बोलपुर। सिद्धार्थ शंकर। शांतिनिकेतन। वर्तमान समय में जब देश का लोकतंत्र अंधेरे में पहुंच कर खुद के ही तंत्र की तलाश कर रहा है ऐसे समय में राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित "वैधानिक गल्प" हमें खुद के गिरेबान में झांकने को मजबूर करता है,इसलिए क्योंकि हम भी इसी समाज के प्रतिनिधि हैं जिनके एकजुट होने पर भीड़-तंत्र लोकतंत्र की हत्या करते हुए मुखरता के साथ उठ खड़ा होता है। कथाकार चंदन पांडेय ने इस उपन्यास के माध्यम से भारत की संवैधानिक व्यवस्था के चार तंत्रों में से तीन तंत्रों की कलई खोल कर पाठकों के सामने बड़ी बेबाकी से रखी है। "वैधानिक गल्प" की कथावस्तु में लोकतंत्र स्थायी रूप से समाया हुआ है। इसकी कथावस्तु पाठकों की आत्मचेतना को जागृत कर उनसे वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सवाल पूछने के काबिल बनाती है। वैधानिक गल्प की कथावस्तु किसी रॉकेट की तरह चलती है जो अंतरिक्ष के शून्य में ले जाकर अनेक सवालों के साथ हमें छोड़ देती है।
इस कहानी का रोमांच इसे फिल्मांकन के लिए सुलभ बनाता है। नोमा शहर(कस्बे) के इर्द-गिर्द घूमती यह कहानी मुख्यतः नोमा(कस्बा),रफ़ीक और अर्जुन कुमार की है। बाद के पात्र तो केवल हमारी चेतना शक्ति की परीक्षा लेने व रफ़ीक के नायक होने पर कोई प्रश्नचिन्ह न खड़ा कर सके इस बात की तस्दीक करने हेतु ही रचे गए हैं। रफ़ीक केवल खुद नायक नहीं है, अपितु वह समाज में नायकों की एक पूरी पीढ़ी तैयार कर रहा होता है। पात्र की यह कल्पना लेखक के उद्देश्य को बखूबी प्रस्तुत करती है। पूरे उपन्यास में अर्जुन कुमार रफ़ीक की डायरी के मार्फ़त ज्यों-ज्यों उसके पात्र को खोलता है,वर्तमान समाज के संदर्भ में ऐसे नायक की आवश्यकता हमें महसूस होने लगती है। भाषा और लेखन के आधार पर बेहद सरल,सपाट,रोचक और रहस्मयी होने के बावजूद भी यह उपन्यास अपने गूढ़ उद्देश्य के साथ अपने गंभीर होने की पुष्टि करता है। इसमें मौजूद रहस्य इसकी पठनीयता को आखिरी पन्ने तक बरकरार रखता है। कहानी रफ़ीक और जानकी के गुमशुदगी पर रची गयी है, जिसमें आगे चल कर कई मोड़,कई खुलासे होते हैं और इन चीजों की मौजूदगी से ही इसमें तारतम्यता,रोचकता,सरसता जैसे तत्व पाठकों को बांधे रखते हैं। इसकी कथा काफी सूक्ष्मता से और भरपूर कसावट के साथ रची गयी है जो लेखन शिल्प पर लेखक की पकड़ को दर्शाती है।
उपन्यास की कथा मूल रूप से उत्तराखंड में मई 2018 में घटित उस सच्ची घटना पर आधारित है, जिसमें एक बहादुर पुलिस अधिकारी गगनदीप सिंह ने एक युवक को हत्यारी भीड़ द्वारा मॉब लिंचिंग होने से बचाया था। इस उपन्यास का समर्पण भी उसी जांबाज सिपाही के जज्बे को समर्पित है।उपन्यास यूँ तो पूर्णतः राजनैतिक पृष्ठभूमि पर रचा गया है, जिसमें समय-समय पर सूक्ष्म रूप में उभरा प्रेम और उसकी व्याख्या भी अपने आप में काफी विशिष्ट है। उपन्यास की भाषा आम जन की भाषा है जिसमें उर्दू और देशज शब्दों का तड़का इसे पाठकों से काफी सहजता के साथ कनेक्ट करता है। कुल मिलाकर कर "वैधानिक गल्प" हर वर्ग,हर पाठक की पठनीयता के ख्याल से रचा गया उपन्यास है। वर्तमान समय के हालातों को मद्देनजर रखते हुए यह एक बड़े उद्देश्य के साथ बेहद जरूरी उपन्यास है।