ट्रिब्युनलों में जजों और सदस्यों की नियुक्ति चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली कमेटी करेगी
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि फाइनेंस एक्ट 2017 के तहत ट्रिब्युनल्स में जजों और सदस्यों की नियुक्ति में होने वाले फेरबदल पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। अब इन ट्रिब्युनलों में नियुक्ति चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली कमेटी करेगी। इस पैनल में उस ट्रिब्युनल के प्रमुख के अलावा संबंधित मंत्रालय के दो सचिव शामिल होंगे। ट्रिब्युनल का चेयरमैन चीफ जस्टिस द्वारा नामिनेट किया जाएगा।
पिछले 11 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2017 से मार्च 2018 के बीच रिटायर होनेवाले ट्रिब्युनल के सदस्यों की सेवा 15 अप्रैल 2018 तक बढ़ाने का आदेश दिया था। सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि ट्रिब्युनल के रिटायर होनेवाले सदस्यों की सेवा बढ़ाई जा सकती है क्योंकि नियुक्ति की प्रक्रिया में समय लगेगा। केंद्र सरकार के इस प्रस्ताव पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगाते हुए आदेश पारित किया था।
इस मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया था कि ट्रिब्युनल के सदस्यों की नियुक्ति कम से कम पांच साल के लिए हो।
दरअसल कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री जयराम रमेश ने फाइनेंस एक्ट 2017 को चुनौती देनेवाली एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की है। जयराम रमेश ने कहा है कि फाइनेंस एक्ट 2017 के कुछ प्रावधानों से नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल (एनजीटी ) की शक्तियां प्रभावित होंगी। पिछले 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने फाइनेंस एक्ट 2017 के खंड 14 को चुनौती देनेवाली एक जनहित पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। जयराम रमेश की याचिका को भी इसी मामले के साथ टैग कर दिया गया है।
याचिकाकर्ता सोशल एक्शन फॉर फॉरेस्ट एंड एनवायरमेंट के ट्रस्टी विक्रांत टोंगाड की याचिका पर चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र सरकार के विधि और न्याय मंत्रालय के सचिव और वित्त मंत्रालय (वाणिज्य) के संयुक्त सचिव को दो हफ्ते में जवाब देने का निर्देश दिया था।
इस एक्ट में एनजीटी के चेयरपर्सन और जुडिशियल मेंबर की नियुक्ति के लिए न्यूनतम योग्यता के साथ समझौता किया गया है। इस एक्ट में एनजीटी के चेयरपर्सन और जुडिशियल मेंबर की नियुक्ति के लिए विधिक पृष्ठभूमि या विधिक प्रशिक्षण या अनुभव या तकनीकी और वैज्ञानिक जानकारी को भी जरुरी नहीं माना गया है।