नई दिल्ली । अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर खरीदने के मामले में सु्प्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ की रमन सरकार को बड़ी राहत दी है। इसकी खरीद में कथित अनियमितताओं की जांच संबंधी स्वराज अभियान की जनहित याचिका आज शीर्ष कोर्ट द्वारा खारिज कर दी गई। उन्होंने याचिका में इस खरीद की जांच के लिए एक एसआइटी गठित करने की मांग की थी।
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने खरीद में कथित अनियमितताओं और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के बेटे से जुड़े खातों की जांच की मांग पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था। सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार से तीखा सवाल किया था। शीर्ष अदालत ने पूछा था कि इस सौदे में मुख्यमंत्री रमन सिंह के बेटे की रुचि क्यों थी? जस्टिस एके गोयल और जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने राज्य से हेलीकॉप्टर खरीद में अनियमितता के आरोपों के बारे में पूछा था। इसके साथ ही कथित रूप से मुख्यमंत्री के बेटे से जुड़े विदेशी बैंक खाते पर भी सवाल उठाया। शीर्ष अदालत में दायर याचिका में इस मामले की जांच कराने की मांग की गई थी। वहीं राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी से पीठ ने पूछा, 'अभिषेक सिंह जो राज्य के मुख्यमंत्री के बेटे भी हैं, उनकी इसमें रुचि क्यों थी? आपको हमें इस बारे में संतुष्ट करना है।' जेठमलानी ने कहा कि आरोप निराधार कटाक्ष हैं। इस तरह के दावों के पक्ष में कोई पर्याप्त प्रमाण नहीं है। याचिका में ये सभी बेबुनियाद आरोप हैं।
इसके बाद बेंच ने एनजीओ स्वराज अभियान एवं अन्य की ओर से दायर याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया। याचिकाकर्ताओं ने हेलीकॉप्टर खरीद में कथित अनियमितता की जांच कराने की मांग की थी। याचिका दायर करने वालों ने आरोप लगाया कि जुलाई 2008 में अभिषेक सिंह के नाम पर ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड में बैंक खाता खोला गया। एक अगस्त 2008 को सौदे में संलिप्त एक फर्म को घेरे में लिया गया।
यूपीए-1 सरकार के समय 2010 में 3,600 करोड़ रुपए में 12 वीवीआइपी अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर की डील की गई थी। इस डील का 10 फीसदी हिस्सा रिश्वत में देने की बात सामने आने के बाद यूपीए सरकार ने 2013 में इसे रद्द कर दिया। तब इस मामले में एसपी त्यागी समेत 13 आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज किया गया।
अगस्ता वेस्टलैंड डील में इटली की एक अदालत का फैसला आने के बाद देश की राजनीति में भूचाल आ गया था। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इस सौदे के लिए इटली की कंपनी फिनमेकानिका ने भारतीय अधिकारियों को 100-125 करोड़ रुपए तक की रिश्वत दी थी। जिस वक्त डील पर रोक लगाने का आदेश जारी किया गया, उस वक्त भारत 30 फीसदी भुगतान कर चुका था और तीन अन्य हेलीकॉप्टरों के लिए आगे के भुगतान की प्रक्रिया चल रही थी।