नई दिल्ली। होली के सातवें दिन शीतला सप्तमी का त्यौहार मनाया जाता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। वहीं, देश के कुछ हिस्सों में ये त्यौहार अष्टमी तिथि को भी मनाया जाता है। होली के बाद चैत्र मास की अष्टमी से लेकर वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ कृष्ण पक्ष की अष्टमी माता शीतला की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होती है। देशभर में आज शीतला सप्तमी का व्रत मनाया जा रहा है। इस पूजा को उत्तर भारत के कई जगहों पर बासौड़ा या बसोरा के नाम से भी जाता है।
क्या है शुभ मुहूर्त
27 मार्च सुबह 06:25 से शाम 06:40 तक।
अष्टमी तिथि आरंभ- 27 मार्च 2019, बुधवार रात 08:55 बजे से
अष्टमी तिथि समाप्त- 28 मार्च 2019, गुरुवार रात 10:34 बजे
शीतला सप्तमी/अष्टमी का महत्व
ऐसी मान्यता है कि शीतला माता महिलाएं अपने बच्चों के लिए रखती है। कहा जाता है कि बच्चों की सेहत अच्छी सेहत के लिए शीतला माता की उपसना की जाती है। ये व्रत रखने से बच्चों को किसी भी प्रकार का बुखार, आंखों के रोग और ठंड से होने वाली बीमारियां नहीं होती है। इसके साथ एक और मान्यता है कि शीतला सप्तमी के बाद बासी भोजन नहीं किया जाता है। यह बासी भोजन का खाने का आखिरी दिन होता है। इसके बाद मौसम गर्म होता है, इसीलिए ताजा खाना खाया जाता है।
ऐसे करें मां शीतला की पूजा
सुबह सबसे पहले स्नान करें. इसके बाद शीतला माता की पूजा करें। श्मम गेहे शीतलारोगजनितोपद्रव प्रशमनपूर्वकायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धिये शीतलाष्टमी व्रतं करिष्येश् से व्रत का संकल्प लें। इसके बाद विधि-विधान और सुगंध युक्त फूल आदि से माता शीतला का पूजन करें। फिर एक दिन पहले बनाए हुए बासी भोजन, मेवे, मिठाई, पूआ, पूरी और भीगी हुई चने की दाल आदि का भोग लगाएं। इसके बाद शीतला स्रोत का पाठ करना चाहिए। माता को भोग में रात के बने गुड़ वाले चावल चढ़ाएं। व्रत में इन्हीं चावलों को खाएं।
ये है पौराणिक कथा
शीतला माता के संदर्भ में अनेक कथाएं प्रचलित है। एक कथा के अनुसार एक दिन माता ने सोचा कि धरती पर चल कर देखें की उसकी पूजा कौन-कौन करता है। माता एक बुढ़िया का रूप धारण कर राजस्थान के डूंगरी गांव में गई। माता जब गांव में जा रही थी तभी ऊपर से किसी ने चावल का उबला हुआ पानी डाल दिया। माता के पूरे शरीर पर छाले हो गए और पूरे शरीर में जलन होने लगी।
माता दर्द में कराहते हुए गांव में सभी से सहायता मांगी, लेकिन किसी ने भी उनकी नहीं सुनी। गांव में कुम्हार परिवार की एक महिला ने जब देखा कि एक बुढ़िया दर्द से कराह रही है, तो उसने माता को बुलाकर घर पर बैठाया और बहुत सारा ठंडा जल माता के ऊपर डाला। ठंडे जल से माता को उन छालों की पीड़ा में काफी राहत महसूस हुई। फिर कुम्हारिन महिला ने माता से कहा माता मेरे पास रात के दही और राबड़ी है, आप इनको खाये। रात के रखे दही और ज्वार की राबड़ी खा कर माता को शरीर में काफी ठंडक मिली। कुम्हारिन ने माता को कहा माता आपके बाल बिखरे है इनको गूथ देती हूं।
वो जब बाल बनाने लगी तो बालों के नीचे छुपी तीसरी आंख देख कर डर कर भागने लगी। तभी माता ने कहा बेटी डरो मत में शीतला माता हूं और मैं धरती पर ये देखने आई थी कि मेरी पूजा कौन करता है। फिर माता असली रूप में आ गई। कुम्हारिन महिला शीतला माता को देख कर भाव विभोर हो गई। उसने माता से कहा माता मैं तो बहुत गरीब हूं। आपको कहा बैठाऊ। मेरे पास तो आसन भी नहीं है। माता ने मुस्कुराकर कुम्हारिन के गधे पर जाकर बैठ गई और झाडू से कुम्हारिन के घर से सफाई कर डलिया में डाल कर उसकी गरीबी को बाहर फेंक दिया। माता ने कुम्हारिन की श्रद्धा भाव से खुश होकर वर मांगने को कहा। कुम्हारिन ने हाथ जोड़कर कहा माता आप वर देना चाहती है तो आप हमारे हमारी गांव में ही निवास करे और जो भी इंसान आपकी श्रद्धा भाव से सप्तमी और अष्टमी को पूजा करे और व्रत रखे तथा आपको ठंडा व्यंजन का भोग लगाएं उसकी गरीबी भी ऐसे ही दूर करें।
पूजा करने वाली महिला को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद दें। माता शीतला ने कहा बेटी ऐसा ही होगा और कहा कि मेरी पूजा का मुख्य अधिकार कुम्हार को ही होगा। तभी से ये परंपरा चल रही है।