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मोतिहारी के तुरकौलिया में बापू का याद दिलाता नीम पेड़ को बचाने को आगे आए डीएफओ, प्रशासनिक कवायद तेज
By Deshwani | Publish Date: 8/11/2019 8:06:42 PM
मोतिहारी के तुरकौलिया में बापू का याद दिलाता नीम पेड़ को बचाने को आगे आए डीएफओ, प्रशासनिक कवायद तेज


मोतिहारी आशोक कुमार। सूख रहे ऐतिहासिक नीम पेड़ को बचाने को लेकर प्रशासनिक कवायद तेज कर दी गई है। इसे लेकर डीएफो ने बुधवार को पेड़ का निरीक्षण किया। जहां उन्होंने  पेड़ के इर्दगिर्द बने चबूतरा के कुछ हिस्सों को अपनी देखरेख में तोड़वाया। साथ ही जगह-जगह गड्ढे खोदवाकर मिट्टी का सैम्पल लेकर जांच करानी की बात कही। पेड़ की जड़ के अगल-बगल भी खुदाई कराकर देखा जा रहा है कि कही कीड़ा तो नहीं लग गया है। साथ ही पानी देने के लिए समुचित व्यवस्था की गई है।


यहां बता दें कि जिला मुख्यालय मोतिहारी से करीब नौ किमी दूर तुरकौलिया प्रखंड कार्यालय के पास स्थित करीब 120 साल पुराने इस पेड़ से पत्ते गायब हैं। जिसकी डालियां सूख रही हैं। अगर जान (हरियाली) है तो पेड़ के तने में। यह पेड़ अंग्रेजों की तीन कठिया कानून व उनके द्वारा किसानों पर जूल्म की याद दिलाती। इस जूल्म के प्रतिकार में महात्मा गांधी ने इसी पेड़े की छाव में अंग्रेजों के विरूद्ध एक सभा भी की थी। अब इसी पेड़ को बचाने की कवायद तेज हो गई है।


वहीं मुखिया बेबी आलम ने डीएफओ को बताया कि यह महज एक पेड़ नहीं है। यहां के लिए इतिहास भी है। पेड़ बचेगा तो इतिहास भी बचा रहेगा। इसका इतिहास बापू के यादों से जुड़ा हुआ है।
बीडीओ राजेश भूषण ने बताया कि यह एक एतिहासिक पेड़ है। इसे बचाने के लिए प्रशासनिक स्तर पर पूरा प्रयास किया जा रहा है। खादबीज के साथ-साथ दवा भी दी जा रही है। इस मुद्दे पर कृषि वैज्ञानिकों से सलाह भी ली जा रही है। ताकि पेड़ बचा रहें। इससे लोगों का भावनात्मक रिश्ता है।
मौके पर प्रखंड अध्यक्ष राजकुमार अंजुमन, असंगठित कामगार कांग्रेस के जिलाध्यक्ष सत्येंद्रनाथ तिवारी, बदरी पासवान, एसटी मोर्चा के जिलाध्यक्ष लालबाबु शर्मा, सरपंच योगेन्द्र सिंह, विजय सिंह, डा0 अफजल आलम, मुखिया बेबी, पंसस अमिरका पासवान, मुन्ना राम आदि ग्रामीण मौजूद थे।
किसानों को पेड़ से बांधकर पीटा जाता था


 
नीम का पेड़ इस बात का गवाह है कि यहां नीम की खेती नहीं करने और मालगुजारी नहीं देनेवाले मजदूर-किसानों पर निलहे अधिकारी कितना जुल्म ढाहते थे. नील व तीनकठिया कानून का विरोध करने वालों को इसी नीम के पेड़ में बांध कर कोड़े से पिटाई की जाती थी. यह पेड़ चंपारण के किसानों पर ढाये गये जुल्मों का भी गवाह है़  इसी के पास अंग्रेज इन्हें सजा दिया करते थे़  लेकिन, इसके संरक्षण की आवश्यकता है.
 
तोड़ना होगा आसपास का चबूतरा : डीएफओ
 
जिला वन प्रमंडल पदाधिकारी (डीएफओ) प्रभाकर झा ने डीएम के निर्देश पर जांच के बाद बताया कि पेड़ से सटा चबूतरा बना हुआ है. इस कारण पेड़ को पर्याप्त भोजन व पानी नहीं मिल रहा है. सूखने की मुख्य वजह यही है. बॉडी में अभी हरियाली है. अगर तत्काल चबूतरा हटा दिया जाये तो मिट्टी का ट्रिटमेंट कर संभव है.
 
बापू की सभा का गवाह भी है पेड़
 
1917 में चंपारण दौरे और सत्याग्रह आंदोलन के दौरान अंग्रेजों के अत्याचार की खबर गांधी जी को लगी. चार अगस्त, 1917 को तुरकौलिया स्थित नीम के पेड़ की छांव में बैठकर उन्होंने मामले की जांच की थी.
 
हजारों किसान मजदूरों का बयान दर्ज किया था. किसानों और ग्रामीणों को गोलबंद कर निलहाकोठी के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन को नयी दिशा दी. नीम का पेड़ जो पहले ब्रिटिश अत्याचार का गवाह था। वह बाद के दिनों में गांधी जी की सभा व सत्याग्रह आंदोलन का गवाह बन गया।
मालूम हो कि नीम का पेड़ इस बात का गवाह है कि यहां नीम की खेती नहीं करने और मालगुजारी नहीं देनेवाले मजदूर-किसानों पर निलहे अधिकारी कितना जुल्म ढाहते थे. नील व तीनकठिया कानून का विरोध करने वालों को इसी नीम के पेड़ में बांध कर कोड़े से पिटाई की जाती थी
एतिहासिक नीम पेड़ को सूखने से बचाने के लिये पर्यटन विभाग ने संज्ञान लिया है। इसे लेकर पर्यटन विभाग के प्रधान सचिव ने जिलाधिकारी को पत्र देकर इसे सूखने से बचाने के लिये उपाय करने को कहा था। सीओ संतोष कुमार सुमन के अनुसार डीएम ने पत्र के आलोक मे स्थानीय प्रशासन को नीम पेड़ के जड़ के पास बने चबूतरे को तोड़ने का निर्देश दिया है। साथ ही निदेशित किया था कि चबूतरा तोड़ने मे डीएफओ का मार्गदर्शन लिया जाय।


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