नई दिल्ली। रोडरेज के दौरान गैर इरादतन हत्या के 30 साल पुराने मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई करते हुए पंजाब के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू को बरी कर दिया उन पर एक हजार रुपए जुर्माना लगाया गया। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने सिद्धू को 3 साल जेल की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। वहीं, पंजाब सरकार ने हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखने की दलील दी थी। जस्टिस जे चेलमेश्वर और एसके कौल की बेंच ने 18 अप्रैल को इस पर फैसला रिजर्व रख लिया था।
साल 2006 में हाईकोर्ट ने बेशक से सिद्धू और एक अन्य आरोपी रुपिंदर सिंह संधू को 3 साल की सजा सुनाई हो, लेकिन 1999 में ट्रायल कोर्ट में सुनवाई के दौरान दोनों आरोपियों को बरी कर दिया था। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के बाद 2007 में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दोनों को दोषी ठहराने के फैसले पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही सिद्धू अमृतसर से विधानसभा चुनाव लड़ पाए थे।
अभियोजन के अनुसार सिद्धू और रुपिंदर सिंह संधू 27 दिसंबर, 1988 को पटियाला में शेरनवाला गेट चौरोह के पास सड़क के बीच में कथित रुप से खड़ी जिप्सी में थे। उसी समय गुरनाम सिंह और दो अन्य पैसे निकालने के लिए मारुति कार से बैंक जा रहे थे। गुरनाम ने सिद्धू और संधू से जिप्सी हटाने को कहा, इस पर दोनों पक्षों में कहासुनी हो गई। सिद्धू ने सिंह को बुरी तरह पीटा और अस्पताल में उनकी मौत हो गई।
पंजाब सरकार की ओर से उपस्थित वकील सनराम सिंह सरों ने 30 साल पुराने मामले में सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ के समक्ष कहा कि साक्ष्य के अनुसार सिद्धू द्वारा मुक्का मारने से पटियाला निवासी गुरनाम सिंह की मौत हो गई थी। सरकार ने कहा कि निचली अदालत का यह निष्कर्ष गलत था कि सिंह की मौत ब्रेन हैमरेज से नहीं, बल्कि हृदय गति रुकने से हुई थी। इसने कहा कि इस बारे में एक भी सबूत नहीं है जिससे यह पता चले कि मौत की वजह दिल का दौरा था, न कि ब्रेन हैमरेज। पंजाब सरकार के वकील ने कहा, 'निचली अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय ने सही निरस्त किया था। आरोपी ए 1 नवजोत सिंह सिद्धू ने गुरनाम सिंह को मुक्का मारा था जिससे ब्रेन हैमरेज हुआ और उसकी मौत हो गई।