नहाय खाय के साथ जितिया पर्व शुरू, जानें क्या है इससे जुड़ी मान्यताएं, शुभ मुहूर्त, पूजन विधि
नई दिल्ली। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत होता है। इस वर्ष यह 10 सितंबर दिन गुरुवार को है। इससे पहले 09 सितंबर यानि आज को नहाय खाए मनाया जा रहा है। जीवित्पुत्रिका व्रत को जितिया या जिउतिया या जीमूत वाहन का व्रत आदि नामों से जाना जाता है। इस दिन माताएं विशेषकर पुत्रों के दीर्घ, आरोग्य और सुखमय जीवन के लिए यह व्रत रखती हैं। जिस प्रकार पति की कुशलता के लिए निर्जला व्रत तीज रखा जाता है, ठीक वैसे ही जीवित्पुत्रिका व्रत निर्जला रहा जाता है। आइये जानते हैं इससे जुड़ी कुछ मान्यताएं, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त के बारे में
जितिया व्रत पूजन विधि
तीज और छठ पर्व की तरह जितिया व्रत की शुरूआत भी नहाय-खाय के साथ ही होती है। इस पर्व को तीन दिनों तक मनाये जाने की परंपरा है। सप्तमी तिथि को नहाय-खाय होती है। उसके बाद अष्टमी तिथि को महिलाएं बच्चों की उन्नति और आरोग्य रहने की मंगलकामना के साथ निर्जला व्रत रखती हैं। तीसरे दिन अर्थात नवमी तिथि को व्रत को तोड़ा जाता है, जिसे पारण भी कहा जाता है।
व्रत का शुभ मुहूर्त
पंडित सुनिल सिंह की मानें तो जितिया व्रत इस वर्ष 10 सितंबर को पड़ रहा है। जिसका शुभ मुहूर्त दोपहर 2 बजकर 5 मिनट से शुरू हो जायेगा। जो अगले दिन यानि 11 सितंबर को 4 बजकर 34 मिनट तक रहेगा। इस व्रत को पारण के द्वारा तोड़ा जाएगा जिसका शुभ समय 11 सितंबर को दोपहर 12 बजे तक होगा।
जितिया व्रत का महत्व
संतान की मंगल कामना व उसकी लंबी उम्र के लिए ये व्रत रखा जाता है। ये निर्जला व्रत होता है। ये उपवास तीन दिन तक चलता है। इसे संतान की सुरक्षा से जोड़कर देखा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो इस व्रत की कथा को सुनता है वह जीवन में कभी संतान वियोग नहीं सहता है।
आज नहाय-खाय के दिन क्या-क्या खाने की है मान्यताएं
इस दिन महिलाएं प्रातः काल जल्दी जागकर पूजा पाठ करती है और एक बार भोजन करती है. भोजन में बिना नमक या लहसुन आदि के सतपुतिया (तरोई) की सब्जी, मंडुआ के आटे के रोटी, नोनी का साग, कंदा की सब्जी और खीरा खाने का महत्व है। ठेकुआ और पुआ भी बनता है। उसके बाद महिलाएं दिन भर कुछ भी नहीं खातीं।
पूजन की विधि
पूजन के लिए जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित किया जाता है और फिर पूजा करती है। इसके साथ ही मिट्टी तथा गाय के गोबर से चील व सियारिन की प्रतिमा बनाई जाती है। जिसके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है। पूजन समाप्त होने के बाद जिउतिया व्रत की कथा सुनी जाती है। पुत्र की लंबी आयु, आरोग्य तथा कल्याण की कामना से स्त्रियां इस व्रत को करती है। कहते है जो महिलाएं पुरे विधि-विधान से निष्ठापूर्वक कथा सुनकर ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देती है, उन्हें पुत्र सुख व उनकी समृद्धि प्राप्त होती है।
जितिया व्रत से संबंधित मान्यताएं
धार्मिक मान्यताओं की मानें तो महाभारत के युद्ध के दौरान पिता की मौत होने से अश्वत्थामा को बहुत आघात पहुंचा था। वे क्रोधित होकर पांडवों के शिविर में घुस गए थे और वहां सो रहे पांच लोगों को पांडव समझकर मार डाला था। ऐसी मान्यता है कि वे सभी संतान द्रौपदी के थे। इस घटना के बाद अर्जुन ने अश्वत्थामा गिरफ्त में ले लिया और उनसे दिव्य मणि छीन ली थी। अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में भी पल रहे बच्चे को मार डाला। ऐसे में अजन्मे बच्चे को श्री कृष्ण ने अपने दिव्य शक्ति से पुन: जीवित कर दिया। गर्भ में मृत्यु को प्राप्त कर पुन: जीवन मिलने के कारण उसका नाम जीवित पुत्रिका रखा गया। वह बालक बाद में राजा परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसी के बाद से संतान की लंबी उम्र हेतु माताएं मंगल कामना करती हैं और हर साल जितिया व्रत को विधि-विधान से पूरा करती हैं।