हिन्दू पंचांग के अनुसार जिस चन्द्रमास में सूर्य संक्रांति नहीं होती वही महीना मलमास कहलाता है। सूर्य संक्रांति नहीं होने से पुण्यकाल नहीं होता इसलिए इसे मल मास कहते हैं। इसलिए आज सूर्य बृहस्पति की राशि मीन में प्रवेश करने जा रहा है और इसी के साथ ही मलमास आज प्रारंभ हो हो गया है। यह विशेष माह अगले एक माह तक जारी रहेगा और इसमें कुछ मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। इस वर्ष का मलमास आज से 13 जून तक रहेगा।
आज सूर्य मीन राशि में प्रवेश करने के कारण मलमास प्रारंभ हो जाएगा। ऐसा होते ही जिसके बाद अगले एक महीने तक सभी मांगलिक कार्य नहीं किये जाएंगे। जिसके बाद 13 जून तक सूर्य इस राशि में भ्रमण करते रहेंगे। इसके पश्चात् जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करेंगे तो इसके बाद ही विवाह आदि सब मांगलिक कार्य भी प्रारंभ किए जा सकेंगे।
कहा जाता है कि हर तीन साल में एक बार एक अतिरिक्त माह का समय आता है, जिसे अधिकमास, मलमास या पुरूषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि अधिकमास में किए गए धार्मिक कार्यों का किसी भी अन्य माह में किए गए पूजा-पाठ से कई गुना अधिक फल मिलता है। यही वजह है कि श्रद्धालु जन अपनी पूरी श्रद्धा और शक्ति के साथ इस मास में भगवान को प्रसन्न करने में जुट जाते हैं।
भारतीय ज्योतिष में सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलता है। अधिकमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है, जो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घड़ी के अंतर से आता है। इसका प्राकट्य सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाने के लिए होता है। भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास का नाम दिया गया है।
हिंदू धर्म में अधिकमास के दौरान सभी पवित्र कर्म वर्जित माने गए हैं। माना जाता है कि अतिरिक्त होने के कारण यह मास मलिन होता है। इसलिए इस मास के दौरान हिंदू धर्म के विशिष्ट व्यक्तिगत संस्कार जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह और सामान्य धार्मिक संस्कार जैसे गृहप्रवेश, नई बहुमूल्य वस्तुओं की खरीदी आदि आमतौर पर नहीं किए जाते हैं। मलिन मानने के कारण ही इस मास का नाम मलमास पड़ गया है।
कहा जाता है कि भारतीय मनीषियों ने अपनी गणना पद्धति से हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित किए। चूंकि अधिकमास सूर्य और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रकट हुआ, तो इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार नहीं हुआ।
ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे ही इस मास का भार अपने उपर लें। भगवान विष्णु ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और इस तरह यह मल मास के साथ पुरूषोत्तम मास भी बन गया। अधिकमास के अधिपति स्वामी भगवान विष्णु माने जाते हैं। पुरूषोत्तम भगवान विष्णु का ही एक नाम है। इसीलिए अधिकमास को पुरूषोत्तम मास के नाम से भी पुकारा जाता है। इस विषय में एक बड़ी ही रोचक कथा पुराणों में पढ़ने को मिलती है।
क्या करें
आमतौर पर अधिकमास में हिंदू श्रद्धालु व्रत- उपवास, पूजा- पाठ, ध्यान, भजन, कीर्तन, मनन को अपनी जीवनचर्या बनाते हैं। पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार इस मास के दौरान यज्ञ- हवन के अलावा श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन विशेष रूप से फलदायी होता है। अधिकमास के अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं, इसीलिए इस पूरे समय में विष्णु मंत्रों का जाप विशेष लाभकारी होता है। ऐसा माना जाता है कि अधिक मास में विष्णु मंत्र का जाप करने वाले साधकों को भगवान विष्णु स्वयं आशीर्वाद देते हैं, उनके पापों का शमन करते हैं और उनकी समस्त इच्छाएं पूरी करते हैं।
क्या न करें
मलमास में किसी भी तरह के मांगलिक कार्य वर्जित माने जाएंगे जैसे शादी, विवाह, गृह प्रवेश, नए घर का निर्माण आदि।