नई दिल्ली, (हि.स.)। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, 33 राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में 10 अगस्त, 2017 को राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस (एनडीडी) 2017 की शुरूआत करेगा। इसके तहत 17 अगस्त तक 31 करोड़ बच्चों को कृमि मुक्ति की दवा देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। निजी विद्यालयों के 7.8 करोड़ बच्चों को लक्षित किया गया है। इनमें से 3.5 करोड़ बच्चों को आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं के मध्यम से दवा दी जाएगी। यह सबसे बड़े जन स्वास्थ्य कार्यक्रमों में से एक है। इसके तहत अल्पावधि में बच्चों की विशाल जनसंख्या तक पहुंचा जाएगा। एनडीडी का पहला चरण फरवरी, 2017 में लागू किया गया था और इसके तहत 26 करोड़ बच्चों को दवा दी गई थी, जो कुल बच्चों का 89 प्रतिशत है।
एनडीडी कार्यक्रम का शुभारंभ 2015 में हुआ था, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह आकलन किया था कि भारत में 14 वर्ष से कम उम्र के 220 मिलियन बच्चों में मिट्टी संचारित कृमि (एचटीएच) संक्रमण का जोखिम है। राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस प्रत्येक वर्ष दो चरणों में आयोजित किया जाता है। इसके तहत 1 से 19 आयुवर्ग के सभी बच्चों को इस दायरे में लाने का प्रयास किया जाता है। केवल राजस्थान और मध्य प्रदेश में यह कार्यक्रम वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है। इन दोनों राज्यों में मिट्टी संचारित कृमि (एसटीएच) रोग की दर 20 प्रतिशत से कम है। सभी बच्चों को स्कूलों और आंगनवाडि़यों में कृमि मुक्ति की दवा दी जाती है। कृमि मुक्ति से बच्चों में पोषण की स्थिति को बेहतर बनाया जा सकता है। कृमि संक्रमण से निपटने के लिए ‘एल्बेंडाजोल’ एक प्रभावी दवा है।
एनडीडी का पहला चरण फरवरी, 2015 में आयोजित किया गया। इसके तहत 11 राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों के 8.9 करोड़ बच्चों (कुल बच्चों का 85 प्रतिशत) को कृमि मुक्ति की दवा दी गई। इसके पश्चात फरवरी 2016, अगस्त 2016 और फरवरी 2017 के चरणों में क्रमश: 25 करोड़, 12 करोड़ और 26 करोड़ बच्चों को दवा दी गई। एनडीडी के दौरान कृमि मुक्ति दवा के अलावा जल, साफ-सफाई और स्वास्थ्य से संबंधित कई कार्यक्रम स्कूलों और आंगनवाडि़यों में आयोजित किये जाते हैं। ये कार्यक्रम मानव संसाधन विकास मंत्रालय तथा महिला और बाल विकास मंत्रालय के सहयोग से तथा एनडीडी के संचालन दिशा-निर्देशों के तहत आयोजित किये जाते हैं। इनमें प्रमुख हैं राज्यों और जिलों में परिचालन समिति की बैठक, समयबद्ध दवा वितरण, आईईसी वस्तुएं, लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाना तथा ऐसे बच्चों को कार्यक्रम में शामिल करना, जो विद्यालय नहीं जाते।
बच्चों के सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि पर ध्यान दिए बगैर राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस प्रत्येक बच्चे तक पहुंचने का प्रयास करता है। ऐसे कार्यक्रम के आयोजन के लिए विद्यालय और आंगनवाड़ी सबसे उपयुक्त स्थान हैं। इससे उनके प्राकृतिक वातावरण में, कम खर्च में तथा प्रणालीबद्ध तरीके से बच्चों तक पहुंचा जा सकता है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस के दौरान जो बच्चे स्कूल में नामांकित नहीं है, दुर्गम क्षेत्रों में रहते हैं या जिनमें कृमि संक्रमण का जोखिम ज्यादा है, ऐसे बच्चों तक भी राज्य, जिला व समुदाय स्तर पर जागरूकता फैलाते हुए पहुंचने का प्रयास किया जाता है।
कृमि मुक्ति कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय स्तर पर यह प्रयास किया जाता है कि अंतिम विद्यालय और आंगनवाड़ी केन्द्र तक दवा, संचार के साधन और रिपोर्ट प्रपत्र समय पूर्व पहुंच जाएं। सभी स्तरों के सभी अधिकारी व कर्मचारी प्रशिक्षित किये गये हैं। इनमें शिक्षक और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता भी शामिल हैं, जो इस कार्यक्रम के आधार स्तंभ कहे जा सकते हैं। कृमि मुक्ति की दवा का दुष्प्रभाव बहुत कम है, लेकिन जिन बच्चों में कृमि की मात्रा ज्यादा होती है, वे उनींदापन, पेट दर्द, दस्त, डायरिया और थकान का अनुभव कर सकते हैं। स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किये गये हैं। कृमि से मुक्ति पाने के अलावा स्वास्थ्य और साफ-सफाई की अच्छी आदतों से बच्चे के साथ-साथ समुदाय भी कृमि संक्रमण से सुरक्षित रह सकते हैं।