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सीडीआरआई के वैज्ञानिकों ने ईजाद की गठिया की नई दवा
By Deshwani | Publish Date: 31/7/2017 7:16:51 PM
सीडीआरआई के वैज्ञानिकों ने ईजाद की गठिया की नई दवा

लखनऊ, (हि.स.)। लखनऊ स्थित सीडीआरआई के वैज्ञानिकों ने ऑस्टियोआर्थराइटिस (गठिया) के इलाज के लिए एक नई दवा ईजाद की है। सीडीआरआई के वैज्ञानिकों ने ऑस्टियोआर्थराइटिस के उपचार के लिए पालक के रूप में जाने जाने वाले स्पिनेशिया ओलेरेसिया से एक मानकीकृत नैनो-फोर्मूलेशन तैयार किया है।
जोड़ों की एक सबसे सामान्य एवं पुरानी बीमारी, गठिया, जो मुख्य रूप से अधिक वजन के कारण जोड़ों जैसे कूल्हों और घुटनों पर प्रभाव डालती है एवं शारीरिक अशक्तता का मुख्य कारण बनती है। वर्तमान में ओस्टियोर्थ्राइटिस के लिए कोई व्यवहारिक उपचार उपलब्ध नहीं है।
बोन बायोलोजिस्ट एवं रिसर्च टीम की लीडर डॉ ऋतु त्रिवेदी ने बताया की सीडीआरआई में हमारे शोध का यह परिणाम था, जब हमारा पूरा ध्यान रजोनिवृत्ति के बाद होने वाले ऑस्टियोपोरोसिस और फ्रैक्चर हीलिंग पर केन्द्रित था। हमने पाया है कि पालक (स्पिनेशिया ओलेरेसिया) का एक मानक नैनो-फोर्मूलेशन में न केवल अस्थि बनाने की क्षमता होती है, बल्कि इसमें प्रभावित स्थान पर कार्टिलेज कोशिकाओं की एक स्वस्थ पर्त तैयार करने की क्षमता भी है। चूहों पर किए अपने प्रयोगों मे हमने पाया कि पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस मॉडल में, पालक के इस नेनों फोर्मूलेशन ने क्षतिग्रस्त उपास्थि (कार्टिलेज) की मरम्मत कर उसे ठीक भी किया। जल्द ही यह दवा बाजार में उपलब्ध होगी आज इसे फार्मेंजा प्राइवेट लिमिटेड को लाइसेंस किया गया है।”
क्रोनिक ऑस्टियोआर्थराइटिस को बुढ़ापे की समस्या के रूप में माना जा सकता है लेकिन इसके विपरीत यह जोड़ों के एक आम समस्या है जो कि छोटी उम्र में भी प्रभावित कर सकता है। अधिकांश लोग सोचते हैं कि गठिया उम्र बढ़ने का एक अनिवार्य हिस्सा है, लेकिन वास्तव में, यह किसी भी उम्र में किसी को भी प्रभावित कर सकता है।
भारत में लगभग 39: लोग ओस्टियोआर्थराइटिस से ग्रस्त हैं जिसमें 45: महिलाओं में 65 वर्ष की आयु मे इसकी शिकायत मिलती एवं 70: मे तो ओस्टियोआर्थराइटिस के एक्स-रे सबूत भी मिल जाते हैं। क्रोनिक ऑस्टियोआर्थराइटिस से पीड़ित रजोनिवृत्त (पोस्टमेनोपाजल) महिलाओं फ्रैक्चर होने का खतरा 20ः बढ़ा हुआ पाया गया है। 
आनुवंशिकी, वजन और जोड़ों मे चोट सहित कई कारक गठिया के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। वर्तमान में गठिया के लिए विषेश रूप से बाजार में कोई दवाएं नहीं हैं,जिनको मुंह से लिया जा सके समान्यतः तेल अथवा लेप उपलब्ध हैं। इबुप्रोफेन, नेपरोक्सन जैसी दर्द निवारक दवाएं केवल गठिया संबन्धित लक्षणों के उपचार हेतु उपलब्ध हैं। रिपोर्टें बताती हैं कि दीर्घकालिक उपयोग पर ये दवाएं भी लीवर को नुकसान पहुँचाती हैं। 
दवा के लाइसेन्स किए जाने के अवसर पर निदेशक, सीएसआईआर-सीडीआरआई, डॉ मधु दीक्षित ने कहा, हमारे शोध के परिणामों के आधार पर हमारी दवा कोई विषाक्तता नहीं दिखाती है और नैनो फोर्मूलेशन तैयार करने की वजह से ये कम मात्रा में भी प्रभावी है। इसमें चार जैव-मार्करों का समावेश है जो संभवतरू घुटने के जोड़ पर उपास्थि की मरम्मत में बेहद प्रभावशील हैं।
निर्देशक, फर्मेंजा प्राइवेट लिमिटेड, डॉ एल हिंगोरानी ने कहा कि इस नई दवा के लाइसेंस के अवसर पर हम बेहद खुश हैं, यह आईएसआईआर- सीडीआरआई के साथ हमारा दूसरा लाइसेंसिंग एग्रीमेंट हुआ है, यह दवा ओस्टियोआर्थराइटिस के इलाज में बहुत सहायक होगी और जल्द ही बाजार में आ जाएगी।
शोधकर्ताओं की टीम में शामिल सदस्य
डॉ रितु त्रिवेदी (हड्डी जीवविज्ञानी), डॉ प्रभात रंजन मिश्रा (फोर्मूलेशन विशेषज्ञ), डॉ राकेश मौर्य (औषधीय रसायनज्ञ), डॉ जवाहर लाल (फार्माकोकायनेटिक्स),डॉ एस के रथ (विषाक्तता) सहित रिसर्च स्टूडेंट्स धर्मेंद्र चैधरी, सुलेखा अधिकारी, नसीर अहमद, प्रियंका कोठारी, आशीष त्रिपाठी, नरेश मिट्टापल्ली, गीतु पांडे, सुधीर कुमार एवं कपिल देव शामिल हैं।
 
 
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