नई दिल्ली। हिन्दू धर्म में गुरु और गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है। हिन्दुओं में गुरु का सर्वश्रेष्ठ स्थान है। किसी भी व्यक्ति की सफलता के पीछे सबसे बड़ा हाथ उसके गुरु का होता है। जीवन में किसी भी कार्य को करने से पहले उसे सीखना पड़ता है और सिखाने वाला व्यक्ति ही गुरु होता है। यही वजह है कि देश भर में गुरु पूर्णिमा का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।
मान्यता है कि इसी दिन आदिगुरु, महाभारत के रचयिता और चार वेदों के व्याख्याता महर्षि कृष्ण द्वैपायन व्यास यानी कि महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। वे संस्कृत के महान विद्वान थे। महाभारत जैसा महाकाव्य उन्हीं की देन है। गुरु के ज्ञान और दिखाए गए मार्ग पर चलकर व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है| शास्त्रों में कहा गया है कि यदि ईश्वर आपको श्राप दें तो इससे गुरु आपकी रक्षा कर सकते हैं परंतु गुरु के दिए श्राप से स्वयं ईश्वर भी आपको नहीं बचा सकते हैं| इसलिए कबीर जी कहते भी हैं -
गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय॥
हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार गुरु पूर्णिमा हर साल जुलाई महीने में आती है। इस बार गुरु पूर्णिमा 16 जुलाई को है।
गुरु पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त
गुरु पूर्णिका की तिथि: 16 जुलाई 2019
गुरु पूर्णिमा प्रारंभ: 15 जुलाई 2019 को रात 01 बजकर 48 मिनट से
गुरु पूर्णिमा तिथि सामप्त: 16 जुलाई 2019 की रात 03 बजकर 07 मिनट तक
गुरु पूर्णिमा का महत्व
इस दिन को हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिवस भी माना जाता है। वे संस्कृत के महान विद्वान थे महाभारत जैसा महाकाव्य उन्ही की देन है। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा का विधान है। दरअसल, गुरु की पूजा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि उसकी कृपा से व्यक्ति कुछ भी हासिल कर सकता है। गुरु की महिमा अपरंपार है। गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती। गुरु को तो भगवान से भी ऊपर दर्जा दिया गया है। इस दिन गुरु की पूजा की जाती है।
पुराने समय में गुरुकुल में रहने वाले विद्यार्थी गुरु पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से अपने गुरु की पूजा-अर्चना करते थे। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु में आती है। इस मौसम को काफी अच्छा माना जाता है। इस दौरान न ज्यादा सर्दी होती है और न ही ज्यादा गर्मी। इस मौसम को अध्ययन के लिए उपयुक्त माना गया है। यही वजह है कि गुरु पूर्णिमा से लेकर अगले चार महीनों तक साधु-संत विचार-विमर्श करते हुए ज्ञान की बातें करते हैं। इस दिन केवल गुरु की ही नहीं, बल्कि घर में अपने से जो भी बड़ा है यानी कि माता-पिता, भाई-बहन, सास-ससुर को गुरुतुल्य समझ कर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है।
गुरु पूर्णिमा की पूजा विधि
-हिन्दू धर्म में गुरु को भगवान से ऊपर दर्जा दिया गया है। गुरु के जरिए ही ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है। ऐसे में गुरु की पूजा भी भगवान की तरह ही होनी चाहिए। गुरु पूर्णिमा के दिन आप इस तरह अपने गुरु की पूजा कर सकते हैं।
- गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह-सवेरे उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- फिर घर के मंदिर में किसी चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाएं।
- इसके बाद इस मंत्र का उच्चारण करें- 'गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये'
- पूजा के बाद अपने गुरु या उनके फोटो की पूजा करें।
- अगर गुरु सामने ही हैं तो सबसे पहले उनके चरण धोएं। उन्हें तिलक लगाएं और फूल अर्पण करें।
- अब उन्हें भोजन कराएं।
- इसके बाद दक्षिण दें और पैर छूकर विदा करें।
- इस दिन आप ऐसे किसी भी इंसान की पूजा कर सकते हैं जिसे आप अपना गुरु मानते हों। फिर चाहे वह ऑफिस के बॉस हों, सास-ससुर, भाई-बहन, माता-पिता या दोस्त ही क्यों न हों।
- अगर आपके गुरु का निधन हो गया है तो आप उनकी फोटो की विधिवत् पूजा कर सकते हैं।