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भारतीय साहित्य प्रकाशन की दुनिया में पेपर बैक क्रांति के जनक दीनानाथ मल्होत्रा नहीं रहे
By Deshwani | Publish Date: 14/12/2017 10:04:32 AM
भारतीय साहित्य प्रकाशन की दुनिया में पेपर बैक क्रांति के जनक दीनानाथ मल्होत्रा नहीं रहे

नई दिल्ली, (हि.स.)। भारतीय साहित्य प्रकाशन की दुनिया में पेपर बैक क्रांति के जनक व हिन्द पाकेट बुक्स के चेयरमैन दीनानाथ मल्होत्रा का 94 वर्ष की उम्र में बुधवार को दोपहर दो बजे नई दिल्ली में निधन हो गया। वह काफी दिनों से बीमार चल रहे थे। मृत्यु से कुछ घंटे पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी उनका स्वास्थ्य जानने घर पहुंचे थे। 

22 फरवरी, 1923 में लाहौर (पकिस्तान) में जन्मे दीनानाथ ने ही भारतीय कापी राइट एक्ट का प्रारूप तैयार किया था। वे फेडरेशन पब्लिशर्स ऑफ़ इंडिया के अभी रहे। पद्मश्री से सम्मानित श्री मल्होत्रा को यूनेस्को ने भी सम्मानित किया था। उन्होंने अपने जीवनकाल में 6500 लेखकों की किताबों का प्रकाशन अपने संस्थान हिन्द पाकेट बुक्स के जरिये करके हिंदी साहित्य की अपूर्व सेवा की जो पूरी दुनिया में एक रिकार्ड है। वे अमर शहीद महाशय राजपाल के सुपुत्र थे। 

भारतीय प्रकाशक दीनानाथ मल्होत्रा ​​की कंपनी हिंद पॉकेट बुक ने 1950 और 1960 के दशक में हिंदी पुस्तकों के लिए पेपरबैक बाजार का विकास किया। उन्होंने मुम्बई से दिल्ली तक प्रकाशन-व्यापार व विदेशी पुस्तकों के आयातकों से स्थानीय प्रकाशकों का ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने पहली स्वयंसेवी अखिल भारतीय प्रकाशकों की स्थापना की और भारतीय प्रकाशकों व भारत के बुकसेलर्स की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1967-69 तक उन्होंने अध्यक्ष के रूप में इस संगठन की सेवा की। वह एमेरिटस, फेडरेशन ऑफ इंडियन पब्लिशर्स के भी अध्यक्ष रहे। वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकासशील देशों के नजरिए से कॉपीराइट के मुद्दों के साथ शामिल थे और यूनेस्को में विशेषज्ञ के साथ बैठकों में भाग लिया। उन्हें 2000 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।

दीनानाथ मल्होत्रा ​​ने 1944 में पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर में अकादमी में मास्टर्स में स्वर्ण पदक जीता था। उन्हें 2012 में पाकिस्तान उच्चायोग, नई दिल्ली में सम्मानित किया गया था।

उनका दाह संस्कार बुधवार की शाम को लोधी रोड स्थित श्मशान घाट पर किया गया। मुखाग्नि पुत्र शेखर मल्होत्रा ने दी। इस मौके पर दिल्ली के सभी बड़े प्रकाशकों ने मौजूद रहकर नाम आंखों से विदाई दी।

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