ब्रेकिंग न्यूज़
मोतिहारी के केसरिया से दो गिरफ्तार, लोकलमेड कट्टा व कारतूस जब्तभारतीय तट रक्षक जहाज समुद्र पहरेदार ब्रुनेई के मुआरा बंदरगाह पर पहुंचामोतिहारी निवासी तीन लाख के इनामी राहुल को दिल्ली स्पेशल ब्रांच की पुलिस ने मुठभेड़ करके दबोचापूर्व केन्द्रीय कृषि कल्याणमंत्री राधामोहन सिंह का बीजेपी से पूर्वी चम्पारण से टिकट कंफर्मपूर्व केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री सांसद राधामोहन सिंह विभिन्न योजनाओं का उद्घाटन व शिलान्यास करेंगेभारत की राष्ट्रपति, मॉरीशस में; राष्ट्रपति रूपुन और प्रधानमंत्री जुगनाथ से मुलाकात कीकोयला सेक्टर में 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 9 गीगावॉट से अधिक तक बढ़ाने का लक्ष्य तय कियाझारखंड को आज तीसरी वंदे भारत ट्रेन की मिली सौगात
जरूर पढ़े
कृषक वैज्ञानिक ने किसानों को दिये सुझाव
By Deshwani | Publish Date: 15/2/2017 4:33:50 PM
कृषक वैज्ञानिक ने किसानों को दिये सुझाव

ललितपुर,(आईपीएन)। कृषक वैज्ञानिक ने कृषक को सूचित किया है कि इस समय जनपद में मौसम के उतार चढाव के कारण विभिन्न फसलों में विभिन्न कीट/रोगों की बढने की सम्भावना है। गेहॅू चना मटर मसूर एवं सरसों की फसलों में देख-रेख की विशेष आवश्यकता है अतः किसान भाईयों को फसलों के बचाव हेतु निम्नानुसार सुझाव दिये जाते हैं। गेहॅू की फसल में गेरूई रोग लगने पर फफॅूदी के फफोले पत्तियों पर पड जाते है जो बाद में बिखरकर अन्य पत्तियों को प्रभावित करते है। इसकी रोकथाम के लिये मेन्कोजेब 75 प्रति डब्लूपी की 2 किग्रा मात्रा या जिनेब 75 प्रति0 डब्लूपी की 2.5 किग्रा मात्रा या प्रोपीकोनाजॉल 25 प्रति0 ईसी की 500 एमएल मात्रा को 800 ली0 पानी में घोलकर प्रति हेक्टेअर की दर से छिडकाव करें। करनाल बण्ट रोग लगने पर बालियों में दाने आशिंक रूप से काले चूर्ण में बदल जाते है। इसके नियत्रंण के लिये रोग के लक्षण दिखाई देने पर प्रोपीकोनाजॉल 25 प्रति0 ईसी की 500 एमएल मात्रा को 800-1000 ली0 पानी में घोलकर प्रति हेक्टेअर की दर से छिडकाव करें। 

गेहॅू में अनावृत कडुआ रोग लगने पर बालियों में दाने के स्थान पर काला चूर्ण बन जाता है इसके नियत्रंण हेतु रोगी पौधों को उखाडकर जमीन में दबा दें। इसके बाद हेक्जाकोनाजॉल 5 प्रति ईसी की 500 एमएल मात्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेअर की दर से छिड़काव करें। 
 
सरसों/राई में सफेद गेरूई व तुलासिता रोग-
सफेद गेरूई रोग में पत्तियों की निचली सतह पर सफेद फफोले बनते है जबकि तुलासिता रोग में पत्तियों की निचली सतह पर सफेद रोयेंदार फॅफूदी तथा ऊपरी सतह पर पीलापन होता है इन दोनों रोगों के नियत्रंण हेतु मैन्कोजेब 75 प्रति0 डब्लूपी की 2 किग्रा मात्रा अथवा मेटालेक्जिल$मेन्कोंजेब (रिडोमिल एमजेड) की एक 1 किग्रा0 मात्रा को 800 ली0 पानी में घोलकर प्रति हेक्टेअर की दर से फसल में छिडकाव करना चाहिये। 
 
मटर में चूर्ण, मृदुरोमिल आसिता व झुलसा रोग-
चूर्ण आसिता में पौधों की निचली पत्तियों के दोनो ओर मटमैले रंग के धब्बे दिखायी देते हैं। जो बाद में पत्तियों फलियों तथा तने पर सफेद चूर्ण के रूप में फेल जाते है। इसके नियत्रंण हेतु गंधक चूर्ण 2.5 किग्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर फसल में प्रति हेक्टेअर की दर से छिडकाव करना चाहियें। मृदुरोमिल आसिता में पौधों की पत्तियों की निचली सतह पर छोटे-छोटे मटमैले भूरे या बैगनी रंग के धब्बे बनते है एवं झुलसा रोग में पाधों की निचली पत्तियों पर किनारे से भूरे रंग के धब्बे बनते है। इन रोगों के नियत्रंण हेतु मैन्कोजेब 75 प्रति डब्लूपी की 2 किग्रा0 मात्रा को 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेअर की दर से छिडकाव करें। 
 
चना मटर व मसूर में उकटा रोग- 
इस रोग में पौधों की पत्तियॉ नीचे से ऊपर की ओर पीली पड़ने लगती है और पूरा पौधा सूख जाता है यह रोग फ्यूजेरियम स्पीसीज नामक फफॅूदी के कारण होता है इसके नियत्रंण हेतु बुवाई से पूर्व बीजों को 2.5 ग्राम कार्बनडाजिम या 2.5 ग्राम थीरम या 4 ग्राम ट्राईकोडर्मा प्रति किग्रा बीज की दर से बीज शोधन कर ही बुवाई करें। 
 
चना मटर व मसूर में फली भेदक व कटुआ कीट-
यह कीट फलिया में छेद बनाकर दानों को खाता रहता है तथा कटुआ कीट पौधों को काटता रहता है इसके नियंण हेतु क्यूनॉलफॉस 25 प्रति0 ई0सी0 या प्रोफेनोफॉस 50 प्रति0 ई0सी0 की 1.25 लीटर मात्रा को 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति0 हेक्टेअर की दर से छिडकाव करें। 
 
सरसों एवं अन्य फसलों में चूसक कीट (माहू आदि)-
यह कीट पौधों से रस चूसते रहते है इनके नियत्रंण हेतु डाईमिथोएट 30 प्रति0 ईसी या क्यूनॉलफॉस 25 प्रति ईसी या मिथाईल-ओ-डिमेटॉन 25 प्रति ईसी की एक लीटर मात्रा को 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेअर की दर से छिडकाव।
image
COPYRIGHT @ 2016 DESHWANI. ALL RIGHT RESERVED.DESIGN & DEVELOPED BY: 4C PLUS