने आज श्रीनगर में राज्य के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों और सुरक्षा बल अधि‍कारियों के साथ बैठक की। वोहरा पिछले दस साल से लगातार जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल हैं। वह कांग्रेस सरकार के समय नियुक्त एकमात्र ऐसे राज्यपाल हैं जिन्हें बीजेपी सरकार ने नहीं हटाया है।


वोहरा को जून 2008 में राज्यपाल नियुक्त किया गया था और उन्हें 2013 में फिर से राज्यपाल का कार्यभार सौंपा गया था। कल बीजेपी ने राज्यपाल एनएन वोहरा को समर्थन वापसी का पत्र देते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की थी। आज सुबह ही राष्ट्रपति ने जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लगाने को मंजूरी दे दी। इस तरह 81 साल के वोहरा के हाथ में चौथी बार राज्य का शासन आ गया है।


भारत के अन्य राज्यों में प्रदेश की सरकार के विफल रहने पर राष्ट्रपति शासन लागू होता है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल का शासन लगाया जाता है। जम्मू-कश्मीर के संविधान की धारा 92 के तहत राज्य में छह माह के लिए राज्यपाल शासन लागू किया जाता है, हालांकि ऐसा राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही हो सकता है।


भारत का संविधान जम्मू -कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करता है और यह देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जिसके पास अलग संविधान और नियम हैं। देश के अन्य राज्यों में संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है। राज्यपाल शासन के अंतर्गत राज्य विधानसभा या तो निलंबित रहती है या उसे भंग कर दिया जाता है।


गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में मार्च 1977 को पहली बार राज्यपाल शासन लागू हुआ था। उस समय एल के झा राज्यपाल थे। सईद की अगुवाई वाली राज्य कांग्रेस ने नेशनल कांफ्रेंस के नेता शेख महमूद अब्दुल्ला की सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, जिसके बाद राज्यपाल शासन लागू करना पड़ा था। मार्च 1986 में एक बार फिर सईद के गुलाम मोहम्मद शाह की अल्पमत की सरकार से समर्थन वापस लेने के कारण राज्य में दूसरी बार राज्यपाल शासन लागू करना पड़ा था।

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