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बिहार
बापू की 150वीं जयंती: भारत-नेपाल सीमा पर सुन्दरपुर कुष्ठ आश्रम में बसता है गाँधी के सपनों का भारत
By Deshwani | Publish Date: 3/10/2019 5:34:14 PM
बापू की 150वीं जयंती: भारत-नेपाल सीमा पर सुन्दरपुर कुष्ठ आश्रम में बसता है गाँधी के सपनों का भारत

- कोई सरकारी सहायता नहीं है फिर भी यह आश्रम अपने कर्मठ कामगारों के बदौलत बिहार का आईकॉन बना हुआ है।

रक्सौल।अनिल कुमार। आज चम्पारण समेत समूचा देश गाँधी जी की 150वीं जयंती मना रहा है। गाँधी जी के चम्पारण आगमन के सौ वर्ष पूरे होने पर चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष धूमधाम से मनाया गया था। ऐसे में रक्सौल के सुन्दरपुर में जहाँ गाँधी के सपनों का भारत की सच्ची तस्वीर का दर्शन किया जा सकता है। रक्सौल का सुन्दरपुर आज गाँधी के सपने को साकार होता जीवन्त उदाहरण है।

रक्सौल के उत्तरी छोर पर भारत-नेपाल सीमा पर सरिसवा नदी से सटे सुन्दरपुर लिटिल फ़्लावर लेप्रोसी वेलफ़ेयर एशोसिएशन कुष्ठ आश्रम की स्थापना बाबा आर. क्रेस्टोदास ने1981 में की थी। इसके बाद इस आश्रम में कुष्ठ रोगियों को नि:शुल्क उपचार के साथ भिक्षाटन की प्रवृत्ति को समाप्त किया गया। साथ हीं गाँधी के सपनों को साकार करने, कुष्ठ रोगियों के बच्चों को चरखा चलाने, खादी कपड़ा बनाने एवं बुनियादी शिक्षा देने के लिए विधालय की स्थापना की, जिसमें कुष्ठ रोगियों के बच्चों को भोजन, आवास, पठन-पाठन सामग्री एवं उपचार की व्यवस्था नि:शुल्क है।
 


 

बाबा आर. केस्ट्रोदास ने अपने जीवनकाल में नेपाल की साध्वी सुश्री कविता भट्टराई को कुष्ठ रोगियों की सेवा एवं बच्चों के पठन-पाठन के लिए उत्तराधिकारी नियुक्त किया। सुश्री भट्टराई भी अपना जीवनदान समाज के बहिष्कृत लोगों की सेवा में अर्पित कर चुकी हैं। सन् 1984 में कुष्ठ रोगियों के इलाज के लिए बना अस्पताल वर्तमान में 140 शय्यायुक्त है। इस अस्पताल में कुष्ठ रोगियों के इलाज के साथ पुनर्वास एवं जीवन की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए हर संभव प्रयास होता है।

ज्ञातव्य हो सुन्दरपुर लिटिल फ्लावर लेप्रोसी वेलफेयर ऐसोसिएशन के तहत वर्तमान में सुश्री कविता भट्टराई आश्रम संचालिका एवं कृष्णा कुमार यादव सचिव पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। महात्मा गाँधी ने अपने सपनों के भारत में जिस दृष्टि की कल्पना की थी, उसमें व्यापकता थी। यही कारण है इसी दृष्टिकोण या इन्हीं विचारों को गाँधीवाद की संज्ञा दी गयी। गाँधी जी ने समर्थ भारत का सपना साकार करने के लिए "पूर्ण स्वालम्बन" का बीडा़ उठाया था। हर घर में चरखा, हस्तकरघा, खादी ग्रामोद्योग के माध्यम से एक क्रांति के रूप में आन्दोलन चलाया था। खादी को ऊँचाई पर पहुँचाने का श्रेय गाँधी जी के खाते में दर्ज है। अगर सुत कताई और खादी कपड़ो की बुनाई की परम्परा फिर से जीवंत हो जाए तो यह न केवल खादी उत्पादन से फिर को एक नया मुकाम दिलाएगा बल्कि महिलाओं एवं वृद्धों की आजीविका सबसे सशक्त माध्यम हो सकता है।
 


 

प्रख्यात गाँधीवादी डा.रजी अहमद का मानना है कि खादी एक ऐसी संस्था है जो बिहार प्रदेश में काफी समृद्ध रही है। सरकार इसका विकेन्द्रीकरण करे, तो रोजगार का बड़ा विकल्प साबित हो सकता है। खादी सिर्फ रोजगार नहीं, बल्कि आजादी का प्रतीक है। खादी की संस्थाओं को पुनर्जीवित करने के लिए इससे जुडे़ और समर्पित लोगों को बागडोर देनी होगी। इस व्यवसाय के साथ सभ्यता व संस्कृति के बतौर विकसित करने की जरुरत है। अगर हम महात्मा गाँधी जी की 150वीं जयन्ती के मौके पर उनसे जुडी़ तमाम चीजों को स्मरण कर रहे हैं तो ऐसे में सुन्दरपुर कुष्ठ आश्रम की महत्ता और अधिक बढ़ जाती है।

इस आश्रम में सुपरवाइजर पद पर कार्यरत सीता देवी के देख-रेख में 52 लोग जिसमें 43 महिलाएं एवं नौ पुरूष जो  चरखा चला सूत कातते है एवं हथकरघा के जरिए कुर्ता, लुंगी, बेडशीट, रूमाल, गमछा तथा साड़ियाँ तैयार की जाती है। बदलते फैशन के हिसाब से भी रंगीन कपड़े भी तैयार किया जाता है जो बेतिया समेत सुबे के कई शहरों के स्टालों पर बिक्री होती है।  आष्ट्रिया की कम्पनी"दी राइजिंग स्टार " इस आश्रम से भारी मात्रा में खादी के कपड़ें खरीदती है।

मैनेजर जंगबहादुर साह ने बताया कि आश्रम में तैयार किये गये कपड़ें न केवल आश्रम में बिक्री के लिए रखे हुए हैं बल्कि यूरोपीय देश आस्ट्रेलिया, आस्ट्रिया एवं स्वीटजरलैंड भी निर्यात होता है जहाँ वह उपभोक्ताओं की पहली पसंद बना हुआ है। इस आश्रम में कुष्ठ रोगियों के उपचार के लिए अस्पताल, स्वालम्बन, सामाजिक समरसता, धार्मिक सदभाव, खादी निर्माण, बच्चों को तकनीकी शिक्षा देने का कार्य एक जीता जागता उदाहरण है। आश्रम में खादी निर्माण में शहनाज, जानकी देवी, सुशीला देवी, संगीता, किरण, मनोरमा, शकीला समेत महिला एवं पुरूष अपना योगदान कर न केवल अपना जीवनयापन कर रहे हैं बल्कि अपने परिवार को भी समृद्ध कर रहे हैं।

कोई सरकारी सहायता नहीं है फिर भी यह आश्रम अपने कर्मठ कामगारों के बदौलत बिहार का आईकॉन बना हुआ है। यहाँ गंगा -जमुनी तहजीब का अदभुत उदाहरण मिलता है। यहाँ हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, एवं बौद्ध धर्मालंबियों का अनोखा संगम है। अगर ये कहा जाए कि गाँधी जी कहीं चम्पारण में हैं तो केवल रक्सौल के सुन्दरपुर में, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। सुन्दरपुर लिटिल फ़्लावर लेप्रोसी वेलफ़ेयर एशोसिएशन द्वारा 2 अक्टूबर को बेतिया कचहरी में कपड़ा प्रदर्शनी में चरखा चलाने  का आयोजन किया गया। जिसमें बिशेष तैयारी की गई थी।                  

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