ब्रेकिंग न्यूज़
मोतिहारी के केसरिया से दो गिरफ्तार, लोकलमेड कट्टा व कारतूस जब्तभारतीय तट रक्षक जहाज समुद्र पहरेदार ब्रुनेई के मुआरा बंदरगाह पर पहुंचामोतिहारी निवासी तीन लाख के इनामी राहुल को दिल्ली स्पेशल ब्रांच की पुलिस ने मुठभेड़ करके दबोचापूर्व केन्द्रीय कृषि कल्याणमंत्री राधामोहन सिंह का बीजेपी से पूर्वी चम्पारण से टिकट कंफर्मपूर्व केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री सांसद राधामोहन सिंह विभिन्न योजनाओं का उद्घाटन व शिलान्यास करेंगेभारत की राष्ट्रपति, मॉरीशस में; राष्ट्रपति रूपुन और प्रधानमंत्री जुगनाथ से मुलाकात कीकोयला सेक्टर में 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 9 गीगावॉट से अधिक तक बढ़ाने का लक्ष्य तय कियाझारखंड को आज तीसरी वंदे भारत ट्रेन की मिली सौगात
मोतिहारी
अपने समावेशी चरित्र की रक्षा करके ही हिंदी सच्चे अर्थों में राष्ट्र भाषा बन पाएगी: प्रो. प्रमोद कुमार
By Deshwani | Publish Date: 14/9/2019 6:28:34 PM
अपने समावेशी चरित्र की रक्षा करके ही हिंदी सच्चे अर्थों में राष्ट्र भाषा बन पाएगी: प्रो. प्रमोद कुमार

मोतिहारी। महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा 5 सितंबर से मनाये जा रहे हिंदी सप्ताह का समापन समारोह आज (14 सितंबर) हिंदी दिवस के अवसर पर आयोजित किया गया। हिंदी सप्ताह के इस समापन समारोह कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. (डॉ.) संजीव कुमार शर्मा ने की। इस समारोह के विशिष्ट अतिथि प्रति कुलपति प्रो. (डॉ.) अनिल कुमार राय थे। 
 
इस अवसर पर बी.आर. अंबेडकर विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. प्रमोद कुमार सिंह मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित थे। प्रो. सिंह ने अपने वक्तव्य में हिंदी के विकास में गैर हिंदी भाषियों के योगदान को रेखांकित करते हुए कहा कि संविधान द्वारा हिंदी को राजभाषा के पद पर आधे-अधूरे मन से बैठाया गया है और राजभाषा के विकास के नाम पर जिस प्रकार हिंदी में शब्द गढ़े गए, उससे हिंदी ने अपनी जनपक्षधरता खोई है। उन्होंने कहा शब्द गढ़ने की जगह लोकभाषाओं और अन्य भारतीय भाषाओं से शब्द ग्रहण करके हिंदी को सच्चे अर्थों में राष्ट्र भाषा बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा हिंदी को उदार दृष्टि लेकर चलना होगा और अंग्रेजी के प्रयोग से हिंदी का भला होने वाला नहीं है। उन्होंने हिंदी भाषाभाषी क्षेत्र को विभिन्न राजनीतिक इकाइयों में बांटा जाना हिंदी की एकता के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बताया।
 
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. शर्मा जी ने अपने वक्तव्य में इस बात की आवश्यकता रेखांकित की कि भारतीय भाषाएं आपसी विरोध-वैमनस्यता से बाहर निकलकर भाषाई समरसता स्थापित करें। संस्कृत के कठिन शब्दों से घबड़ाकर हिंदी के सरलीकरण को आपने शैक्षणिक जगत के लिए विशेष रूप से अनुचित बताया। हिंदी भाषाभाषियों द्वारा हिंदी के प्रयोग में जाने-अनजाने की जाने वाली त्रुटियों की ओर भी उन्होंने ध्यानाकर्षित किया। 
 
इस अवसर पर प्रतिकुलपति प्रो. राय ने हिंदी सप्ताह के दौरान आयोजित की गई विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेताओं की मंच से घोषणा करके विजेताओं का उत्साहवर्धन किया। मौलिक कविता पाठ और आशुभाषण की प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान पर क्रमश: हिंदी विभाग की ऋचा पुष्कार और सचिन कुमार रहे। निबंध प्रतियोगिता का शीर्षक था-‘राजभाषा बनाम राष्ट्र भाषा’। इसमें प्रथम स्थान पर संयुक्‍त रूप से यंजूषा मधु (जंतु विज्ञान विभाग) और ऋचा पुष्कबर (हिंदी विभाग) रहीं। 
 
विजेताओं की घोषणा के साथ-साथ प्रो. राय ने कहा कि हिंदी के विरोध को राजनीतिक विरोध के रूप में देखा जाना चाहिए। कार्यक्रम के आरंभ में मानविकी एवं भाषा संकाय के अधिष्ठाकता डॉ. प्रमोद मीणा ने अतिथियों का औपचारिक स्वागत करते हुए जाति और धर्म से ऊपर उठकर भाषाई आधार पर एकता की आवश्यकता रेखांकित की।  हिंदी विभाग की शिक्षिका डॉ. गरिमा तिवारी ने कार्यक्रम का संचालन किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभाग के ही शिक्षक डॉ. गोविंद प्रसाद वर्मा ने किया।
 
इस मौके पर अवकाश के बावजूद बड़ी संख्यां में विश्वविद्यालय के शिक्षक, विद्यार्थी और गैर शैक्षणिक कर्मचारी उपस्थित रहे जो स्वयं में इस बात का प्रमाण है कि विश्वविद्यालय हिंदी के प्रति कितना प्रतिबद्ध है।
image
COPYRIGHT @ 2016 DESHWANI. ALL RIGHT RESERVED.DESIGN & DEVELOPED BY: 4C PLUS